अवधनामा संवाददाता
क़ुरआन और अहले बैत एक दूसरे के मुखालिफ नहीं हो सकते
बाराबंकी। (Barabanki) अल्लाह मुहाफिज़े क़ुरआन है । उसी ने क़ुरआन को उतारा वही हिफाज़त करने वाला है ।किसी की औक़ात नहीं जो इसमे कोई रद्दो बदल कर सके ।यह बात करबला सिविल लाइन में मज्लिसे बरसी बराए ईसाले सवाब मर्हूमा नाहीद फातिमा को खिताब करते हुए मौलाना तस्दीक़ हुसैन ज़ैदपुरीने कही।उन्होने यह भी कहा कि बगैर मारेफत दीन की इताअत मुमकिन नहीं । क़ुरआन और अहले बैत एक दूसरे के मुखालिफ नहीं हो सकते । क़ुरआन , हदीस और अक़्वाले मासूमीन पर अमल करने वाला ही सच्चा शीया है। बे अमल शीया असली शीया नहीं होता।हर शबे जुमा फज़ीलत वाली शब होती है।आखिर में करबला वालों के मसायब पेश किए जिसे सुनकर सभी रोने लगे।मजलिस से पहले डा 0 रज़ा मौरान्वी ने पढ़ा – रऊनतों की पनाह गाहें रईसज़ादे बने हुए हैं ,रज़ा जो उसमें शरीफ़ ज़ादों को देखता हूँ तो सोंचता हूँ ।कशिश सन्डीलवी ने पढ़ा -ज़िक्रे सरवर न हो ऐसा मुमकिन ही नहीं,फूल की खुशबू कैसे छिपा ली जाये । अजमल किन्तूरी ने पढ़ा – ये हक़ीक़त है के रूहे मारेफ़त जब तक न हो , इल्म के अफ़लाक पर भी आदमी बेजान है । मुहिब रिज़वी ने पढ़ा- जितना मुहिब दुनियां की हवस को दिल से लगाओगे, नफ्स के सीने पर ये उतना चढ़ती जाएगी। दुनियां समंदर के उस खारे पानी जैसी है, जितना पियोगे प्यास भी उतनी बढती जाएगी ।बाक़र नक़वी ने पढ़ा – अपने ओंठों पे अगर प्यास का दरिया रखना, जेहेन में असगरे मासूम का चेहरा रखना ।हाजी सरवर अली कर्बलाई ने पढ़ा-किस क़दर गुमराहियों में मुब्तिला इन्सान है , माले दुनियां की हवस में बेचता ईमान है । खूँन में पाकीज़गी बाक़ी नहीं साबित किया , दुश्मन ए क़ुरआं का साथी वख्त का शैतान है । इसके आलावा फ़राज़ व रज़ा मेहदी ने भी नज़रानए अक़ीदत पेश किया।मजलिस का आगाज़ तिलावते कलाम ए इलाही से मौलाना हिलाल अब्बास ने किया।बानिये मजलिस ने सभी का शुक्रिया अदा किया।
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