अवधनामा संवाददाता
बाराबंकी। यूपीए यानी संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के कार्यकाल में देश में सर्वाधिक दंगे दर्ज किए गए। यूपीए का नेतृत्व करने वाली कांग्रेस आज भारत जोड़ो यात्रा निकाल कर एकता का नाटक कर रही है। पूरा देश इनकी हकीकत जान चुका है। जोड़ तोड़ व देश को बांटने की राजनीति करने वाली कांग्रेस सरकार कानून व्यवस्था के नाम पर बदतर साबित हुई।
यह बात आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज के प्रदेश अध्यक्ष वसीम राईन ने अपने बयान में कही। उन्होने कहा कि कांग्रेस खुद के गिरेबां में झांक कर कभी नहीं देखती और दूसरों को घेरना उसकी आदत बन चुकी है। आंकड़े कभी झूठ नहीं बोलते, एनडीए से ज्यादा खराब कानून व्यवस्था यूपीए के कार्यकाल में रही है। दंगों ने सामाजिक ताना बाना बिगाड़ा, सौहार्द को चोट पहुंचाई और आमजन को दहशत के साये में जीने को मजबूर किया। थोड़ा पीछे मुड़कर यूपीए के कार्यकाल पर नजर डाली जाए तो तस्वीर खुद ब खुद साफ हो जाती है। 2004 में साम्प्रदायिक दंगों के 677 व 2005 में 779 मामलो में 258 लोग मारे गए, 2006 में 698, 2007 में 761 व 2009 के दंगे मिलाकर कुल 357 लोगों ने अपनी जान गवांई। इसी तरह 2012 में 668 व 2013 में 823 मिलाकर 227 लोग मारे गए। 2008 में सर्वाधिक साम्प्रदायिक दंगों के मामले सामने आए, जिसमें 167 लोग निर्दोष मारे गए।
वसीम राईन ने कहा कि कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार न जनता को बेहतर कानून व्यवस्था दे सकी और न ही निडर होकर रहने का माहौल, उसी पार्टी के नेता आज भारत जोड़ो यात्रा निकालकर लोगों का ध्यान बांटने का प्रयास कर रहे हैं। देश की जनता ने यूं ही अपना मिजाज नहीं बदला। लोग इस पार्टी और इसकी मौन सरकार से बेइंतहा परेशान हो चले थे। यह वहीं कांग्रेस है जिसकी सरकार में सर्वाेच्च ओहदे पर बैठा व्यक्ति रबर स्टाम्प कहा जाता था और सरकार का रिमोर्ट कंट्रोल किसी और के हाथ में रहता था।
उन्होने कहा कि कांग्रेस का इतिहास धोखा देने का रहा है। इस पार्टी ने किसी समाज का भला नहीं चाहा। बस चाटुकारांे को सत्ता सुख पहुंचाते रहे। इसका सबसे बड़ा प्रमाण देश की 85 फीसदी पसमांदा मुस्लिम आबादी है, जिसे बुनियादी हक से वंचित रखकर पिछड़ेपन का दंश सहने को मजबूर कर दिया। जबकि यह आबादी कांग्रेस की बार बार सरकार बनवाने से कभी पीछे नहीं हटी। इसका सिला पसमांदा समाज को यह मिला कि आर्टिकल 341 पर धार्मिक पाबंदी लगवाकर तरक्की की राह में रोड़ा अटका दिया। न सरकार में जगह दी और न ही संगठन में रहने दिया। इसके उलट 15 फीसदी अशराफ मुसलमानों को मलाई काटने का पूरा मौका दिया।