ऐतिहासिक ग्रंथों, पुराणों, रामायण, रामचरित मानस जैसे महत्वपूर्ण साहित्यिक ग्रंथों में प्रयागराज, गंगा- स्नान और गंगा के किनारे लगने वाले मेले का तो खूब उल्लेख है, लेकिन ‘कुंभ पर्व’ का कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है। किंतु भारतीय जनमानस में कुंभ मेले का विशेष महत्व है। कुंभ मेला केवल आध्यात्म और कल्पवास के लिए ही महत्वपूर्ण नहीं है, यह विभिन्न सांस्कृतिक परंपराओं के सम्मिलन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। सरकार को नदियों की सफाई पर विशेष ध्यान देना चाहिए। उक्त बातें आज उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान एवं हिन्दी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के संयुक्त तत्वावधान में ‘साहित्य और संस्कृति के आइने में कुंभ’ विषय पर आयोजित गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए हिंदी विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर मुश्ताक़ अली ने कहा।
गोष्ठी का आरंभ प्रो. विवेक निराला के वक्तव्य से हुआ। उन्होंने विस्तार से कुंभ के इतिहास को रेखांकित करते हुए यह स्थापित किया कि साहित्य में कुंभ की प्रशंसा और आलोचना- दोनों मिलते हैं । कुंभ और कल्पवास आत्ममंथन और त्याग की चेतना को उन्नत करता है। मार्क टुली, निर्मल वर्मा , त्रिलोचन आदि ने कुंभ पर सॉनेट , संस्मरण और रपट लिखा है। ‘चांद’ में इसके प्रति आलोचनात्मक टिप्पणी भी छपी थी। कुंभ का महत्व तप, त्याग और मानव कल्याण की त्रिवेणी में स्नान करने से बढ़ता है, जाति और ऊंच- नीच का भेद मिटाने से बढ़ेगा। प्रयाग अपनी ज्ञान गरिमा के लिए समादृत और विख्यात रहा है।
डॉ. धनंजय चोपड़ा ने कुंभ मेले का सजीव चित्रण करते हुए वहां के सांस्कृतिक वैविध्य, जन- जीवन के विविध रूप, चेतना के विविध स्तर , कुंभ के सांस्कृतिक सौंदर्य और उसके वैज्ञानिक एवं सामाजिक महत्व को विस्तार से रेखांकित किया। उन्होंने बताया कि कुंभ-स्नान और कल्पवास का आधार वैज्ञानिक है। इसको विचारधारा के चश्मे से नहीं देखा जा सकता। यह केवल आस्था का ही मामला नहीं है। इसे समझने के लिए जीवन को समझने वाली दृष्टि चाहिए। नियम- संयम और अनुशासन के साथ, त्यागपूर्ण जीवन जीते हुए यदि कोई कल्पवास करता है तो निश्चित ही उसमें नई ऊर्जा संचारित होती है।
हिंदी विभाग के प्रोफेसर कुमार वीरेंद्र ने बहुत विस्तार से माघ माह में कल्पवास, कुंभ पर्व उससे जुड़े साहित्यिक संदर्भों का रेखांकन किया । उन्होंने महाकुंभ -2025 की विशिष्ट उपलब्धियों को भी रेखांकित किया। उन्होंने आध्यात्मिक और वैज्ञानिक चेतना के द्वन्द्व , संघर्ष और समन्वय को उदाहरणों के साथ स्पष्ट किया।
गोष्ठी के आरंभ में विभागाध्यक्ष प्रो. लालसा यादव ने वक्ताओं का स्वागत किया। धन्यवाद ज्ञापन प्रो. राकेश सिंह तथा संचालन डॉ. सूर्य नारायण सिंह ने किया। वक्ताओं का स्वागत शाल और गुलदस्ते से भी किया गया जिसे प्रो.शिवप्रसाद शुक्ल, प्रो. राकेश सिंह, डॉ.शिवकुमार यादव और शोध छात्रा रिया त्रिपाठी ने संपन्न किया। डॉ. कल्पना वर्मा, प्रो. आशुतोष पार्थेश्वर, डॉ. संतोष कुमार सिंह , डा रश्मि शील, अंजू सिंह, बृजेश कुमार यादव सहित भारी संख्या में/शोध छात्र, छात्र-छात्राएं उपस्थित थे। संस्थान के निदेशक विनय श्रीवास्तव के निर्देशन में आयोजित इस कार्यक्रम की उपस्थित लोगो द्वारा भरपूर सराहना की गई और आशा व्यक्त की गई कि ऐसे आयोजन भविष्य में भी आयोजित किए जाएं।
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