एस. एन. वर्मा
चीन अरूणांचल पर अपना दावा ठोकता रहता है। छाह साल में अरूणांचल के 32 जगहों के नाम बदले अभी अरूणांचल के 11 जगहों के नाम बदले है। यह चीन का पुराना खेल है। हालाकि जमीनी हक़ीकत पर इसका कोई असर नहीं पड़ने वाला है। पर बेकार में आपसी रिश्तों में तनाव आ जाता है। चीन अरूणांचल केे साउथ तिब्बत कह कर अपना दावा जताता है। ब्रहृमपुत्र नदी पर 60 हजार मेगावाट बिजली पैदा करने के लिये बड़ा बाध बनाना चाहता है। अगर यह प्रोजेक्ट पूरा हो पाता है तो अरूणांचल के लोगो के लिये सूख, बाढ़, पानी की कमी का बायस बन जायेगा।
यह समय कूटनितिक गतिविधियो से भरी है इस लिये हड़बड़ी दिखाने की जरूरत नही है। क्योंकि कई जगहो पर भारत और चीन के प्रतिनिधियों की मुलाकात होगी। शंघाई कोआपरेशन संगठन के सम्मेलन में सदस्य देशों के रक्षा मंत्री शामिल होने वाले है। इसी सम्बन्ध में अगले महीने चीनी विदेश मंत्री और जून में चीनी राष्ट्रपति भारत आने वाले है। ऐसे में सख्ती के बजाय कूटनीति ही कारगर उपाय है। इसीलिये भारत उकसाने वाला बयान या कोई सख्त सन्देश नहीं दे रहा है। हालाकि चीन द्वारा चीनी नाम देने की यह हमले में तीसरी कोशिश है।
चीन भी समझता है इससे वस्तुस्थिति में कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। पर उसकी सोच दूर की है अगर मामला अन्तरराष्ट्रीय कोर्ट मेें जाता है तो अपनी मजबूती के लिये इन तथाकथित सबूतो को पेश कर सकता है।
भारत ने अरूणांचल में आधारभूतसंचरना के कई प्रोजेक्ट का निर्माण कर रहा है। हाल जी-20 का अरूणांचल में सफल में सम्मेलन किया जबकि जगह को लेकर चीन विरोध प्रकट कर रहा था। इन सबसे चीन कुछ ज्यादा बौखला रहा है।
चीन साउथ चाइना सी में और ईस्ट चाइना सी में भी ऐसे ही धन्धे अपना रहा है। पर यह समय उलझने का नहीं है। भारत की यात्रा पर आने के बाद चीनी विदेश मंत्री और राष्ट्रपति से भारतीय राष्ट्रध्यक्ष और विदेश मंत्री से आपसी बातचीत के बाद कैसा माहौल बनता है यह गौर करने की चीज होगी। उसके बाद वार्ता और स्थिति के अनुसार दोनो देश कदम उठाये तो बेहतर होगा। क्योकि चीन के कह देने से भारत हिस्सा चीन का नहीं हो जायेगा।
भारत और चीन में जब तब तनाव बढ़ता रहता है वार्ता होती है कुछ सफल भी होती है तनाव कम भी होता है। पर चीन फिर कुछ कर बैठता है। इन सबके वावजूद सीमा पर शान्ती बनी रहती है हालाकि सैनिको का जमावड़ा घटता बढ़ता रहता है। चीन भारत पर अपना सिक्का नहीं जमा पा रहा है भारत उसे कामयाब झटका देता रहता है। लगता है चीन अपनी जनता का असन्तोष दबाने के लिये लोगो का ध्यान बटाने के लिये जब तब सीमा पर कुछ कर बैठता है। फिर दोनो पक्ष तनातनी में मिलते है यथास्थिति कायम हो जाती है। तानाशाह देश अपनी जनता को इसी तरह बहलाते रहते है।