प्रमिका की बर्बर हत्या

0
142

 

 

एस.एन.वर्मा
मो.7084669136

अपने समय में एक दिलकश गाना सुनते थे इक दिल के टुकड़े हज़ार हुये कोई याहं गिरा कोई वहां गिरा। आज सिनेमा में नहीं वास्तिक जिन्दगी की दुर्दान्त बर्बर हत्या का समाचार पढ़ रहे है जिसमें प्रेमिका की हत्या कर उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके जंगले में कोई यहां गिरा दिया गया कोई वहां गिरा दिया।
मुम्बई की एक युवती श्रद्धा वाकर और एक युवक आफताब पूनावाला डेटिंग के माघ्यम से सम्पर्क में आये और लिवइन में रह रहे थे। आफताब मुसलमान था श्रद्धा हिन्दू थी। उसकी मां को यह पसन्द नही था। श्रद्धा शादी करना चाहती थी पर मां ने कहा हमारे यहां विपरीत धर्म वालो से शादी नही होती। श्रद्धा की मां की मृत्यु हो गई। अफताब श्रद्धा को लेकर दिल्ली चला आया फिर छतरपुर चला गया दोनो में झगड़े भी होते थे। लिवइन में रह रहे थे। सुप्रीम कोर्ट ने लिवइन को मान्यता दे दी है पर इससे औरते असुरक्षित हो गई है। लिवइन जोडी की अनबन, हत्या, फिर अलगाव सुनने को मिलता रहता है।
पर पूनावाला ने तो हद कर दी। श्रद्धा और आफताब अक्सर लड़ते झगड़ते रहते थे। बीच में एक दूसरी औरत भी आफताब के यहां आने लगी थी। छह महीने पहले आफताब और श्रद्धा में झगड़ा हुआ। झगड़ा इतना बढ़ा कि आफताब ने गला घोटकर श्रद्धा की हत्या कर दी। इतना ही नही फिर एक नया फ्रिज खरीद कर लाया। श्रद्धा की लाश का 30-35 टुकड़े आरी से काट काट और पोलीथीन में भरकर फ्रिज में डाल दिया। घर में अगरबत्ती, रीफेशर वगैरह का इस्तेमाल करता रहा जिससे गन्ध फैलने न पाये। फिर धीरे-धीरे पालीथीन के थैले जिसमें श्रद्धा के लाश के टुकड़े भर रक्खा था रात में जाकर पास के जंगलो फेक आता था। दोस्तो से ऐसे बात करता था जैसे श्रद्धा उसका साथ रह रही है। कोई शक न कर इस लिये कम्पनी में जिसमें श्रद्धा काम करती थी उसके नाम पर जो क्रेडिट था उसका भुगतान करता रहा। जिससे कम्पनी उसके पास न पहुंचे।
बाद में श्रद्धा के पिता ने श्रद्धा के गायब होने की रिपोर्ट पुलिस को जाकर लिखाई। उससे पूछ ताछ की तो पहले तो इधर अधर की बाते बनाता रहा। कहा पिछले कुछ महीनों से हम साथ नहीं रह रहे थे। श्रद्धा के मारने के बाद दूसरी औरत भी घर में ले आया था। कई औरतो से सम्पर्क रखता था। पर पुलिस जब सख्ती से पेश आयी तो अपना जुर्म कबूल किया लाश को टुकड़े कर फिज में रखने फिर जंगल में विखराने की बात बताई। पुलिस टुकड़ों की तलाश कर रही है।
आफताब ने बताया वह अमेरिकी टीवी सिरियल से प्रभावित होकर इस तरह से हत्या को अन्जाम देकर जंगलो में बिखराया टीवी सीरियल में सीरीयल किलर हत्या के बाद लाश के टुकड़े करता था और फिर टुकड़े को छुप छुप कर बिखरा देता था। इस जघन्य हत्या का समाचार पढ़कर रोगटें खड़े हो जाते है। समाज में जिस हिसाब से सम्पन्नता बढ़ रही है, तकनीकी खासतौर से दूर संचार और डिजिटल करोबार बढ़ रहा है उसी हिसाब से हर तरह के जुर्म और खासतौर से सेक्सुअल जुर्म भी बढ़ रहे है। सबसे चिन्ता की बात तो यह है कि कमसिन बच्चे भी कमसिन बच्चियों के साथ रेप कर रहे है। कमसिन बच्चियों तो जबान बड़े बूढ़े सभी के हवस की शिकार हो रही है। सुनकर सर चकरा जाता है आखिर हम कहा जा रहे है।
जिस अनुपात में अधर्म बढ़ रहा है उसी अनुपात में धर्म भी बढ़ रहा है। यह अजीब विरोधाभास है। अब पुलिस महकमें की जिम्मेदारी बनती है कि वे मामले की तह तक जाये। कोर्ट से ऐसी सजा दिलवाये जिसमें कोई इस तरह के जघन्य अपराध करने की हिम्मत न करे। कोर्ट तो पुलिस जो पेश करेगी, वादी प्रतिवादी के जिरह के अधार पर ही निर्णाय देगी। इसलिये पुलिस के को इतना पुख्ता बना कर केस पेश करे कि कोर्ट ऐसी सज़ा दे सके जिससे अपराधी फिर जुर्रत नही करे अपराध करने के लिये। देखने में आ रहा है अभी अभी निर्भया कान्ड के मुकदमें में देखा गया अपराधी बेदाग छूट गये। लोगों को मानसिक आघात लगा है। पर कोर्ट क्या करें वह तो साक्ष्य के आधार पर ही फैसला देगा। कभी पुलिस वालों की ओर से है जो ठीक से केस को प्रस्तुत नही करते। किसी केस के हल्का कर देना किसी को गम्भीर बना देना उनके बाये हाथ का खेल है और धन्धा भी है।
यह दुर्दान्त हत्या सामाजिक सोच पर हथोड़े की तरह आघात पहुंचा रही है और समाज तथा व्यवस्था की असफलता की ओर इशारा करती है। जिन पर समाज व्यवस्था, देश की जिम्मेदारी है उनसे ऐसी घटनायें सवाल करती है हम ऐसे ही असुरक्षित रहेगे लगता है सारे संवेदनायें यांन्त्रिक हो गई है। किसी को किसी से कुछ लेना देना नही है सिर्फ मतलब से मतलब रह गया हो। नही तो जिस घर में श्रद्धा की हत्या हुई होगी जहां वे कुछ दिनों से रह रहे थे वहां के अगल बगल वालों को इनकेे बारे में कोई भनक तक नहीं लगी। जब झगड़ते रहे होगे तो कुछ तो आवाज बाहर जाती रही होगी। दोनो जिस तरह लोगों से कटकर रह रहे थे उनका रहस्य भरा चाल चलन लोगो में कुछ भी जिज्ञसा नही पैदा कर रहा था। यह तो इन्सानी रिश्तो की मर्सिया है। हमे ठहर कर सोचना होगा चीजों के फिर से परिभाषित करना होगा। अपने यहां धर्म ग्रन्थों में कामना है कि पूरी पृथ्वी सुख से भरपूर हो। यह कामना सवाल कर रहा है।

Also read

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here