भारत में साइबर हमले लगातार बढ़ रहे हैं. बीती तिमाही के दौरान ऐसी घटनाएं 22 प्रतिशत बढ़ी हैं. जिस ब्लॉकचेन और इंटरनेट आफ थिंग्स (आईओटी) को बेहद सुरक्षित माना जाता था, वही साइबर अपराधियों के सबसे बड़े हथियार के तौर पर उभर रही हैं. लगातार बढ़ते साइबर हमलों पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार अगले साल जनवरी में एक साइबर सुरक्षा नीति का एलान करेगी. रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में हर मिनट 1852 साइबर हमले हुए. इससे प्रभावित राज्यों में महाराष्ट्र, दिल्ली व पश्चिम बंगाल शीर्ष पर हैं.
इंडियन साइबर सिक्योरिटी रिसर्च और साफ्टवेयर फर्म क्विकहील की ओर से हाल में इस क्षेत्र की चुनौतियों को लेकर जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि इन हमलों से देश के चारों महानगर सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं. इसमें देश की वित्तीय राजधानी कही जाने वाली मुंबई पहले स्थान पर है. उसके बाद क्रमशः दिल्ली, बेंगलुरू और कोलकाता का स्थान है. रिपोर्ट में बताया गया है कि महाराष्ट्र, दिल्ली और पश्चिम बंगाल में साइबर अटैक के सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2018 में पूरी दुनिया में हुए लगभग 20 लाख साइबर हमलों में 3,222 अरब रुपये का नुकसान हुआ. साइबर अपराधी बैंकों और वित्तीय संस्थानों को सबसे ज्यादा निशाना बनाते हैं. भारत में कोई भी ऐसा दिन नहीं गुजरता जब किसी न किसी तरीके से सैकड़ों लोगों के खातों से साइबर हमले के जरिए लाखों की रकम नहीं निकाली जाती हो. ऐसे ज्यादातर मामलों में डूबी हुई रकम वापस नहीं मिल पाती.
हालांकि भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से इस बारे में जागरुकता अभियान चलाया जाता है जिसके तहत लोगों को सलाह दी जाती है कि वह अपने डेबिट या क्रेडिट कार्ड का नंबर, पिन, सीवीवी और वन टाइम पासवर्ड यानी एओटीपी किसी अनजान व्यक्ति को नहीं बताएं. बावजूद इसके लाखों लोग हैकरों के जाल में फंस जाते हैं.
कैसे होता है हमला
रिपोर्ट में कहा गया है कि हैकर आम तौर पर साइबर हमलों के लिए तीन तरीकों का इस्तेमाल करते हैं. इनमें से सबसे ज्यादा हमले ट्रोजन वायरस के जरिए किए जाते हैं. इसके अलावा स्टैंड एलोन और इन्फेक्टर्स यानी रिमोट सर्वर के जरिए किसी कंप्यूटर सिस्टम में वायरस डाल कर उसके आंकड़े चुरा लिए जाते हैं.
साइबर विशेषज्ञों ने कहा है कि हैकर अब रैंसमवेयर का भी सहारा ले रहे हैं. इसके जरिए हर 14 मिनट में एक कंप्यूटर को निशाना बनाया जाता है. वित्तीय कंपनियों पर लगभग 60 फीसदी हमले इसी के जरिए हो रहे हैं. वर्ष 2018 में इसके जरिए हुए हमलों से पूरी दुनिया में छह अरब डॉलर का नुकसान हुआ था. इंटरनेट सोसाइटी ऑनलाइन ट्रस्ट अलाइंस की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2021 तक रैंसमवेयर अटैक से 20 अरब डॉलर का नुकसान हो सकता है.
कश्मीर-कनेक्शन
इससे पहले रूसी साइबर सुरक्षा फर्म कास्परस्की ने अगस्त के आखिरी सप्ताह में कहा था कश्मीर घाटी में धारा 370 और 35 ए के रद्द होने के बाद भारतीय संस्थानों पर साइबर हमले की घटनाएं बढ़ी हैं और देश को अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत है. फर्म के साइबर सुरक्षा शोधकर्ता सौरभ शर्मा का कहना है, कश्मीर घाटी से अनुच्छेद 370 रद्द होने के बाद भारत पर साइबर हमलों में निश्चित रूप से वृद्धि दर्ज की गई है.
आईओटी और ब्लॉकचेन बने हथियार
भारत में साइबर हमलों के मामले में इंटरनेट आफ थिंग्स (आईओटी) और ब्लॉकचेन हैकरों के लिए सबसे बड़े हथियार के तौर पर उभरे हैं. बीती तिमाही के दौरान देश के विभिन्न शहरों में होने वाले 33 हजार से ज्यादा साइबर हमलों में पांच सौ में तो बेहद आधुनिकतम तकनीक का सहारा लिया गया था.
बीते दिनों सलाहकार फर्म अर्न्स्ट एंड यंग और फेडरेशन आफ इंडियन चैंबर्स आफ कामर्स एंड इंडस्ट्री (फिक्की) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि साइबर अपराधी अवैध लेन-देन के लिए ब्लॉकचेन आधारित तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं. इससे सुरक्षा एजेंसियों के लिए उनको पकड़ना टेढ़ी खीर साबित हो रहा है. इसमें कहा गया था कि हैकरों और साइबर अपराधियों में ब्लॉकचेन तेजी से लोकप्रिय हो रहा है.
लेकिन आखिर कंप्यूटर के क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों को अपराध में इस्तेमाल होने से कैसे रोका जा सकता है? अर्न्स्ट एंड यंग में साइबर सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाले विदुर गुप्ता कहते हैं, “भारत को कानूनी एजेंसियों, तकनीकी विशेषज्ञों और उद्योग के संयुक्त प्रयासों से एक मजबूत साइबर अपराध प्रबंधन तंत्र विकसित करना होगा.” वह कहते हैं कि साइबर अपराध प्रबंधन पर एक मजबूत राष्ट्रीय रोडमैप तैयार कर कानून को लागू करने वाली अहम एजेंसियों को और मजबूत करना होगा.
नई साइबर सुरक्षा नीति
लगातार बढ़ते साइबर हमलों पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार अगले साल जनवरी में एक साइबर सुरक्षा नीति का एलान करेगी. राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा संयोजक राजेश पंत बताते हैं, “प्रस्तावित नीति सरकार देश को साइबर रूप से सुरक्षित कर सकेगी और साथ ही इससे पांच हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य को भी हासिल करने में मदद मिलेगी.” पंत का कहना है कि इस नीति के तहत साइबर सुरक्षा के विभिन्न पहलुओं को देखने वाले मंत्रालयों के बीच प्रभावी तालमेल बढ़ाने, अहम ढांचे की सुरक्षा और निजी भागीदारी बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा. वह कहते हैं कि साइबर सुरक्षा को मजबूत करने में निजी क्षेत्र की भी अहम भूमिका है.
नेशनल क्रिटिकल इंन्फार्मेशन इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोटेक्शन सेंटर के महानिदेशक अजित वाजपेयी कहते हैं, “ऐसी साइबर सुरक्षा नीति को प्रभावी तरीके से लागू करने के लिए काफी बड़ा बजट जरूरी है. इस्राएल जैसे देश ने भी साइबर सुरक्षा के मद में 20 मिलियन डॉलर (दो करोड़ डॉलर यानि लगभग डेढ़ अरब रूपये) की रकम आवंटित की है. भारत जैसे विशाल देश में इसके लिए कम से कम 25 हजार करोड़ रुपये का बजट होना चाहिए. लेकिन इतनी बड़ी रकम का जुगाड़ करना एक अहम मुद्दा है.” वाजपेयी कहते हैं कि युवा पीढ़ी में जागरुकता पैदा करने के लिए एक विषय के तौर पर विश्वविद्यालय स्तर पर ही साइबर सुरक्षा की पढ़ाई अनिवार्य की जानी चाहिए.