एस. एन. वर्मा
समलैगिक शादी को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुपीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू कर दी है। याचिकाकर्ताओं की प्रार्थना है कि अब देश में स्वेच्छा से समलैगिक सम्बन्ध बनाना और साथ रहना अपराध की श्रेणी में नहीं आता है। पर जोड़ा बना कर रहने को वे शादी का नाम नहीं दे पाते। समलैगिक जोड़े चाहते हैं उन्हें भी शादी का नाम देने कि कानूनी मान्यता मिले और शादी से सम्बन्धित सारे अधिकार मिले जो विपरीत लैगिंक शादी करने वाले जोड़ो को मिलते है। पर वर्तमान में देश में मौजूदा कानून जेन्डर न्यूट्रल नहीं है।
इस समय या कहे आधुनिकता का दौड़ में एक एलजीबीटीक्यू समुदाय पैदा हो गया जिसका प्रसार सारी दुनियां में बढ़ता ही जा रहा है। अभी तक की मान्यता है शादी पुरूष और महिला के बीच ही हो सकती है। शादी में सेक्स प्रमुख फैक्टर होता है। सेक्स की समस्याओं को लेकर अच्छे खासे जोड़ो की जिन्दगी और परिवारिक जिन्दगी बिखर जाती है, परिवार टूट जाते है। अवैध सम्बन्ध स्थापित हो जाते है। इसे लेकर हत्यायें भी हो जाती है। तालाक तो आम बात है। यह भी सत्य है कि शादी में सेक्स प्रमुख समस्या कारक है पर सब कुछ वही नहीं है। दो एक देशो में जानवरों के साथ सेक्स के लिये कानूनी मान्यता भी सुनते है। पर स्वस्थ और संस्कारित सम्बन्ध विपरीत लिंगी ही होता है जो प्राकृतिक नियम भी है। यहां तक की पशु पक्षियों में कीड़ो मकोड़ो में भी यही विपरीत लिगी सेक्स सम्बन्ध ही होते है। प्रकृति ने प्रजनन के लिये यह नियम बनाये है और वह इच्छा प्रकृति प्रदत्त है। अगर मानसिकता विकृत न हो तो स्वस्थ स्त्री और पुरूष में ही सेक्स सम्बन्ध बनते है। अगर समलैगिक शादी व्यवस्था व्यापक हो जायेगी तो मानव प्रजाति का क्या होगा।
पर इस समय एनजीबीटीक्यू समाज के साथ कई मानवाधिकार कार्यकर्ता भी इसे समानता से जुड़े अधिकार के रूप में देख रहे हैं और पक्ष में वकालत कर रहे है। न्यायपालिका ने याचिकाओं पर सुनवाई तो शुरू कर दी है पर केन्द्र सरकार ने भी इस सम्बन्ध में हलफनामा दायर कर कहा है शादियों से जुड़े मामले पर कानून बनाने का अधिकार संसद को है। यह कोर्ट के अधिकार के दायरे में नहीं आता इसलिये न्यायपालिका को इसकी सुनवायी ही नहीं करनी चाहिये याचिकाओं को रिजेक्ट कर देना चाहिये। शादी का विषय समवर्ती सूची में आता है। इससे दूसरे धर्मो के पर्सनल कानून भी जुड़े हुये है। कोर्ट ने केन्द्र सरकार की दलीलो को तवज्जों देते हुये आंशिक रूप से स्वीकार किया है कि इसका दायरा बड़ा है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने पर्सनल से जुड़े पहुलुओं को सुनवाई से अलग कर दिया है अब बहस सिर्फ स्पेशल मैरेज ऐक्ट को जेन्डर न्यूट्रल करने के लिये होगा।
सरकार ने एक और आवेदन दाखिल किया है। इसमें समान लैगिंक शादी शादी के बारे में सारे राज्यों और केन्द्र शासित राज्यों से विमर्श शुरू कर दिया है। राज्यों को भी पार्टी बनाया जाय और विचार विमर्श पूरा करने का मौका दिया जाय। केस उलझता जा रहा है इन्तजार करना होगा आगे क्या रूप लेत है और क्या निर्णाय होता है। लोगो की प्रक्रिया है आधुनिक समय में खुले समाज के रूप में यह मान्यता है कि सभी वर्गो को समानता और गरिमा युक्त जीवन जीने का अधिकार मिले। क्योंकि समलैगिको को एक दूसरे के प्रति सहज सेक्सुअल आकर्षण देखने को मिलता है। पाने के लिये हत्या तक होती है खो देने पर आत्महत्या तक होती है। मामला उलझनपूर्ण है। सरकार और न्यायपालिका की परीक्षा है।