आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज ने राष्ट्रपति को भेजा ज्ञापन
बाराबंकी। हिन्दू दलित की तरह ही दलित मुसलमानों और दलित ईसाईयों को भी अनुसूचित जाति की सूची में शामिल किया जाए।
ताकि यह वर्ग भी देश के समान व्यवहार की व्यवस्था से लाभान्वित हो सके तथा इन्हें भी संविधान के अंतर्गत प्रदत्त अधिकार व लाभ हासिल हो सके।
यह मांग ऑल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वसीम राईन ने जिलाधिकारी के माध्यम से राष्ट्रपति को भेजे गए ज्ञापन में कई है। उन्होंने पत्र में कहा है कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 21, 25 में साफ लिखा है कि भारत में बसने वाला इंसान, चाहे वह किसी धर्म, जाति, लिंग, नस्ल का हो उसके साथ कोई भेदभाव नहीं होगा, मगर आजादी के बाद 10 अगस्त 1950 को राष्ट्रपति अध्यादेश शेड्यूल कास्ट 341 के पैरा 3 के तहत सिर्फ हिंदू दलित को अनुसूचित जाति का लाभ दिया गया। दूसरे धर्म के मानने वालों को अनुसूचित जाति का लाभ लेने से वंचित कर दिया गया है। सिखों को 1956 में और बौद्धों को 1990 में उसका लाभ मिला लेकिन मुसलमान और ईसाई आज तक इस लाभ से वंचित हैं। दलित तो दलित है, उसका धार्मिक विश्वास और पूरा कुछ भी हो क्या यही सामान नागरिकता का संदेश है? यदि ऐसा है तो समानता में असमानता मौलिक अधिकार का हनन है और जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 16, 21, 25 की खिलाफ वर्जी है और संविधान विरुद्ध है जो हिंदुस्तान को एक सेक्यूलर और लोकतांत्रिक मुल्क होने की जमानत देता है।
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ने राष्ट्रपति से मांग की है कि उक्त मांगों की प्रतिपूर्ति स्वविवेक पर आधारित है, जिसे स्वीकृति मिलने पर सभी पसमांदा समाज के नागरिकों की सच्ची समाजवादी सहानुभूति एवं विचारो का प्रकटीकरण हो होगा तथा दलित मुसलमानों और दलित दलित ईसाइयों की तरक्की का रास्ता खुलेगा।