सुनील यादव कीडीहरापुरबलिया
सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 370 को केंद्र सरकार द्वारा हटाए जाने के फैसले को वैध ठहराया है।शीर्ष अदालत नेकहा कि राष्ट्रपति केपास ऐसा करने कीपर्याप्त शक्ति है।अदालत ने संवैधानिक प्रावधानों की ऐतिहासिकव्याख्याकरते हुए कहा किजम्मूऔर कश्मीर के पास अन्य राज्यों से अलग कोई अतिरिक्त शक्तियासंप्रभुता नहीं है।ज्ञातव्यहो कि अगस्त 2019 में केंद्र सरकार ने जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान करने वाली धारा 370 को हटा दिया था तथा जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों लद्दाख एवं जम्मू कश्मीर में बांट दिया था। केंद्र सरकार के इस फैसले को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई थी।1947 में स्वतंत्रता के तुरंतबादवेकौन सी परिस्थितियां उत्पन्न हुई कि जम्मू कश्मीर रियासत का भारत में विलय हुआ? कश्मीर विलय किन शर्तों पर हुआ?क्या मजबूरी थी कि जम्मू कश्मीर को अनुच्छेद 370 के तहत विशेष राज्य का दर्जा दिया गया ? इसके लिए थोड़ा स्वतंत्रता के बाद की घटनाओं पर नजर डालनी होगी।
भारत के स्वतंत्र होने के साथ ही सभी रियासतें भीस्वतंत्र हो गई थी।कश्मीर रियासत के शासक महाराजा हरि सिंह भारत और पाकिस्तान दोनों में से किसी में भी विलय से बचना चाहते थे।भारतीय नेताओं ने कश्मीर के भारत मेंविलय के लिए अपनी तरफ से कोई कदम नहीं उठाया। महाराजा हरि सिंह ने सबसे पहले भारत और पाकिस्तान दोनों से एक यथास्थिति करारया ठहराव समझौता(Standstill agreement) पर हस्ताक्षर करने का प्रस्ताव रखा। इस समझौते के अनुसार भारत और पाकिस्तान दोनों को वादा करना था कि वेकभीभी कश्मीर पर आक्रमण नहीं करेंगे।पाकिस्तान ने इस समझौता पर हस्ताक्षर कर दिया। लेकिन भारत अभी इस मसले पर विचार कर ही रहा था कि पाकिस्तान के पख्तूनख्वाके कबाइली लड़ाके कश्मीर में घुसपैठ कर दिए।पाकिस्तानी सेनाका इन कबाइलीलड़ाको को पूरा समर्थन प्राप्त था।पाकिस्तानीसेना इन घुसपैठियोंको प्रशिक्षण एवं हथियार दोनों प्रदान कर रही थी। जब कबाइली फौज श्रीनगर की ओर बढ़ीऔर गैर मुसलमानों की हत्या और उनके साथ लूटपाट की खबरें आने लगी तब हरि सिंह 25 अक्टूबर को श्रीनगर छोड़कर भाग गए और अपनी गाड़ियों के काफिले के साथ जम्मू के सुरक्षित महल में पहुंच गए। कांग्रेसी नेता एवं हरि सिंह के बेटेकर्ण सिंह उन दुखद घटनाओं को याद करते हैं।ऐसी स्थिति में महाराजा हरि सिंह ने भारत से सैनिक सहायता की मांग की। लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नेहरू और लॉर्डमाउंटबेटन ने कहा कि कश्मीर एकस्वतन्त्ररियासत है। इसलिए हम कश्मीर में अपनी सेना नहीं भेज सकते।माउंटबेटन ने महाराजा हरि सिंह से पहलेपरिग्रहणका साधन (Instrument of accession) पर हस्ताक्षर करने को कहा अर्थात भारत मेंकश्मीरविलय काप्रस्ताव रखा। 26 अक्टूबर को महाराजा हरि सिंह ने विलय पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। दुनिया के सबसे ज्यादा उलझे हुए विवादों में से एक कश्मीर विवाद की जड़ इस विलय पत्र की शर्तों में ही निहित थी। लेकिन देखने में यह विलय पत्र बिल्कुल साधारण एवं छोटा था। इसमें महज दो पेज थे। दिल्ली के गृह मंत्रालय ने एक फॉर्म तैयार किया था। भारत के गृह मंत्रालय के उस समय के सचिव बीपीमेनन 26 अक्टूबर 1947 को जम्मू गए और विलय पत्र पर महाराज ने हस्ताक्षर कर दिए। इस विलय पत्र की शर्तों के अनुसार रक्षा, संचार और वित्त विभाग भारतीय संघ के अधिकारमें आ गए तथा शेष शक्तियां एवं अधिकारकश्मीर के महाराज के पास रहे। विलय पत्र की इन शर्तों को ही अनुच्छेद 370 के नाम से भारतीय संविधान में जोड़ दिया गया। कश्मीर विलय तो हो गया लेकिन तभी सेयह अनुच्छेद 370 भारत के गले की फांसबना हुआ था। जिसे केंद्र सरकार ने 5 अगस्त 2019 को हटाने का ऐतिहासिक कदम उठाया।
कश्मीर के भारत में विलय के तुरंत बाद 27 अक्टूबर को करीब 100हवाई जहाजो में सैनिकोंऔर हथियार को भरकर श्रीनगर भेजा गया।भारतीय सेना ने आक्रमणकारियों को घाटी के बाहर खदेड़दिया। फिर भी राज्य के कुछ क्षेत्रों पर आक्रमणकारियों का नियंत्रण बना रहा। भारत और कबाइलियोंके रूप में पाकिस्तानीसेना के बीच व्यापक एवं लंबे चलने वाले युद्ध की आशंका को देखते हुए पंडित नेहरू ने 30 दिसंबर 1947 को माउंटबेटन की सलाह पर कश्मीर समस्या को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रखा। हालांकि अपने इस फैसले पर पंडित नेहरू ने बाद में बहुत पश्चाताप व्यक्त किया। सुरक्षा परिषद ने पाकिस्तानीनियंत्रण को हटाने के बजाय ब्रिटेन और अमेरिका के निर्देशों पर कश्मीर मुद्दे को भारत-पाकिस्तान के बीच का द्विपक्षीय मुद्दा बना दिया। सुरक्षा परिषद ने प्रस्ताव पास करके 31 दिसंबर 1948 को युद्ध विराम कर दिया जो अब तक लागू है। इस युद्ध विराम प्रस्ताव सेअसल में राज्य का दो भागों में विभाजन नियंत्रण रेखा(LOC) के द्वारा हो गया। नियंत्रण रेखा के उस पार पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) को पाकिस्तान ने अपना राज्य घोषित कर दिया।1951 में संयुक्त राष्ट्र ने पाक अधिकृत कश्मीर अर्थात गुलाम कश्मीर से पाकिस्तानीसेना को वापस हटाने का प्रस्ताव पास किया लेकिन पाकिस्तान ने आज तक इस पर अमल नहीं किया। अब वर्तमान में केंद्र में एक सशक्त सरकार है जो कश्मीर मसले को पूर्ण रूप से हल करने की क्षमता रखती है।
अपनेवर्तमानफैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को यह भी निर्देश दिया है कि अगले वर्ष सितंबर माह तक जम्मू कश्मीर में चुनाव कराए जाने चाहिए। शीर्ष अदालत ने जम्मू कश्मीर को यथाशीघ्र पूर्ण राज्य का दर्जा प्रदान किए जाने पर भी बल दिया है।
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से देश की एकता को बल मिलेगा। लेकिन अलगाववाद का राग अलापने वाले कुछ नेता अदालत के इस फैसले से खुश नहीं है। ऐसे नेताओं को सोचना चाहिए कि जाति,धर्म,क्षेत्र और भाषा की राजनीति करने वाली पार्टियोंकी अभी हाल ही के विधानसभा चुनावो में किसप्रकार पराजय हुई है।अनुच्छेद 370 निरस्त होने के बाद जम्मू कश्मीर आरक्षण और पुनर्गठन विधेयक पारित हो चुकेहै।जम्मू कश्मीर की राजनीति एक बार फिर चर्चा का विषय बनी हुई है। लोकसभा चुनाव से ठीक पहले येदोनों विधेयक पारित होने से जम्मू कश्मीर में भाजपा का ग्राफ बढ़ सकता है। 2024 के लोकसभा चुनाव में अच्छे प्रदर्शन को आधार बनाकर भाजपा सितंबर 2024 या उसके बाद होने वाले जम्मू कश्मीर विधानसभा चुनाव में बहुमत सुनिश्चित करना चाहती है। नई विधानसभा में 90 सीटों(कश्मीर 47, जम्मू 43) पर चुनाव होंगे। उपराज्यपाल पांच व्यक्तियों(दो कश्मीरी पंडित, दो महिला तथा एक पाकिस्तानी शरणार्थी) को विधानसभा सदस्य के रूप में नामितकरेंगे। इस प्रकार कुल 119 सीटों में से 95 सीटें प्रभावी होंगी तथा पाक अधिकृत कश्मीर के लिए 24 सीटेंख़ालीरहेंगी।क्योंकि पाक अधिकृत कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है। भारत सरकार आज या कल उसे पाकिस्तान के कब्जे से मुक्त करके ही रहेगी।जम्मू कश्मीर के इतिहास में पहली बार 9सीटेंअनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित की गई हैं। इस प्रकार चुनावी शतरंज के रूप में अन्य राज्यों की तरह भाजपाइसबारजम्मू कश्मीर में भी सोशल इंजीनियरिंग की रणनीति अपनाने जा रही है।