विश्व जनसंख्या दिवस पर बड़ती आबादी और उसके प्रभाव

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गौरव खरे

जनसंख्या को देखते हुए हमेशा यह कहा जाता है कि यह एक दुनिया की दुधारी तलवार है और बड़ती हुई संख्या सबसे बड़ा विरोधाभाष है।इसका एक अर्थ यह भी लगाया जाता है कि इंसान ने मृत्यु को हराने कि कोशिश की है और उसे पीछे धकेल दिया है लेकिन इसका दूसरा पहलू यह भी है कि 200 करोड़ लोगों के पास प्रायप्त भोजन नहीं है खाने के लिए इसलिए बड़ती आबादी अब एक चिन्ता का विषय है।दुनिया की 52% लोगों की उम्र 30 वर्ष से कम है लेकिन इनमें से सिर्फ भारत की बात करें तो भारत की 90% युवा बेरोजगर हैं।आकड़ों के अनुसार दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी चीन की है जो पहले है 140 करोड़ फिर दूसरे पर भारत 138 करोड़ और फिर तीसरे पर अमेरिका जिसकी कुल आबादी 32 करोड़ है।
देश एक घर की तरह और जिस हिसाब से आप अपने घर की लोगों की गिनती करते है ठीक उसी तरह एक देश की सरकार अपने देश की गिनती कर अपने देश के लोगों की जरूरत पूरी करने की कोशिश करती है लेकिन इसमें भारत मात खा जाता है। भारत में किसान सही उपकरण ना मिलने से परेशान है तो युवा रोजगार से परेशान है।किसी समय मानव संसाधन देश के विकास का मजबूत स्त्रोत माना जाता था लेकिन समय के चलते अब आधुनिक युग ने जहाँ 20 लोग काम करते थे तो अब मशीन 2 लोग कर देते हैं इन मशीन ने इंसान के हाथ काट दिये है और इसके फलस्वरूप बेरोजगारी, भुखमरी, कालाबाजारी, हिंशा, मूल्य की बडोती की जड़ बडोती हुई जनसंख्या है।आज की तारीख में पूरी दुनिया जनसंख्या को लेकर परेशान है और भारत हर वर्ष एक ऑस्ट्रेलिया को बना देता है, इसलिए हमें जगरूक होकर इसे रोककर एक विकसित देश का निर्माण करना होगा। बड़ती आबादी की परेशानी को रोकने के लिए सरकार के पास दो रास्ते है पहला जनसंख्या को लेकर कडा नियम या अच्छी पड़ाई और रोजगार के ज्यादा अवसर।
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