ललितपुर। भागवत कथा के षष्टम दिवस की कथा में कथा व्यास स्वामी चन्द्रेश्वरगिरी ने कहा जो भगवान के भक्तों से प्रेम करता है भगवान उसे प्रेम करने लगते हैं। उन्होंने कहा गोवर्धन का प्रसंग हमें यही संदेश देता है कि भगवान की बनाई प्रकृति का संरक्षण संवर्धन करें, गायों की सेवा करें एवं भगवान के बने हुए हर एक तत्व का सम्मान करें। उन्होंने कहा इससे भगवान प्रसन्न होते हैं एवं हम सभी को भगवान की शरण प्राप्त होती है। उन्होंने कहा कि सनातन धर्म में प्रकृति के सम्बंर्धन के लिए नदी पर्वत पेड़ और पौधों तथा जीव जंतु सभी को पूजनीय माना गया है। कथा व्यास ने कहा भगवान अपने भक्त से दूर नहीं रह सकते, जब कोई भक्तों को भगवान से दूर करता है तो भगवान को भी कष्ट होता है। उन्होंने कहा भगवान प्रेम स्वरूप है, प्रेम के पास में बंध कर वह भक्तों का कल्याण किया करते हैं। कथा व्यास स्वामी चन्द्रेश्वरगिरी ने प्रयाग में कुम्भ के अवसर पर त्रिवेणी स्नान के महत्व की चर्चा करते हुए कहा कि वहां हम कहते हैं कि हम त्रिवेणी में स्नान करते हैं, जिसमें प्रत्यक्ष रूप से गंगा और यमुना नदी के संगम में स्नान का लाभ मिलता है। साथ ही कुंभ में जब बड़े-बड़े ज्ञानी महात्मा वहां उपस्थित रहकर हम सबको अपने प्रवचन का रस साधन करते हैं तभी हमें वास्तव मे सरस्वती में गोते लगाने का अवसर मिलता है। आज की कथा में श्री कृष्ण की लीलाओं का वर्णन स्वामी चंदेश्वर गिरी ने विस्तार पूर्वक किया। आज भगवान कृष्ण और रुक्मणी के विवाह की लीला का भी विस्तार से वर्णन किया गया। इस अवसर पर मुख्य यजमान संजय श्रीवास्तव, रवि चुनगी, विनोद खरे, कमल कुशवाहा, कैलाश बहादुर श्रीवास्तव, संदीप तिवारी, अखिलेश खरे, राजेश श्रीवास्तव, रोहित श्रीवास्तव, विजय श्रीवास्तव झांसी, विजय श्रीवास्तव, अजय श्रीवास्तव, हर्ष श्रीवास्तव, उत्कर्ष श्रीवास्तव, अर्पित श्रीवास्तव, सोम कांत श्रीवास्तव, शिवांशु श्रीवास्तव, अशोक कुमार श्रीवास्तव, शशि भूषण श्रीवास्तव, विपिन बिहारी श्रीवास्तव, रमन शर्मा, बिहारी लाल सविता, विशाल भटनागर, आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।
भगवत प्राप्ति के लिए भगवान की बनाई प्रकृति का संरक्षण करने का आह्वान
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