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जज़ों की नियुक्ति में देरी से एक तो खाली पद प्रभावित होते है, दूसरे न्याय प्रक्रिया की गतिशीलता में बाधा पहंुचती है तीसरी और अहम बात यह है कि कोलोजियम योग्य लोगो में से जज़ों की नियुक्ति के लिये चुनती है। पर कोलोजियम द्वारा प्रस्तावित नाम सरकार के पास जाता है, सरकार को कुछ औपचारिकतायें पूरी करनी पड़ती है, फिर सरकार लिस्ट कोलोजियम को वापस भेजती है, कोलोजियम नियुक्ति के आदेश के लिये लिस्ट अपनी स्वीकृति के साथ फिर सरकार को भेजती है। सरकार की ओर से औपचारिकतायें पूरी करने और आदेश निकालने में इतनी देरी होती है कि मेधावी लोग अपना नाम वापस ले लेते है। न्याय प्रणाली योंही बोझ से दबी हुई है। उसमें नियुक्ति देरी, औपचारिकताओं में देरी बोझ को बढ़ाने में मजबूर कारक बनते है। पहले तो कोलोमिजियम ही नाम प्रस्तावित करती रही है पर अब सरकार ने अपने सदस्यों को प्रवेश करा दिया है। मतलब अन्तिम निर्णय सरकार का ही होता है। कोलोजियम एक कड़ी ही बनकर रह गयी है।
कोलोजियम सिस्टम सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णय की श्रंृखला के आधार पर बने है जो तीन जज़ केस के नाम से जाना जाता है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में कोलोजियम बनाने का सिस्टम एक ही है। कोर्ट का मुख्य न्यायधीश और कोर्ट के सीनियर मोस्ट जज़ो को लेकर बनाया जाता हैं। इन सब की प्रक्रिया मेमारेन्डम आफ प्रोसीडयोर में निहित है। यह सरकार और न्याय पालिका का सहयोगी संगठन है। तीन जज़ों के केस के अनुसरण में 1998 में बनाया गया था।
हाईकोर्ट कोलोजियम प्रोन्नति के लिये नाम प्रतावित करता है। लिस्ट राज्य के कई विभागों से होकर गुजरती है। फिर इन्टलिजेन्स ब्यूरो और केन्द्र सरकार के पास जाती है। इसके बाद सुप्रीमकोर्ट कोलोजियम के पास स्वीकृति के लिये जाती है। इसके बाद सूची नियुक्ति के लिये केन्द्र को भेजी जाती है। यदि केन्द्र को कुछ आपत्ति है तो फिर सुप्रीकोर्ट कोलोजियम को भेज देती है। कोलोजियम पुनरवृत्ती कर केन्द्र को वापस कर देता है तब नियुक्ति पत्र जारी होता है।
हर कदम के लिये समयसीमा निर्धारित है। सुप्रीम कोर्ट कोलोजियम को अन्तिम सूची चार साप्ताह के अन्दर केन्द्र को भेजनी होती है। 2021 में सप्रीमकोर्ट ने समय सीमा को कुछ अतिरिक्त समय देकर बढ़ा दिया है। केन्द्र सुप्रीमकोर्ट कोलोजियम को अनुशंसा आईवी से रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद 4-6 हाफ्ते में भेज देगा। कोलोजियम की पुनःस्वीकृति के बाद 8-12 हफ्ते के अन्दर नियुक्ति पत्र जारी हो जाना चाहिये।
पर व्याहार में काफी अन्तर होता है। 2020 में अटार्नी जेनरल ने एससी को बताया आईबी में सूचना प्राप्त होने के बाद सरकार को 18 हफ्ते लगे, कोलोजियम जितने नाम में भेजती है उनमें से कुछ को ही नियुक्ति पत्र जारी होते है। सरकार के स्तर में बहुत अधिक विलम्ब होता है। अगर सम्बन्धित राज्य में दूसरे पार्टी की सरकार है तो केन्द्र सराकर अनाआवश्यक देरी करती रहती है। एक राज्य के लिये तीन बार वही नाम भेजे गये। पर अभी तक नियुक्ति पत्र का इन्तजार ही हो रहा है।
भारत के मुख्य न्यायधीश ने कहा है जज़ो की नियुक्ति जज़ों द्वारा कोरी कल्पना है। चुनाव प्रक्रिया में जज़ केवल खिलाड़ी बनकर रह गये है। सरकार जज़ो की नियुक्ति में प्रारम्भ में भले ही कोई आवाज नहीं रखती है पर अन्तिम चुनाव में उसकी ही मर्जी चलती है।