भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) मे जासूसी के झूठे आरोप का सामना करने वाले वैज्ञानिक डॉक्टर एस नांबी नारायणन को सर्वोच्च न्यायालय ने 50 लाख रुपए मुआवज़े के तौर पर देने का फैसला सुनाया है.
सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला 24 वर्ष पुराने झूठे आरोपो पर सुनवाई करते हुये सुनाया है. लेकिन डॉ. नारायणन का कहना है कि इस मामले ने उन्हें जो कष्ट दिया है उसकी भरपाई कोई रकम नहीं कर सकती, फिर चाहे वह पांच करोड़ रुपए ही क्यों न हो.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले मे कहा कि डॉ. नारायणन की गिरफ़्तारी बेवजह की गई थी और उसकी कोई ज़रूरत नहीं थी. इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए एक जांच आयोग भी गठित किया है जिसका नेतृत्व सुप्रीम कोर्ट के ही रिटायर्ड जज जस्टिस डीके जैन करेंगे.
गौरतलब है कि 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने डॉ. नारायणन को जासूसी के इस मामले में बरी कर दिया था लेकिन केरल हाई कोर्ट ने उन पुलिस अधिकारियों के ख़िलाफ़ कोई कदम नहीं उठाया जिन्होंने डॉ. नारायणन सहित 6 लोगों को इस मामले में गिरफ़्तार किया था. यही वजह रही कि डॉ. नारायणन को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा.
साल 1994 में डॉ. नारायणन के साथ एक और वैज्ञानिक और कुछ अन्य लोगों को भी गिरफ़्तार किया गया था, इसमें मालदीव की दो महिलाएं और बेंगलुरू के दो व्यापारी भी शामिल थे.
दोनों वैज्ञानिकों पर इसरो के रॉकेट इंजनों के चित्र और उनकी तकनीक दूसरे देशों में बेचने के आरोप लगे थे.
जिस इंजन के चित्र बेचने की बात सामने आई थी वो क्रायोजेनिक इंजन के थे, जबकि उस समय तक इस इंजन के बारे में भारत में किसी ने सोचा भी नहीं था.
जब सीबीआई ने इस मामले को अपने हाथों में लिया तब डॉ. नारायणन को बरी किया गया. डॉ. नारायणन बताते हैं कि जेल में उन पर काफी जुल्म किए गए.
पुलिस ने उन पर थर्ड डिग्री का इस्तेमाल किया. वो कहते हैं, “मैं उस बारे में अब ज़्यादा बात नहीं करना चाहता, मुझे बहुत बुरी तरह मारा पीटा गया था.”