एस. एन. वर्मा
जापान के प्रधानमंत्री फुमिया किशिदा दिल्ली आये हुये है। इसी समय चीन के राष्ट्रपति शी जिनंपिग मास्कों में है। किशिदा भारत के साथ दोस्ती की बातें कर रहे है तो चीनी राष्ट्रपति जिनपिंग रूस के साथ दोस्ती की बात कर रहे है। चीन आक्रम विस्तारवादी नीति पर चल रहा है रूस भी अपने विस्तार के लिये युक्रेन से युद्ध लड़ रहा है। भारत-जापान और चीन रूस का मिलन एक ही समय में संयोग हो सकता है पर इसका निहितार्थ दूूर तक जायेगा। जापान और भारत की मित्रता तो पुरानी है।
2007 में जापान के दिवंगत प्रधानमंत्री शिन्जो आबे हिन्दप्रशान्त क्षेत्र जहां दोनो महासागर मिलते है इसी क्षेत्र को लेकर भारत और जापान की मित्रता प्रगाढ हुई और दिनोंदिन और प्रगाढ होती जा रही है। जब शिन्जो आबे भारत आये थे तो उसी समय प्रशान्तहिन्द क्षेत्र को लेकर अपनी योजना रक्खी थी। यह भी बताया था किस तरह चीन इस क्षेत्र में अपना अधिपत्य चाहता है। यही पहल भारत जापान और दूसरे लोकतान्त्रिक मुल्कों के बीच विस्तारवादी चीन के खिलाफ सहयोग की बुनियाद बनी। 2014 में भारत के प्रधानमंत्री मोदी और प्रधानमंत्री आबे ने भारत जापान सम्बन्ध को विशेष रणनतिक वैश्विक साझेदारी में बदल दिया।
बदलती वैश्विक परिस्थितियों में हिन्दप्रशान्त क्षेत्र के लिए दोनो प्रधानमंत्रीयों का इस समय का मिलन अहम है। भारत जापान के द्विपक्षीय सम्बन्ध तो पुराने है और दोनो के सम्बन्ध दिनोदिन प्रगाढ़ होते जा रहे है। चीन इस समय हिन्दप्रशान्त क्षेत्र की परिस्थिति बदलने लगा हुआ है। ऐसे समय में जापानी प्रधानमंत्री भारतीय प्रधानमंत्री को अपरिहार्य सहयोगी बता रहे है और साफ तथा मजबूत शब्दों में जोर देकर कहा है हम मुक्त और स्वतन्त्र हिन्दप्रशान्त क्षेत्र के लिये और उसके विस्तार के लिये सहयोग करेगे। उन्होंने रेखांकित किया कि विश्व विरादरी को विभाजन या टकराव नहीं बल्कि सहयोग के रास्ते पर ले जाने की जरूरत है प्रधानमंत्री मोदी ने कहा जापान और भारत की साझेदारी साझा लोकतान्त्रिक मूल्यों और अन्तरराष्ट्रीय पटल पर कानून के शासन के सम्मान पर आधारित है।
जापानी प्रधानमंत्री मोदी से इस कदर प्रभावित है कि मोदी के उस बयान की याद दिलाते है जिसमें मोदी ने कहा था। ताकत के दम पर कोई भी यथास्थिति बदलने की कोई भी एक तरफा कोशिश स्वीकार नहीं है। अस्वीकार्य है। भारत और जापान स्वाभिविक मित्र देश है। प्राचीन सम्बन्ध तो है ही मौजूदा समय में भी दोनो देशो की दोस्ती प्रगाढ़ होती जा रही है। हालाकि इसमें बड़ी भूमिका इस समय हिन्दप्रशान्त क्षेत्र में दोनो के बीच सहयोग को लेकर है।
हालाकि कि किशिदा का यह संक्षिप्त प्रवास है पर यह प्रवास कई बातों को लेकर महत्वपूर्ण है। इस साल जी-7 की अध्यक्षता जापान के पास है वही भारत के पास जी-20 की अध्यक्षता है। द्वीपक्षीय सम्बन्ध के लिहाज से यह महत्वपूर्ण तो है ही पर अन्तरराष्ट्रीय पटल पर गौर करे तो इसके बहुत बड़े अर्थ निकलेगे।
चीन भारत-जापान के इस मिलन को गौर से देख रहा होगा क्योंकि भारत जापान दोनो प्रधानमंत्रियों का जोर चीन के विस्तारवादी नीति पर अंकुश रखना है। वही चीन हिन्दप्रशान्त क्षेत्र में अपना प्रमुख बढ़ाने के लिये जी जान से लगा हुआ है क्योकि इस क्षेत्र के महत्व को वह समझता है। पर चीनी हरकतें ऐसी है कि बाहरी दुनियां में वह खलनायक बना हुआ है। नम्बर एक होने की धुन में विस्तारवादी नीतियों को सहारा ले रहा है। इससे तो वह असफल ही रहेगा। खुद अपने मुल्क में भले ही डर से उसे नायक मानते है पर आम जनता खलनायक के रूप में ही उसे देखती है। यही रूप उसका विश्वपटल पर भी है देश में जोड़तोड़ डरा धमकाकर मौत के घाट उतार कर सफल हो सकते है पर विश्वपटल पर तो कहीं के नहीं रहेगे। भगवान बुद्ध के धर्म में इतनी क्रूरता आश्चर्य होता है।