एक बार की बात हैं, एक गुरू और शिष्य दोनों एक अन्जान नगर में पहुँचे। वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि उस शहर में सबकुछ बहुत सस्ते में मिलता था और सबका भाव एक समान था।
यानि एक टका में चाहे एक किलो सब्जी लो चाहे एक किलो सोना लो सबका भाव एक समान ही था। उसमे ज़रा भी ऊंच नीच नहीं थी।
इस प्रकार वहां के माहौल को देखते हुए चेला बहुत खुश हुआ। उसके तो जैसे अब मजे ही हो गए। उसे अब वहां का माहौल खूब पसंद आने लगा।
लेकिन उसके गुरु को ये बात बिल्कुल ठीक नहीं लगी। उन्होंने अपने चेले से कहा कि वत्स अब ज्यादा दिन यहाँ रहना ठीक नहीं हैं। यहाँ का राजा बिल्कुल मुर्ख हैं और उसके राज में गधे घोड़े यानि बुद्धिमान और मुर्ख सब बराबर समझे जाते हैं। अर्थात यह एक मूर्खों की नगरी हैं, अगर यहाँ का राजा कह दे तो दिन को रात और रात को दिन माना जाता हैं।”
इसलिए अब जल्दी ही हमें इस नगरी को छोड़कर कहीं ओर जगह चले जाना चाहिए। अगर हम यहाँ रहे तो कभी भी मुसीबत में फंस सकते हैं।”
गुरू की यह बात चेले को पसंद नहीं आयी। उसने कहा कि गुरूजी मुझे तो ऐसा कुछ भी नहीं लगता। फिर भी अगर आप जाना चाहते हैं तो आप चले जाईये। मैं तो अब यहीं पर रहना चाहता हूँ।
गुरूजी ने अपने चेले को खूब समझाया कि वो उनकी बात मान ले और उनके साथ दूसरी जगह चले लेकिन चेले ने अपने गुरु की एक न सुनी।
अब गुरूजी ने अकेले ही जाने का निश्चय किया और जाते जाते उन्होंने अपने चेले से कहा – देखो वत्स! अब जैसी तुम्हारी इच्छा। फिर भी तुम अपना ख्याल रखना और अगर कभी मुसीबत आन पड़े तो एक बार मुझे जरूर याद कर लेना। मैं उसी समय तुम्हारी मदद के लिए आ जाऊंगा।
और ऐसा कहकर गुरूजी अकेले ही वहां से चले गए।
अब चेला अकेला ही खूब मजे से रहने लगा और खूब खा खाकर थोड़े ही दिनों में वो मोटा हो गया।
अब एक दिन अचानक जोरदार बारिश हुई जिसके कारण एक घर की दीवार टूट गयी और उसके नीचे दबने से एक बकरी की मौत हो गई।
अब बकरी के मालिक ने वहां के राजा से शिकायत कर दी। राजा ने जब बकरी के मालिक को बुलाया तो उसने कहा कि पड़ौसी की दीवार गिरने से मेरी बकरी की मौत हुई हैं।
तो राजा ने उसके पड़ौसी को बुलाया और उससे पूछा -“देखो तुम्हारी दीवार गिरने से एक बकरी की मौत गयी हैं। अब इसकी सजा मौत हैं।”
ये सुनकर वो आदमी घबराकर बोला – “नहीं राजा साहब! इसमें मेरी कोई गलती नहीं हैं। दरअसल ये सारी गलती तो उस दीवार को चुनने वाले कारीगर की हैं। शायद उसी ने दिवार ठीक से नहीं बनायीं होगी तभी वो बारिश से गिर गयी।”
तो राजा ने उस कारीगर को भी बुलाया और उससे कहा – ” देखो तुमने कैसी घटिया दीवार चुनी हैं जो एक ही बारिश में गिर पड़ी और जिससे एक बकरी को मौत हो गयी हैं। इसलिए अब मैं तुम्हें फांसी की सजा देता हूँ।”
ये सुनकर कारीगर बहुत घबरा गया और उसने कहा – “महाराज! इसमें मेरी कोई गलती नहीं हैं क्यूंकि मैंने तो पूरी ईमानदारी से उस दीवार को चुना था। अब ये तो उस व्यक्ति की कमी हो सकती हैं जिसने उस समय दीवार का मसाला तैयार किया था।”
“लगता हैं उसी ने ठीक से मसाला तैयार नहीं किया होगा। यदि वो पूरी ईमानदारी से काम करता तो आज वो बकरी जिन्दा होती।”
अब राजा ने उस व्यक्ति को भी दरबार में बुलाया और उससे कहा – “देखो तुमने कितना घटिया काम किया हैं, तुमने उस दीवार को चुनने का मसाला भी ठीक से तैयार नहीं किया। तुमने सरासर कामचोरी की हैं। अतः अब तुम्हें फांसी की सज़ा दी जाती हैं।
ये सुनकर वो आदमी बहुत रोया और उसने राजा से खूब मिन्नते की कि उसकी जान बख्श दी जाये लेकिन राजा अपने फैसले पर कायम रहा।
अब फांसी का फंदा तैयार किया जाने लगा। जब उस आदमी को फांसी दी जाने लगी तो फांसी का फंदा उसके गले में ढीला रह गया। यानि फंदा थोड़ा ज्यादा बड़ा बन गया था।
अब क्या किया जाये क्यूंकि फंदा थोड़ा बड़ा बन गया फिर भी फांसी तो हर हाल में दी जानी थी फिर चाहे किसी दूसरे को ही क्यों न देनी पड़े। इसके लिए अब ऐसे आदमी की तलाश की जाने लगी जिसके गले में वो फांसी का फंदा फिट बैठ सकें।
अब राजा के सिपाही ऐसे व्यक्ति की तलाश करते हुए उसी चेले के घर तक जा पहुंचे। उन्होंने उस चेले को पकड़ा और जब उसके गले का नाप लिया तो फंदा एकदम फिट बैठ गया। अब सिपाही उस चेले को लेकर आये और फांसी पर चढ़ाने की तैयारी करने लगे।
ये देखकर चेला बहुत घबरा गया। उसने राजा से खूब मिन्नतें की कि उसकी जान बख्श दी जाये क्यूंकि उसने तो कोई गुनाह ही नहीं किया हैं।
लेकिन राजा ने उसकी भी बात नहीं सुनी और चेले से कहा – “देखो युवक हम किसी और को फांसी की सजा का हुक्म सुना चुके हैं लेकिन उसके गले में ये फंदा बहुत ढीला हैं। इसलिए उसके बदले में अब तुम्हें फांसी दी जा रही हैं। अब मैं अपना हुक्म तो वापस नहीं ले सकता। इसलिए इस फंदे पर किसी को तो झूलना ही पड़ेगा न!”
अब तो चेला बहुत घबरा गया क्यूंकि मौत अब उसे अपने सामने ही नजर आ रही थी। तभी उसे अपने गुरु की बात याद आयी और उसने मन ही मन अपने गुरु को याद किया।
इसके बाद उसके गुरु राजा के दरबार में पहुँचे और कहा- “हैं वत्स ये तो तुम्हारे लिए बहुत सौभाग्य की बात हैं कि तुम ऐसे समय मृत्यु को प्राप्त हो रहे हो जब ऐसा योग बन रहा हैं जब मृत्यु को प्राप्त होने वाला सीधा परमात्मा से मिलता हैं। यानि उसे स्वर्ग में जगह मिलती हैं और उसे हमेशा के लिए मुक्ति मिल जाती हैं।”
ये सुनकर राजा ने कहा – “हैं गुरुवर! अगर ऐसा हैं तो फिर मैं स्वयं ही इस फांसी पर चढूँगा।”
फिर उसने सैनिकों को हुक्म दिया कि अब फांसी के फंदे पर उस यूवक को नहीं बल्कि उसे ही फांसी पर चढ़ाया जाये।
इसके बाद राजा को जल्दी से फांसी पर चढ़ा दिया गया। और इस प्रकार एक चौपट राजा अपनी ही मूर्खता से मारा गया।