सैटेलाइट लॉन्चिंग; श्रीहरिकोटा से साढ़े 11 बजे उड़ान भरी
पीएम मोदी ने बताया मील का पत्थर
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शुक्रवार को श्रीहरिकोटा स्पेसपोर्ट से स्काईरूट एयरोस्पेस द्वारा विकसित राकेट विक्रम-एस के प्रक्षेपण की सराहना की और कहा कि यह भारत के निजी अंतरिक्ष उद्योग की यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है। प्रधानमंत्री ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को बधाई दी। भारत में वर्ष 2020 से भारतीय अंतरिक्ष सेक्टर में सार्वजनिक और निजी कंपनियों की सहभागिता की शुरुआत हुई थी। भारत इस अंतरिक्ष बाजार में जगह बनाने के लिए आतुर दिख रहा है। अभी तक इस उद्योग में भारत की हिस्सेदारी महज दो फीसद है। जून, 2020 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार ने इस क्षेत्र में बदलाव की शुरुआत की थी। इसके बाद भारत में निजी कंपिनयों के लिए राह आसान हुई। इसके लिए अनुमान है कि वर्ष 2040 तक अंतरराष्ट्रीय स्पेस उद्योग का आकार एक ट्रिलियन डालर तक पहुंच जाएगा। भारत नई स्पेस टेक्नोलाजी के लिए निजी कंपनियों को बढ़ावा दे रहा है।
अंतरिक्ष क्षेत्र में भारत की यात्रा 1960 के दशक में शुरू हुई थी। डा विक्रम साराभाई के नेतृत्व में इंडियन नेशनल कमेटी फार स्पेस रिसर्च की स्थापना की गई थी। भारत के पहले सैटेलाइट आर्यभट्ट को तत्कालीन सोवियत संघ के आस्त्राखान ओब्लास्ट से लांच किया गया था। भारतीय अंतरिक्ष सेक्टर के इतिहास में यह मील का पत्थर माना जाता है। भारत की धरती पर पहला राकेट 21 नवंबर, 1963 को सफलतापूर्वक लांच किया गया था। इसे तिरुअनंतपुरम से निकट थुम्बा से लांच किया गया था। इस राकेट का वजन 715 किग्रा था।
भारत में स्काईरूट पहली स्टार्ट अप कंपनी है। इसने इसरो के साथ राकेट लांचिंग के लिए पहले एमआयू पर हस्ताक्षर किए हैं। स्काईरूट को पक्का भरोसा है कि वह भविष्य में अत्याधुनिक तकनीक की मदद से बड़ी तादाद में और किफायती राकेट बना सकेगी। इसके तहत कंपनी का दस वर्षों में बीस हजार छोटे सैटेलाइट छोडऩे का लक्ष्य है। खास बात यह है कि कंपनी की वेबसाइट पर लिखा है कि अंतरिक्ष में सैटेलाइट भेजना अब टैक्सी बुक करने जैस तेज, सटीक और सस्ता हो जाएगा। इसमें राकेट्स को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि इसे 24 घंटे के अंदर असेम्बल कर किसी भी केंद्र से छोड़ा जा सकता है।
गौरतलब है कि हाल में अरबपति एलन मस्क की अंतरिक्ष ङ्ग कंपनी अमेरिका में राकेट लांचिंग के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में थी। इसके बाद यह चलन काफी तेजी से बढ़ा है। अब यह ट्रेंड भारत में भी पहुंच गया है। इसरो के पूर्व वैज्ञानिक पवन कुमार चंदन के मुताबिक इस अभियान के लिए भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी इसरो की ओर से कई तकनीकी सुविधाएं मुहैया कराई गई है। इसके लिए इसरो ने बहुत मामूली फीस वसूली है।
विक्रम-एस आठ मीटर लंबा सिंगल स्टेज स्पिन स्टेबलाइज्ड सालिड प्रोपेलेंट राकेट है। इसका वजन 546 किग्रा और डायामीटर 1.24 फीट है। इसमें 4 स्पिन थ्रस्टर्स दिए गए हैं। इसकी पेलोड क्षमता 83 किग्रा को 100 किमी ऊंचाई तक ले जाने की है। पीक विलोसिटी 5 मैक (हाइपरसोनिक)। इस राकेट को कंपोजिट मटेरियल से बनाया गया है। 200 इंजीनियरों की टीम ने इसे रिकार्ड दो वर्ष के टाइम में तैयार किया है। फ्लाइट के दौरान स्पिन स्टेबिलिटी के लिए इसे 3ष्ठ प्रिंटेड इंजन से लैस किया गया है।
पीएम मोदी ने दी बधाई
पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा, स्काईरूट एयरोस्पेस द्वारा विकसित राकेट विक्रम-एस के रूप में भारत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण, आज श्रीहरिकोटा से रवाना हुआ! यह भारत के निजी अंतरिक्ष उद्योग की यात्रा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से राकेट का प्रक्षेपण
भारत के पहले निजी तौर पर विकसित राकेट विक्रम-एस को शुक्रवार की सुबह श्रीहरिकोटा अंतरिक्ष यान से सफलतापूर्वक प्रक्षेपित किया गया। विक्रम सबआर्बिटल राकेट का प्रक्षेपण सुबह 11:30 बजे श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से हुआ। इसरो और इन-स्पेस (इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन एंड आथराइजेशन सेंटर) के समर्थन से हैदराबाद में स्काईरूट एयरोस्पेस स्टार्ट-अप द्वारा प्रारम्भ मिशन और विक्रम-एस राकेट विकसित किए गए हैं। राकेट दो भारतीय और एक अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों के पेलोड को अंतरिक्ष में ले जा रहा है।
स्काईरूट एयरोस्पेस के लिए मील का पत्थर
स्काईरूट एयरोस्पेस के सीईओ और सह-संस्थापक पवन कुमार चंदाना ने भारत के पहले निजी तौर विकसित राकेट विक्रम-एस की लान्चिंग पर कहा कि यह देश और हमारी कंपनी स्काईरूट एयरोस्पेस के लिए एक बड़ा मील का पत्थर है। हमारा अगला मिशन अगले साल आर्बिटल मिशन होगा।
विक्रम साराभाई पर रखा गया राकेट का नाम
विक्रम-एस का नाम भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। इसरो और इन-स्पेस (इंडियन नेशनल स्पेस प्रमोशन एंड ऑथराइजेशन सेंटर) के समर्थन से हैदराबाद में स्काईरूट एयरोस्पेस द्वारा प्रारम्भ मिशन और विक्रम-एस राकेट विकसित किए गए हैं। राकेट दो भारतीय और एक अंतरराष्ट्रीय ग्राहकों के पेलोड को अंतरिक्ष में ले जा रहा है।
दो साल में तैयार हुआ विक्रम-एस
साल 2020 के अंत के आसपास शुरू होने वाले ग्राउंडवर्क के साथ, विक्रम-एस को दो साल के रिकार्ड समय के भीतर विकसित किया गया है, जो स्काईरूट एयरोस्पेस के अनुसार ठोस ईंधन वाले प्रणोदन, अत्याधुनिक एवियोनिक्स और सभी कार्बन फाइबर कोर संरचना द्वारा संचालित है।
स्काईरूट एयरोस्पेस के अनुसार, विक्रम-एस कई उप-प्रणालियों और प्रौद्योगिकियों सहित आर्बिटल क्लास स्पेस लान्च वाहनों की विक्रम श्रृंखला में अधिकांश तकनीकों का परीक्षण और सत्यापन करने में मदद करेगा, जिनका लान्च के प्री-लिफ्ट आफ और पोस्ट-लिफ्ट आफ चरणों में परीक्षण किया जाएगा।
सबसे तेज है विक्रम-एस
विक्रम एस पहले कुछ समग्र अंतरिक्ष प्रक्षेपण वाहनों में से एक है, जो अपनी स्पिन स्थिरता के लिए 3 डी-मुद्रित ठोस थ्रस्टर्स से बना है। स्काईरूट एयरोस्पेस के अनुसार, 545 किलोग्राम के बाडी मास, 6 मीटर की लंबाई और 0.375 मीटर के व्यास के साथ, विक्रम-एस अंतरिक्ष के लिए सबसे तेज और सबसे सस्ती सवारी है।
विक्रम सिरीज में तीन तरह के राकेट
इसरो के संस्थापक डा विक्रम साराभाई की याद में विक्रम एस का नाम दिया गया है। विक्रम सिरीज में तीन तरह के राकेट लांच किए जाने हैं। इनको छोटे आकार के सैटेलाइट्स ले जाने के मुताबिक विकसित किया गया है। विक्रम-1 इस सिरीज का पहला राकेट है। विक्रम-2 और और विक्रम-3 भारी वजन को पृथ्वी की निचली कक्षा में पहुंचा सकते हैं। विक्रम एस तीन सैटेलाइन को पृथ्वी की निचली कक्षा में पहुंचा सकता है। इन तीनों में एक विदेशी कंपनी का जबकि दो भारतीय कंपनियों के उपग्रह हैं।