एक सफर ऐसा भी……

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आसिया खान✍️

हुआ यूं की हम एक दिन अपनी जिंदगी को कोसते हुए और एक गाने के इन मिसरो को गुंगुनाते हुए,……

हमने तो जब कलिया मांगी काटो का हार मिला…..

ये गुनगुनाते हुए अपना सफर शुरू किया। स्कूटी पर सवार किसी राह से होकर गुजर ही रहे थेl आसमान की तरफ नज़र की तो मौसम का मिजाज खराब सा था। इस वजह से, हमेशा की तरह हम तेज उड़ाते हुए नहीं, बल्की धीमी रफ्तार मे स्कूटी चला रहे थे। अचानक हमारी नज़र एक दुबले-पतले,खस्ताहाल शख्स पर पड़ी, यह बड़ी बात नहीं थी, बात यह थी कि पड़ी हुई नज़र वापस न लौट सकी, वही ठहर सी गईl हमने सोचा कि हम रोज़ाना दिन में दस बार  अपनी जिंदगी को कोसते हैं और कहते हैं कि ये हासिल न हुआ वो हासिल न हुआ !…. और यह बीमार-अज़ार शख्स जिसके पास तो रहने के लिए छत भी नहीं है l पानी से शराबोर (लतपत) उस खस्ताहाल व्यक्ति को देखा तो वो एक पेड़ के नीचे पनाह लिए हुए था l हाड़ कपाने वाली सर्दी, बौछार वाली बारिश, काँपता हुआ बीमार सा लग रहा वह बुज़ुर्ग, जिसके बदन पर नाममात्र बचे हुए कपड़ो के चंद चिथड़े थे। स्याह रात और तेज हवा में, वह पेड़ पर अपने समान से राशन निकालकर भीगी हुई  माचिस से,अपने पास पड़ी, चन्द लकड़ी के गीले टुकडों को घंटों से जलाने की जद्दोजहद कर रहा थाl हम दूर से यह मंजर देखते रहे, आँखों में बारिश की बूंदों के साथ, आँसुओं का सैलाब सा आ रहा था, साथ  ही दिल में एक अजीब सी उलझन  के साथ  गुलज़ार साहब की चंद लाइनें याद आ रही थी……

‘कि मिला तो बहुत कुछ हैं इस दुनिया में,
हम बस गिनते उसे है ,जो हासिल न हुआ…….

…. अपनी तकलीफ कम हो गई जब उन बाबा  की खस्ताहाली और गरीबी हमने देखी, फ़िर उस वक़्त हमारी कुछ अक्ल ठिकाने आई और आज कल हमें एक नया शौक चढ़ा शायरा बनने का, और शौक परवान चढ़ रहा है ,खुदा के फजल से थोड़ा बहुत आज कल लिखभी रहे हैं और छपने भी लगा है, तो ये चंद लाइन्स तमाम माजरे को देखने के बाद उन बाबा की गरीबी, उनके हलात, और उनके जिंदगी के जज्बे को देख कर, हमारे दिल से निकली…साथ ही उस वक्त हमारे दिल में अपनी जिंदगी से जो शिकवे थे। वो भी कम हो गए और हमारी जिंदगी जैसे खुद हमारे कानो में चुपके से आकर बोली कि……..

तुझे गिला है तुझे कम मिला है …

यहाँ कितने ऐसे भी है जिन्हे,

जिंदगी से कुछ भी न मिला है,

फिर भी हासिल चिज़ो के लिए

करते रोज़ रब का शुक्रिया है ….

मैंने इन अल्फाजो के साथ अपने आपको इस जिंदगी की तरफ से जवाब दिया और फिर हमने वापसी का रास्ता इख्तियार किया। रस्ते भर बस जो हासिल है उसका शुक्र अदा किया, और मुस्कुरा के इस गीत के साथ अपने सफर पर रवाना हो लिये कि ….

जो मिल गया उसी को मुकद्दर समझ लिया….

जो खो गया मैं उसको भुलाता चला गया…

मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया…..

वो सफ़र तो खत्म हो गया और मैं सही सलामत घर तो पहुँच गई पर, बारिश की वह रात ऐसी थी की आज तक ज़ेहन से ना निकल सकी  ।

.. तो इस तमाम वाकये का  लब्बोलुआब ये है जनाब की …दिल में आया की अपने जैसे नाशुक्रों  को ये पैग़ाम पहुँचाऊ ,अपनी कुछ मौलिक पंक्तियों के ज़रिये ……

‘मदद बेशक न करे आप बस ये देख ही ले,….

लोग किस तरह बसर जिंदगी करते है….’

 

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