अवधनामा ब्यूरो
नई दिल्ली. अमेरिका और चीन के बीच जारी वर्चस्व की जद्दोजहद अब ट्रेड वार से स्पेस वार तक पहुँचने वाली है. सत्ता परिवर्तन के बाद अमेरिका में ट्रम्प की जगह जो बाइडन ने ले ली है. नयी सरकार के सामने सबसे प्रमुख मुद्दा सुरक्षा का ही है. अमेरिका चीन की ओर से अन्तरिक्ष में मिलने वाली सैन्य चुनौती को ही सबसे अहम मान रहा है. चीन की यह चुनौती और भी बड़ी इसलिए हो जाती है क्योंकि अमरीकी सेना की निर्भरता उपग्रहों पर ही निर्भर है.
जानकारी के अनुसार चीन ने करीब पन्द्रह साल पहले उपग्रह रोधी शस्त्र बनाने का काम शुरू किया था. अब चीन अमेरिका की उस सैन्य तकनीक को चुनौती देने में सक्षम हो गया है, जिससे अन्तरिक्ष मामलों में वह दूसरे देशों से आगे हो गया है. चीन के पास अब इतनी ताकत आ गयी है कि वह अपने सैन्य अड्डों पर मौजूद हथियारों से सैटेलाईट को भी गिरा सकता है. वह लेसर बीम के ज़रिये संवेदनशील सेंसर को नाकाम कर सकता है.
चीन पेंटागान का सैटेलाईट बेड़ों से सम्पर्क काटने में सक्षम हो सकता है. यह सैटेलाईट दुश्मन की गतिविधियों की न सिर्फ निगरानी कर सकता है बल्कि यह उसके हथियारों पर सटीक निशाना भी लगा सकता है.
अमेरिका के नए राष्ट्रपति अन्तरिक्ष तंत्र में अमेरिका की कमजोरी को देखते हुए आंतरिक सुरक्षा के बजट में बढ़ोत्तरी कर सकते हैं. अन्तरिक्ष में अपनी मज़बूत मौजूदगी को बनाए रखकर ही वह चीन के हमले को रोकने में कामयाब हो सकता है.
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अमेरिका पहले से ही अपनी सैन्य ताकत को बढ़ाने के लिए रोबोटिक्स और आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस के उपयोग को बढ़ावा देने में दिलचस्पी दिखा रहा है. बाइडन प्रशासन अगर अन्तरिक्ष मामलों में भी नए कदम उठाने की तरफ बढ़े तो भी कोई ताज्जुब नहीं होना चाहिए.