एस. एन. वर्मा
तत्कालीन प्रधानमंत्री इन्दागांधी ने 1973 में जब प्रोजेक्ट टाइगर की शुरूआत की थी तो बाघो की संख्या मात्र 1827 थी जबकि 1947 में देश स्वतन्त्र हुआ था तो बाघो की संख्या दस हजार से ज्यादा थी। आज प्रोजेक्ट टाइगर लागू किये जाने के बाद 50 साल बाद बाघों की संख्या बढ़ कर 3167 हो गई। पर्यावरण के विकास और सभ्यता के विकास में बाघ एक अहम कड़ी है। इकालोजी के लिहाज से इनकी उपेक्षा विनाशक होगी।
आजादी के बाद वनो के संरक्षण के कोई असरदार नियम नही थे। इसलिये जंगल कटते चले गये। राजा महाराजा पोचर, स्मगलर जंगली जानवरों का बेलगाम शिकार करते गये। बाघ के चर्बी, चमड़े, हड्डियों की तस्करी होने लगी। इन सबने बाघों की संख्या पर बुरा असर डाला साथ ही आजाद हुये देश की आर्थिक क्षेत्र में बहुत समस्याये थी इसलिये अधोसंरचना के लिये बांध के लिये नहरों के लिये, उद्योग लगाने के लिये जंगलों की सफाई बहुत तेजी से होने लगी जिसमें इकालजी तो बिगाड़ा ही बाघ की संख्या को घटा कर सोचनीय बना दिया। चीते तो गायब ही हो गये थे जिन्हें नामीबिज से मंगा कर बढ़ाया जा रहा है।
प्रधानमंत्री ने बिग कैट परिवार को बचाने और बढ़ाने के लिये अन्तराष्ट्रीय बिग कैट एलायन्स की शुरूआत की है। इसमें इस वंश के जीवो के संरक्षण के लिये 97 मुल्क आपस में सहयोग करेगे। बिग कैट परिवार के सदस्यों सिंह, तेन्दुआ, हिम तेन्दुआ, चीता, प्यमा, जगुआर जैसे वन्य जीवो के संरक्षण के लिये सब मिलकर काम करेगे।
1990 में जब मुल्क में उदारीकरण का दौर आया तब ढाचागत विकास से जुड़ी गतिविधियों ने जोर पकड़ा। इसका विनाशक प्रभाव वन्य क्षेत्र और वन्य जीवों पर पड़ा। जगल सिमटते गये जंगली जानवर भी सिमटते गये। और सिमटते सिमटते लुप्त होने के कगार पर आ गये। चीता तो गायब ही हो गया था।
जब प्रोजेक्ट टाइगर शुरू हुआ तो मुल्क में सिर्फ नौ बाघ अभयाराज्य थे। अब बढ़कर 53 पर पहुच गये है। कुछ नये अमरण्य बनाने के लिये मन्थन जारी है। पश्चिमी घाट में भी बाघों की संख्या में गिरावट आई। भारत की अनुकूल प्राकृति संसाधनों के बल पर विशेषज्ञों की राय है कि कुछ दशकों में बाघों की आबादी पांच हजार से भी ज्यादा हो सकती है। पर कुछ विशेषज्ञ वन संरक्षण अधिनियम में प्रस्तावित संशोधनों को लेकर संशकित है। चिन्ता स्वाभाविक है इससे वनों को कटाई में छूट मिल सकती है। प्रधानमंत्री का दृष्टिकोण और कथन कि परिस्थितिकी और आर्थिक गतिविधियों में सन्तुलन वन्य जीवों के साथ सहअस्तिव के साथ सन्तुलन जरूरी है।
भारत की तो यह वैदिक परम्परा सोच और आदर्श रहा है और है सभी के साथ सहअस्तित्व।