हर शख़्स की यादों में रहेंगे डॉक्टर कल्बे सादिक साहब
लखनऊ इल्म के आसमान पर चमकते चांद को डूबे हुए चार साल हो गए। मोहब्बत की शोआओं को बिखेरने वाले सूरज को डूबे हुए चार साल हो गए। सादगी को सफेद लिबास पहने हुए चार साल हो गए। चाशनी में डूबे हुए अल्फाज को अपनी मिठास खोए हुए चार साल हो गए । क़ौम को इल्म की बुलंदियों पर देखने वाली निगाहों को बंद हुए चार साल हो गए।
अफसोस सद अफसोस।
एक लम्बी बीमारी से लड़ते हुए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष, वरिष्ठ धर्म गुरु, एकता के प्रतीक, शिक्षाविद, गरीबों और यतीमों के मसीहा डॉ. कल्बे सादिक साहब (83) का 24 नवम्बर 2020 को निधन हो गया था।
आज चार साल हो गए उनके जाने से पूरी उम्मत यतीम हो गई थी। इस बात का का एहसास आज भी उम्मत को है।
डॉक्टर कल्बे सादिक साहब सिर्फ पूरी क़ौम को ही नहीं बल्कि इल्म और एकता के लिए सकारात्मक सोच रखने वालों को भी यतीम कर गये।
हिंदू-मुस्लिम एकता और शिया-सुन्नी एकता के प्रबल समर्थक रहे डॉक्टर कल्बे सादिक साहब की सादगी ऐसी थी कि विरोधी भी उनके कायल थे। वे वैज्ञानिक गणना के आधार पर काफी पहले ही ऐलान कर देते थे कि ईद का चांद कब दिखेगा।
डॉक्टर कल्बे सादिक साहब ने अपनी पूरी जिंदगी शिक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में प्रगति करने में बिता दी इसके अलावा क़ौम के उत्थान के लिए बहुत काम किया।
युनिटी कॉलेज, एरा चिकित्सा विश्वविद्यालय, हिज़ा अस्पताल, अलीगढ़ में एम यू कालेज इसकी मिसाल हैं।
इसके अलावा तौहीदुल मुस्लिमीन ट्रस्ट यानी टीएमटी जैसी संस्था खड़ी की जो गरीब और जरूरतमंद बच्चों को शिक्षा प्रदान करने में मदद करती है।
डॉक्टर कल्बे सादिक साहब बहुत बड़े खतीब, वक्ता एवं विचारक भी थे। उनके विचारों को हर धर्म के लोग ध्यान से सुनते थे वह हर धर्म में आदरणीय थे। उनकी सबसे अच्छी और खास बात यह थी कि जब वह तकरीर करते थे या भाषण देते थे या मजलिस को खिताब करते थे तो उनका विषय शिक्षा यानी इल्म होता था वह चाहते थे कि लोग इल्म हासिल करें क्योंकि इल्म की कमी से ही तमाम बुराइयां पैदा होती है।
डॉक्टर कल्बे सादिक साहब हर धर्म का सम्मान करते थे उन्होंने एक तकरीर में कहा भी था कि जब से मैंने हिंदू धर्म ग्रंथों को पढ़ना शुरू किया और गीता जी का अध्ययन किया तब से मुझे हिंदू धर्म बहुत अच्छा लगने लगा। वह यह भी कहा करते थे कि कुरान मुसलमानों के लिए नहीं बल्कि इंसानों के लिए आया है जिसमें सभी लोग शामिल हैं। डॉ. कल्बे सादिक साहब को पूरी दुनिया आपसी भाईचारे और मोहब्बत का पैगाम देने वाले शिया धर्म गुरु के रूप में जानती है। उन्होंने हर बात में शिक्षा को बढ़ावा दिया। विदेशों में मजलिस पढ़ने जाते थे और मोहब्बत का पैगाम देते थे।
डॉक्टर कल्बे सादिक साहब ने हमेशा एकता अखंडता भाईचारा प्रेम और मोहब्बत की बात की । वह चाहते थे कि सब लोग मिल जुल कर रहे शिक्षा हासिल करें और देश को तरक्की के रास्ते पर ले जाएं।
डॉक्टर कल्बे सादिक साहब बिल्कुल स्पष्ट बात करना पसंद करते थे और वक्त के बहुत पाबंद इंसान थे।
डॉक्टर कल्बे सादिक साहब अकसर कहते थे कि जो कौम वक्त की कद्र नहीं कर सकती वह कभी तरक्की भी नहीं कर सकती।
डॉक्टर कल्बे सादिक साहब की तमाम सिफात में से एक सिफ़त यह भी थी कि वह शोहरत से दूर रहते थे। वह कौम की, इंसानियत की खिदमत करते थे लेकिन उन्हें शोहरत की भूख बिल्कुल भी नहीं थी आज के उन समाजसेवियों की तरह जो अपने शोहरत और फायदे के लिए समाज सेवा करते हैं। डॉक्टर कल्बे सादिक साहब हमेशा राजनीति से दूर रहे उन्होंने अपने दम पर लोगों की मदद और खिदमत की। इतनी बड़ी शख्सियत होने के बावजूद इस काम के लिए कभी भी उन्होंने राजनीति या किसी राजनेता का सहारा नहीं लिया। कभी किसी सियासी पार्टी या किसी राजनेता की गुलामी नहीं की।
शायद आने वाली नस्लों के लिए वह एक मिसाल छोड़ गए।
अफसोस।
एक बेहतरीन इंसान, एक बेहतरीन खतीब, एक बेहतरीन शिक्षाविद, एक बेहतरीन रहनुमा, एक बेहतरीन सादा इंसान, मोहब्बत का एक मुजस्समा, एकता के प्रतीक, क़ौम के हमदर्द, गरीबों के मसीहा, देश के रत्न, इंसानियत के अलम्बरदार को हमारे बीच से गए हुए चार साल पूरे हो गए। उनकी कमी आज भी खलती है और चाहे क़ौम जितने भी दावे करे लेकिन ना तो कोई उनकी जगह को भर सकता है और ना तो उनके जैसा कोई आलिम और खिदमत गुज़ार बन सकता है।
अल्लाह दरजात बलंद फरमाये।
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