सोशल ऑडिट के नाम पर हो रही मोटी वसूली ग्राम पंचायतो मे हो रहा सरकारी धन का बंदर बाट

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महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत हर वर्ष किए गए कार्यों का सोशल ऑडिट कराया जाता है, जिसका उद्देश्य कार्यों की गुणवत्ता सुनिश्चित करना और ग्रामीणों की शिकायतों की जांच करना होता है। हालांकि, सोशल ऑडिट के नाम पर ग्राम पंचायतों में प्रधानों से मोटी रकम वसूली जा रही है।
सोशल ऑडिट की प्रक्रिया
सोशल ऑडिट टीम गांव में जाकर स्थलीय निरीक्षण करती है और सभी दस्तावेजों की जांच करती है। इसके बाद, गांव में एक खुली बैठक आयोजित की जाती है, जहां काम में किसी भी गड़बड़ी को प्रमुखता से दिखाया जाता है। इस प्रक्रिया के दौरान प्रधानों को डराया जाता है और उनसे पैसों की मांग की जाती है।
मनरेगा की कार्यप्रणाली
मनरेगा के तहत काम शुरू करने के लिए रोजगार सेवक कार्य योजना तैयार करते हैं, जिसे कंप्यूटर ऑपरेटर द्वारा कंप्यूटर पर सुरक्षित किया जाता है। इसके बाद, तकनीकी सहायक एस्टीमेट बनाते हैं और काम को सचिव, जेई, और खंड विकास अधिकारी द्वारा स्वीकृति दी जाती है। काम पूरा होने के बाद, तकनीकी सहायक एमबी (मेजरमेंट बुक) बनाते हैं, जिसके आधार पर मजदूरी का भुगतान किया जाता है।
ऑडिट कर्मियों का मानदेय
ब्लॉक रिसोर्स पर्सन को 500 रुपए और विलेज रिसोर्स पर्सन को 300 रुपए का मानदेय दिया जाता है, लेकिन इसके बावजूद प्रधानों से वसूली की जाती है।
डीडीओ के नाम पर हो रही वसूली
सोशल ऑडिट के दौरान प्रधानों को धमकाया जाता है और जिला विकास अधिकारी (डीडीओ) का हिस्सा बताकर 25,000 रुपये प्रति ग्राम पंचायत की मांग की जाती है। प्रधानों ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि यदि वे पैसे देने से इनकार करते हैं, तो उन्हें रिकवरी का डर दिखाया जाता है।
यह मामला ग्राम पंचायतों में हो रहे भ्रष्टाचार और अनियमितताओं की ओर इशारा करता है, जिससे मनरेगा के उद्देश्यों पर सवाल खड़े हो रहे हैं

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