अनुभव को वरीयता

0
169

 

एस.एन.वर्मा
मो.7084669136

 

श्रीलंका में चल रहे भारी आर्थिक संकट और प्रदर्शन के बीच रानिल विक्रम सिंधे को जिन्हें पूर्ण प्रेसिडेन्ट गाटेबाया राजपक्षे ने पद से इस्तीफा देने के बाद कार्यवाहक प्रेसिडेन्ट बनाया था उन्हें प्रेसिडेन्ट चुन लिया गया है। यह चुनाव जनता ने नही श्रीलंका की संसद ने किया है। तारीफ यह भी है कि संसद में सिर्फ एक सीट है। फिर भी 225 सदस्यी सदन में 73 वर्षीय विक्रम सिंधे को 134 सदस्यों ने मत देकर राष्ट्रपति बना दिया। हालाकि प्रदर्शनकारी गटिबाया को बचाने के आरोप में विक्रम सिंधे से भी इस्तेफे की मांग कर रहे है। जीत के बाद विक्रम सिंधे ने कहा लोग हमसे पुराने तरीके से काम नही चाहते अब विपक्ष के साथ मिलकर काम करूंगा। संसद द्वारा राष्ट्रपति चुना जाना श्रीलंका में 44 साल में पहली बार हुआ है। जनता गाटेबाया से भी नाराज़ है और विक्रम सिधे से भी नाराज़ है। पर जनता ने नही संसद ने इन्हें राष्ट्रपति बनाया है।
विक्रम सिंधे को विपक्ष ने उनके अनुभव और विदेशी सरकारो से और अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष में बने अच्छे सम्बन्धों के आधार पर चुना है। श्रीलंका में सारे उथल पुथल की वजह महंगाई है जरूरी सामानो की अनउपलब्धता है जो विदेशी मुद्रा की उसे सख्त जरूरत है। गैस और तेल को लेकर तो भारी संकट कब से चल रहा है। लोगो को जरूरी सामान भी नहीं मिल पा रहा है। खरीदने के लिये उनके पास पैसे ही नहीं है। बेरोजगारी भूख से लोग बेहाल है।
45 साल की अवधि में विक्रम सिंधे छह बार प्रधानमंत्री रहे है। उनके राष्ट्रपति बनने में से नकदी के लेकर अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से जो बात चल रही है। उसमें तेजी आयेगी। संसद ने उन्हें वित्त मामलों की बेहतर जानकारी के गुण को वरीयता देते हुये मतभेद भुलाकार जिताऊ वोट दिये। यहीं नहीं विक्रम सिंधे श्रीलंका के उन नेताओं के टोली के भी सदस्य है जो अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से तीन अरब डालर के बेलआउट पैकेज को लेकर बातचीत कर रही है।
विक्रम सिंधे अच्छे कूटनितिज्ञ भी है। उन्होंनें भारत और चीन से भी अच्छे सम्बन्ध बना रक्खे है। कुछ लोगों का मानना है कि श्रीलंका में वर्तमान संकट के लिये चीन जिम्मेदार है। क्यों कि चीन ने श्रीलंका को मदद के नाम पर भारी कर्ज़ में लपेट संकट में लपेट दिया चीन श्रीलंका से दूरी बनाये हुये है और खामोश है। भारत से उसके सम्बन्ध हमेशा से अच्छे रहे है। विक्रमसिंधे चीन के व्योवहार पर खामोश है कोई टिप्पणी नहीं कर रहे है। यह उनके राजनय की कुशलता है। भारत ने मदद भी दिया है और उन्होंनें भारत को शुक्रिय भी कहा है। विक्रमसिंधे का भारत और उसके नेताओं से हमेशा अच्छे सम्बन्ध रहे है, उन्हें भारत और नेताओं को करीबी माना जाता है।
भारत ने उच्चायोग के माध्यम से एक टवीट किया है और कहा है आर्थिक् सुधार के लिये श्रीलंका के लोगो के प्रयास का समर्थन करता है। हालाकि राजीव गांधी के काल में श्रीलंका के एक वर्ग ने नाराज़गी थी जो उनकी हत्या की वजह थी। पर अब स्थिति सामान्य है। अब श्रीलंका की जिम्मेदारी है कि श्रीलंका में रह रहे विभिन्न जाति वाल और धर्म वालो को और शासन में हिस्सा दे। देश का हर प्रदेश और नागरिक सरकार चुने।
यूएन ने चेताया है भोजन, ईधन और दवाओं की कभी से संकट बना रहेगा। महंगाई 50 प्रतिशत से ऊपर पहुची हुई है। टूरिज्म श्रीलंका के लिये बड़ा श्रोत है वह ठप है। 51 अरब डालर का विदेशी कर्ज़ है। सरकार चुकाने में असमर्थ है। वह ऐसा चुनेगे पीएम चुने में जो उनके आर्थिक सुधारों में मददगार हो। अगले महीने 2022 को बजट पेश होगा। तब पता चलेगा सुधार की रफ्तार क्या होगी। भारत, चीन, और जापान से मदद की उम्मीद है। अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से बात चल रही। अगर विक्रमसिंधे श्रीलंका को इस भवर से निकाल लेते है तो उनकी गिनती महान राष्ट्रपतियों में होगी। विक्रमसिंघे और श्रीलंका का अन्तरराष्ट्रीय कद बढेगा। पर पहले जनता का विश्वास जीतना होगा। उधर वे शपथ ले रहे थे वह उनके विरोध में जनता प्रदर्शन कर रही थी।

Also read

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here