संस्कृत ही भारत का वैभव एवं आत्मा भी है.. डॉ रामचन्द्र

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अवधनामा संवाददाता

महरौनी(ललितपुर)। विश्व में ज्ञान विज्ञान की पहली किरण भारत भूमि पर प्रकट हुई थी। भारतवर्ष का संपूर्ण साहित्य, वाङ्मय, दर्शन एवं चिंतन संस्कृत भाषा में ही सन्निकट है। चारों वेद, ब्राह्मण, दर्शन, उपनिषद एवं अन्य सभी शास्त्रों को जानने के लिए संस्कृत का ज्ञान अनिवार्य है। संस्कृत भारत की प्रतिष्ठा है और संस्कृत ही भारत का वैभव एवं आत्मा भी है। संस्कृत के ज्ञान के बिना कोई भी व्यक्ति भारत की परंपरा एवं इतिहास को नहीं जान सकता। यह विचार कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के आईआईएचएस संस्थान के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डॉ रामचन्द्र ने संस्कृत दिवस की पूर्व संध्या पर आयोजित भारत को समझो अभियान एवं आर्यों के महाकुंभ आर्य समाज महरौनी वेविनार में मुख्य वक्ता के रूप में कहे। उन्होंने कहां की संपूर्ण समाज को स्वस्थ एवं उल्लसित बनाने का विधि विधान शास्त्रों में प्राप्त होता है। अथर्ववेद ने कहा है कि प्रत्येक मनुष्य को परस्पर इस प्रकार से प्रेम करना चाहिए जैसे मां अपने नवजात वत्स से करती है। वेदों में भूमि को माँ कहा गया है और मनुष्य को उसका पुत्र। डॉ. रामचन्द्र ने चंद्रयान- 3 के सफल मिशन को नेतृत्व प्रदान करने वाले इसरो के अध्यक्ष एस. सोमनाथ को उद्धृत करते हुए कहा कि वर्तमान समय की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी नई तकनीकी को समझने के लिए भी संस्कृत अत्यंत सहायक है। पर संस्कृत को केवल तकनीकी तक सीमित करना उचित नहीं होगा। संस्कृत का श्रवण करना एवं संस्कृत के श्लोक और मन्त्रों का पाठ करना भी व्यक्ति को सब प्रकार के तनाव से मुक्त कर देता है। उन्होंने बताया कि महाभारत में जीवन के व्यवहार के असंख्य मूल सूत्र व्याप्त हैं उन्हें पढ़कर व्यक्ति जीवन की समस्त कलाओं में निष्णात हो जाता है। चरक संहिता एवं सुश्रुत संहिता में आयुर्वेद का ऐसा सूक्ष्म ज्ञान है कि उसको जानने के बाद उन ऋषियों के प्रति व्यक्ति नतमस्तक हो जाता है। कौटिल्य का अर्थशास्त्र राजनीति एवं श्रेष्ठ समाज के निर्माण की संपूर्ण रूप रेखा प्रस्तुत करता है। महाकवि कालिदास के संस्कृत साहित्य को पढ़कर व्यक्ति वर्तमान जीवन में ही स्वर्गीय अनुभूति को प्राप्त करता है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार की तरफ से श्रावणी पूर्णिमा को संस्कृत दिवस मनाया जाता है और आज के दिन हमें संकल्प लेना चाहिए कि हम सभी संस्कृत अवश्य पढ़ेंगे। संस्कृत को केवल किसी जॉब को पाने के लिए पढ़ने की आवश्यकता नहीं है बल्कि जीवन को पाने के लिए संस्कृत आवश्यक है। संस्कृत के अभाव में हमारा समाज संस्कार विहीन हो रहा है और जीवित होते हुए भी मृत्यु के समान प्रतिभासित हो रहा है। संस्कृत की भाषागत वैज्ञानिकता को स्पष्ट करते हुए मुख्य वक्ता ने कहा कि कुछ शताब्दियों पूर्व का अंग्रेजी भाषा का साहित्य आज अपने मूल अर्थ को स्पष्ट करने में पूर्ण रूप से सफल नहीं है परंतु अनादि काल पूर्व की रचना ऋग्वेद एवं लगभग 5000 वर्ष पूर्व लिखी हुई श्रीमद्भगवद्गीता एवं अन्य साहित्य को संस्कृत शिक्षण का प्रारंभिक ध्यान रखने वाला विद्यार्थी भी समझ सकता है। यही भाषा की महत्व विशेषता है जो इसे भाषा नहीं अपितु देवभाषा बनाती है। आयोजन में डॉ व्यास नंदन शास्त्री,मुनि पुरुषोत्तम वानप्रस्थ, डॉ राकेश कुमार आर्य नोएडा,सहित सम्पूर्ण विश्व से आर्य जन जुड़ रहें हैं। संचालन संयोजक आर्य रत्न शिक्षक लखन लाल आर्य ने किया।

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