एस एन वर्मा
एक्सपैन्डबल सैटलाइट यानी पृथ्वी से छोटे साइज का छोड़ा गया सैटलाइट कक्ष में पहुचने पर चार गुना आकार में बढ़ जायेगा। इसरो की इस कामयाबी का बड़ा महत्व है। पहले तो इसरो में इसे लेकर पहली कोशिश में जो नाकामयाबी की उदासी थी वह दूर हो गई। कोरोना महामारी की वजह से इसका प्रक्षेपण टलता रहा। फिर पिछले अगस्त में इसे लान्च किया गया था। पर यह उपग्रहों को उस कक्ष में नहीं रख पाया जहां रखना था। इसलिये यह परीक्षण फेल हो गया था। इसबार इसरो तीन सैटेलाइट भेजे है उसमें से एक सैटेलाइट आजादी सैट-2 का निर्माण स्पेस किडज इन्डिया के मार्ग दर्शन में किया गया। जिसमें देश के विभिन्न हिस्सों की 750 क्षात्राओं ने ऐक्टिव पार्ट लिया। प्रश्न उठता है एक सैटेलाइट के बनाने में देश कि विभिन्न हिस्से से क्षात्राओं को क्यों लिया गया है। इसका मकसद दूरंअदेशी है। एयरोस्पेस स्टार्टअप स्पेस किडज इन्डिया इस तरह की कोशिशो से इस प्रोजेक्ट के जरिये बच्चों में स्पेस के प्रति दिलचस्पी पैदा करना चाहता है। इस तरह के पोजेक्ट का फायदा आगे चलकर दिखेगा। जब बच्चे बड़े हो जायेगे।
स्पेस किडज ने इस सैटलाइट को एक्सपैन्डेबल बहुत सूझबूझ के साथ बनाया है। कक्षा में पहंुचने के बाद इस सैटलाइट का बाहरी फ्रेम खुल जायेगा। यह आकार में चार गुना बढ़ जायेगा। छोटे सैटलाइट का साईज छोटे होने की वजह से जरूरी उर्जा नहीं हासिल कर पाते हैं। इसलिये अन्तरिक्ष में लम्बे समय तक नहीं रह पाते है। आजदी सैट-2 के एक्सपैन्डेबल होेने का लाभ यह है कि छोटे आकार का होने के कारण इसे ले जाने में अतिरिक्त खर्च नहीं पड़ता है। क्योकि कक्षा में पहुचने के बाद इसकी बढ़ी हुई संरचना में लगा सोलर पैनल इसे उर्जा पहुचाता रहेगा। इस सैटेलाईट में यह प्रयोग पहली बार आजमाया गया है। आज कल छोटे सैट लाइटो की मांग बढ़ती जा रही है। इसरो भी इस बाजार में अपनी पैठ बनाने के लिये उत्साहित है। इसीलिये प्राजेक्ट की डिजाइन और डेवलपमेन्ट बाजार की जरूरतों को ध्यान में रखकर किया गया है। इससे यह सन्देश देना चाहता है कि बाजार के जरूरतों के मुताबिक बाजार के मांग के मुताबिक सैटलाइट लान्च करने की सुविधा प्रदान करने में सक्षम है। ये राकेट एक छोटी टीम के साथ कुछ दिनो में असेम्बल किये जा सकते है। जबकि 600 लोग छह महीने लगाकर पीएसएलवी तैयार कर पाते है। इसरो एक सप्ताह के अन्दर यह सुविधा प्रदान कर सकता है।
दिन-ब-दिन लोगो की दिल चस्पी अन्तरिक्ष में बढ़ती जा रही है। इसलिये इससे सम्बन्धित इन्डस्ट्री में भी लोग भारी सख्या में दिलचस्पी दिखा रहे है। इस परिप्रेक्ष में इस क्षेत्र में विकास की भी जबरदस्त सम्भावना देखी जा रही है। आकलन है 2026 तक अन्तरिक्ष से सम्बन्धित जरूरतों का वैश्विक बाजार 7.4 अरब डालर तक पहुच सकता है। भारत का इस क्षेत्र में विकास उसकी अर्थव्यवस्था को मजबूत खुराक देने में सक्षम होगा। भारत ने उचित समय पर यह कदम उठाया है इससे उसे इस क्षेत्र के बाजार के बड़े हिस्से पर पकड़ बनाने का मौका मिलेगा।
इसरो और एयरो स्पेस स्टार्टअप स्पेस किडज इन्डिया बधाई के पात्र है। भारत में इस समय हर तरह की इन्टस्ट्री लगाने के अनुकूल परिस्थितियां और सुविधायें प्रदान करने में भारत सरकार लगी हुई है। इसके लिये समिट भी आयोजित किये जा रहे हैं। अभी अन्तरराष्ट्रीय हस्तियों की जुटान लखनऊ में हुआ है। बड़े सार्थक नतीजेे निकले है। इसरो अपने सैटलाइट कार्यक्रमों में विद्यार्थियों को लगा कर हमारे युवाओं को बाहर जाने से रोकेगी। नौजवानो में सार्थक संरचना की भूख जगायेगी। इसरो को एसएसएलबीडी-2 का सफल प्रक्षेपण कर तीन उपग्रह पृथ्वी की कक्षा में पहुचाने के लिये बधाई। इसरो का इतिहास शुरू से ही कामयाब रहा है। जिसके लिये हमेशा प्रशंसा मिलती रहती है।