Monday, May 12, 2025
spot_img
HomeMarqueeन सोना न चांदी न रतन लेके लौटा वो तिरंगे का केवल...

न सोना न चांदी न रतन लेके लौटा वो तिरंगे का केवल कफन लेके लौटा…

 

अवधनामा संवाददाता

जौनपुर।   अपूर्वा भारती के तत्वावधान में अखिल भारतीय कवि सम्मेलन एवं मुशायरे का आयोजन इंग्लिश क्लब के प्रांगण में आयोजित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डा0 पीसी विश्वकर्मा और प्रथम चक्र का संचालन सभाजीत द्विवेदी प्रखर तथा द्वितीय चक्र का संचालन सतना म0प्र0 से पधारे अशोक सुन्दरानी ने किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ मां वीणापाणि के चित्र पर दीप प्रज्ज्वलन और माल्यार्पण से हुआ। मुख्य अतिथि समाजसेवी वशिष्ठ नारायण सिंह एवं विशिष्ट अतिथि श्रीमती माया दिनेश टण्डन, डा0 जयेश सिंह व डा0 स्पृहा रहीं। अतिथियों का स्वागत संस्था के अध्यक्ष डा0 अशोक कुमार सिंह ने किया। संस्था के संरक्षक वीरसेन सिंह वीर समेत सभी अतिथियों को प्रतीक चिन्ह व अंगवस्त्रम से सम्मानित किया गया। कवि सम्मेलन और मुशायरे की शुरूआत श्रीमती पुष्पा सिंह विसेन गाजियाबाद की सरस्वती वंदना से हुई। पुष्पा सिंह विशेन ने शब्द महल बैठी मां मन्द-मन्द मुस्काये, प्रहरी बन वाक्य खडे रहते शीश झुकाये ,अर्थ हो यथार्थ जहाँ व्याख्या समझ में आए ,ऐसी ज्ञानी देवी को जग हरदम शीष नवाये… तथा जूते की महिमा समेत अनेक उत्कृष्ट रचनाएं प्रस्तुत की। नासिर कानपुरी ने दिल बहुत बेकरार है साहब, आपका इन्तजार है साहब, आप चाहे तो जान भी ले लें, आपको अख्तियार है साहब…, गाजीपुर की कवियित्री रश्मि शाक्या ने अपना घर-द्वार अपना पता छोड़कर, जब भगीरथ ने आकर पुकारा मुझे, स्वर्ग के वैभवों की छटां छोड़कर, मैं चली आई शिव की जटा छोड़कर…, सारनाथ वाराणसी से पधारे लालजी यादव उर्फ झगड़ू भइया ने उहै बीस मनावै जेकरे पाल्हा में सब कोई, बन्द जहां मु-ड्ढी में सूरज ओहीं शीत घाम कुल होई, बुलडोजर गरजी झोपड़पट्टड्ढी किस्मत पर रोई, चीन्ह-चीन्ह के बदरा बरसी कहो धुरन्धर अबका होई…, हास्य के हाहाहूत हस्ताक्षर बिहारी लाल अम्बर प्रयागराज ने न सोना न चांदी न रतन लेके लौटा, न खुशियों का कोई चमन लेके लौटा, वतन के लिए जो गए सरहदों पर, वो तिरंगे का केवल कफन लेके लौटा… देशभक्ति से ओत-प्रोत रचना पढ़ी। बुलन्दशहर के वरेण्य कवि डा0 अर्जुन सिसोदिया ने वो देश की चिन्ता करे थे, तुम जेब की चिन्ता करते हो, तुम लूट खजाना देश का स्विस खातों में भरते हो, वो जननायक थे भारत के तुम भारत के अपराधी हो, वे देश की खातिर मरते थे तुम देश को खाकर करते हो… राष्टवादी रचनाएं प्रस्तुत कर खूब वाहवाही लूटी। श्रीमती पुष्पा सिंह विसेन गाजियाबाद ने हिन्द की बेटी हूं मैं हिन्दुस्तान बिखरने नहीं दूंगी, मां भारती की कसम दुश्मन को संभलने नहीं दूंगी… सुनाया तो प्रांगण तालियों की गडग़ड़ाहट से गूंज उठा।

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -spot_img
- Advertisment -spot_img
- Advertisment -spot_img
- Advertisment -spot_img

Most Popular