एस. एन. वर्मा
साऊदी अरब और ईरान एक दूसरे के पारम्परिक प्रतिद्विन्दी रहे है। खबर आई है कि दोनो देश प्रतिस्पर्धा को भुलाकर आपस में कूटनीतिक सम्बन्ध बनाने के लिये सहमत हो गये है। इस हृदय परिवर्तन का श्रेय चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग के मध्यस्थता को जाता है। इस घटना ने दुनियां का ध्यान खीचा है क्योंकि इसका असर दूरगामी होगा। शी चिनफिंग ने अभी अभी राष्ट्रपति के रूप में तीसरा कार्यकाल शुरू किया है। इसकी शुरूआत इस धमाकेदार समाचार के साथ हुआ है। चीन के पेइचिंग में साऊदी अरब और ईरान के बीच चार दिनों से यह अघोषित बातचीत हो रही थी। दोनो देशो के प्रतिनिधि आपसी बात चीत चीन की मध्यस्थता में कर रहे थे। चिनफिंग ने दोनो को आपसी कूटनीति सम्बन्ध फिर से बहाल करने के लिये तैयार कर दिया। चीन के राष्ट्रपति ने अपने तीसरे कार्यकाल के उपलक्ष में यह तोहफा दुनियां को दिया जिसे दुनिया आश्चर्य से देख रही है और नफा नुकसान भावी कदम उठाने का हिसाब लगा रही है। क्योकि इस आशय का संयुक्त बयान चीन, ईरान और साऊदी अरब के सम्मिलित सहमति से आया है। इसे चीन की बडी कामयाबी मानी जा रही है।
अभी तक यह अमेरिका का क्षेत्र रहा है। हालाकि अभी भी इस पूरे क्षेत्र में सैन्य शक्ति और राजनितिज्ञ प्रभाव में अमेरिका का ही दबदबा है। पर चीन ने इस कुटनीतिक सम्बन्ध को बहाल करवाकर अपना प्रभाव बढ़ाने की मन्शा जाहिर कर दी है। इस क्षेत्र के अन्तराष्ट्रीय मसलों पर अमरिका पहले से ही हिस्सा लेता रहा है। इस काण्ड से अमेरिका स्तध है।
इस क्षेत्र में चीन का प्रभाव बढाने की दिशा में अमेरिका का ढीलापन है। पहले अमेरिका तेल, गैस के लिये मध्य पूर्व देशों पर आश्रित था पर जबसे शेल आयल और गैस भन्डार मिला है अमेरिका की दिलचस्पी इन देशो में कम हो गई। वह तेल निर्यात के लिया खुद खड़ा हो गया जो मध्यपूर्व देशो के लिये असुविधाजनक बन गया है। इसके अलावा चीन विस्तारवादी नीति की तहत हिन्द प्रशान्त में अपनी घुसपैठ बढ़ाने लगा है अमेरिका चीन की आक्रमक शैली के परिप्रेक्ष में अमेरिका ने इस क्षेत्र मे अपनी प्राथमिकता बढ़ा दी। मध्यपूर्व से उसका ध्यान हटने लगा। इसका फायदा उठाकर चीन ने अपनी उपस्थिति दर्ज करानी शुरू कर दी। ईरान और साऊदी अरब की दोस्ती उसी का नतीजा है। चीन इस क्षेत्र में खाली हुये स्पेस को भरने में लग गया है। पर अभी मदद देने के मामले में अमेरिका अभी भी सबसे आगे है इसे मध्यपूर्व के देश महसूस करते है।
चीन ने इस क्षेत्र के देशों से व्यापरिक सम्बनध बढ़ा कर इन देशों का सबसे बड़ा व्यापारिक हिस्सेदार बन गया है। इतना ही नहीं चीन वहां अपना निवेश भी बढ़ाता जा रहा है। इसी कि तहत वह इन्फ्रास्ट्रक्चर के भी प्रोजेक्ट बढ़ाता जा रहा है। चीनी इसे वैश्विक सुरक्षा के लिये उठाया जा रहा कदम बता रहा है। साथ ही यह भी कहता है ये सम्बन्ध उदार प्रजातन्त्री के क्षेत्र के बाहर का है। जिन देशों के शासक लोकतन्त्र के प्रति संकुचित रवैया रखते है उन देशों के लोगो को चीन का यह आचरण आकर्षित करता दिख रहा है।
वैश्विक स्तर पर बड़ी चुनौती है। आगे और क्या रूप लेगा अभी सही कयास नहीं लगाया जा सकता पर अगर चुनौती किसी रूप में आती है तो निपटने के लिये तैयार रहना पडे़गा। जहां तक भारत का सम्बन्ध है उसके सम्बन्ध दोनो देशों से बहुत आत्मीय है। दोनो के आपसी हित जुड़े हुये है। इसलिये इन देशों से और भारत के बीच किसी तरह की दरार आने की सम्भावना नही लगती। चीन से भी भारत के तनाव के बीच कोई विस्फोटक स्थिती नही आने वाली। क्योकि दोनो देश वार्ता करते रहते है। अमेरिका के प्रभाव में चीन की यह घुसपैठ उसे रास नहीं आयेगी यह तय है। अमेरिका ताइवान के रूख से चीन सहज नहीं है। पर अमेरिका है अरब मुल्क नहीं। डेमोक्रेट और डिक्टेटर की प्रतिस्पर्धा है।