मिशन-2024के लिए भाजपा के सामने दलितों को साधने की चुनौती,घोसी उप चुनाव में बीजेपी का खिसका वोट–

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अवधनामा संवाददाता

सुल्तानपुर,लखनऊ। मिशन-2024की तैयारी में जुटी भाजपा के सामने दलितों को साधने की चुनौती है। मोदी-योगी सरकार की गरीबों को केंद्र में रखकर बनाई गई योजनाएं भी दलितों को नहीं रिझा पा रही हैं।ऐसा मैनपुरी लोकसभा के अलावा खतौली और घोसी विधानसभा सीटों के उपचुनाव में देखने को मिला है।बसपा के चुनावी मैदान से बाहर होने का फायदा भी भाजपा नहीं उठा सकी।अलबत्ता उसकी विरोधी सपा और रालोद उन्हें अपने पाले में खींचने में सफल रही हैं।ऐसे में दलितों के बीच पैठ बढ़ाने के लिए पार्टी को नए सिरे से कवायद करनी होगी।
मिशन-2024की तैयारी में जुटी भाजपा का पूरा फोकस सामाजिक समीकरण साधने पर है। इसी को ध्यान में रखकर तमाम जातियों के चेहरों को सरकार से लेकर संगठन तक में जगह दी गई है।मगर दलित वोट बैंक को साधने में पार्टी को खासी मुश्किल हो रही है।तीन उपचुनावों के नतीजे बता रहे हैं कि दलितों को रिझाने में भाजपा की अपेक्षा उसके विरोधी ज्यादा सफल रहे हैं।नतीजे इस बात की भी चुगली कर रहे हैं कि पार्टी के मौजूदा दलित चेहरे सजातीय मतदाताओं का रुख भाजपा की ओर मोड़ने में भी कोई खास भूमिका नहीं निभा सके हैं।घोसी की बात करें तो भाजपा प्रत्याशी दारा सिंह चौहान दलित छोड़ खुद सजातीय वोटरों के भी एकछत्र वोट न पा सके।
विरोधी पार्टियां मीडिया प्रबंधन में भी निकल गई आगे–
पहले माना जा रहा था कि खतौली हो या मैनपुरी और या फिर घोसी, चुनाव मैदान में बसपा के न होने का फायदा भगवा खेमे को हो सकता है। मगर तीनों ही जगह ऐसा देखने को नहीं मिला। खतौली में आजाद समाज पार्टी के चंद्रशेखर रावण की मदद से जयंत चौधरी दलितों को रिझाने में सफल रहे तो मैनपुरी और घोसी में सपाई प्रबंधन दलितों में ज्यादा बेहतर दिखा था। हालांकि लोकसभा चुनाव का गुणा-गणित विधानसभा चुनावों से इतर है लेकिन दलित वोटरों को लेकर भाजपा को पूरब से पश्चिम तक नए सिरे से बिसात बिछानी होगी।कुछ नए चेहरे और विकल्प तलाशने होंगे।
पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा ने दी थी नसीहत–
दलितों वोट बैंक को लेकर बीते दिनों दिल्ली में लोकसभा प्रवास योजना की बैठक में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी पार्टीजनों को नसीहत दी थी।उन्होंने कहा था कि लग्जरी गाड़ियों में बैठने और कलफदार कुर्ते-पायजामे पहनकर दलित बस्तियों से गुजरने से दलितों में पैठ नहीं बढ़ेगी।इसके लिए सादगी के साथ उनके बीच जाना होगा। दरअसल दलित वोट बैंक को साधने को लेकर भाजपा नेतृत्व भी चिंतित है।

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