एस. एन. वर्मा
समलैगिक शादी को कानूनी मान्यता देने के लिये कई याचिकायें कोर्ट में दाखिल है। सरकार इसके खिलाफ है। कोर्ट ने याचिकाओं को पांच जजों वाली संविधान पीठ के पास भेजने जा रही है। जबकि सरकार का कहना है कानूनी मान्यता देने का सवाल नितिगत मामलों के अन्दर आता है इसलिये यह विघायिका के अधिकार क्षेत्र में आता है इसलिये विघायिका ही इसे लेकर कानून बना सकती है सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इन याचिकाओं में कई ऐसे मुद्दे है जो संविधान की व्याख्या से जुड़े है। इसलिये सुप्रीम कोर्ट ने पांच सदस्यों वाली संविधान पीठ को ये याचिकायें सौप दी है। जजों की पीठ 18 अप्रैल से इसकी सुनवाई करेगी।
जहां तक भारतीय समाज की बात है समलैगिक की शादी को पसन्द नहीं करता है। जो लोग समलैगिकी सम्बन्ध में दिख जाते है उन्हें समाज विक्रति मानसिकता का रोगी मानता है। उससे लोग घ्रिणा करते है। विघायिका के सदस्य इससे अनिभिज्ञ नहीं होगे।
यह भी सोचना होगा कि अगर इसे मान्यता नहीं दिया जाता तो समलैगिकी सम्बन्ध रूकेगे नहीं चोरी छिपे चलते रहेगे, इसे लेकर अपराध भी होते रहेगे। बलात्कार रोकने के लिये सबसे सख्त सजा फांसी का प्रावधान है पर देखते है बलात्कार रूक नहीं रहा है पर इसका यह मतलब भी नहीं है कि अपराधों के लिये कानून बना सज़ा का प्रावधान नहीं किया जाये।
पर आजकल नई विचारधारा का प्रवाह नई पीढ़ियों के अनुसार काफी हद तक चल रहा है। विश्व पटल पर नज़र डाले तो समलैगिंक शादियों के अधिकार सम्बन्धी कानून और समलैगिंको के सम्पत्ति अधिकार को मान्यता विभिन्न नामो से मिली हुई है। कानूनी मान्यता भले अब मिल रही है पर इसका प्रचलन बहुत पहले से देखा जा रहा है। लैगिक सम्बन्ध तो प्रमुख रूप से सेक्स के लिये बनता है। कानूनी शादियों में भी सेक्स प्रमुख है क्योकि इसमें किसी पक्ष में कमजोरी दिखती है तो लड़ाई झगड़ा तलाक यहां तक हत्या भी हो जाती है। ऐसे में चाहे स्त्री हो या पुरूष सेक्स की सन्तुष्टी के लिये कोई न कोई रास्ता ढूढ लेते है। दो एक देशो में तो जानवरों के साथ भी सहवास को कानूनी मान्यता मिली हुई है।
कुछ देशों की इस बारे में अपनाई गई कानूनी क्रियाओं का अवलोकन करें, आयर लैन्ड में जनमत संग्रह के आधार पर समलैगिक शादी को कानूनी मान्यता मिली हुई है। जापान में समलैगिंक शादी गैर कानूनी है पर पार्टनरशिप ओथ सिस्टम के जरिये समलैगिंक शादी का प्रावधान कर दिया गया है। कुछ ऐसे भी देश है जहां समलैगिक शादी गैर कानूनी है पर वहां रजिस्टर्ड सिविल युनियन या डोमेस्टिक पार्टनरशिप के जरिये इजाज़त दे दी गई है। सिविल युनियन्स का दर्जा किसी को भी मिल सकता है यौन प्राथमिकता कोई भी हो। फ्रान्स और उत्तरी योरोपीय मुल्कों में पारम्परिक शादियों के बजाय लोगो की पसन्द सिविल युनियन है।
भारतीय समाज में खुले तौर पर समलैगिकी सम्बन्ध या शादी यहां की धार्मिक और संस्कृतिक ढांचे में फिट नहीं बैठती है। बहुमत इसे स्वीकार नहीं करेगा। पर दिखने में आ रहा है समलैगिको की संख्या बढ़ रही है। वे प्रदर्शन भी करते है समारोह भी करते है। कुछ खुलेतौर पर यह सम्बन्ध बनाकर रहते है। ऐसे में सिविल यूनियन का प्रावधान विघायिक द्वारा कानून बनाने के विकल्प में लिया जा सकता है। अब देखे सुप्रीम कोर्ट की पीठ क्या रास्ता बताती है। या क्या निर्णय देती है। मुख्य मुद्दा वैवाहिक समानता है।
जब क्रियायें वहीं होनी है, अधिकार वही देने है जो किसी कानूनी जोड़े को हासिल है, बच्चा पाने और उसके पालन पोषण का अधिकार उत्तराधिकार का अधिकार, सम्मलित बैक एकाडन्ट रखने का अधिकार तो कुछ भी नाम रख लीजिये क्या फर्क पड़ता है। मुख्य है सामाजिक और संस्कृत स्ट्रक्चर बना रहे। चाहे लेमन कहिये या नीबू बात तो एक ही है।
पर समलैगिक विवाह और सेम सेक्स है तो मानसिक विकृति सभ्यता की शुरूआत में सेम सेक्स तो नहीं था पर सम्बन्ध सिर्फ नर मादा का था रिश्तों का नही। फिर समाज परिष्किृ होता चला गया, सम्बन्ध स्थापित हो चले गये। विवाह और सेक्स सिर्फ पति पत्नी के रिश्ते में स्थापित हुआ जो आमतौर पर ब्रम्ह लकीर बनी हुई है। विकृत लोग तो अपनी सगी लड़की को भी नहीं छोड़ रहे है। विकृत आचरण को लेकर सहमति के कानून नहीं बनते है। उसके लिये सजा निधारित होती है।