अवधनामा संवाददाता(आदिल तन्हा)
बाराबंकी। मित्र धर्म कैसे निभाया जाता है यह कोई खांटी समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव से सीखे। समाजवादी पार्टी के संस्थापकों में से एक या यूं कह लिया जाए नीव के पत्थर बाबू बेनी प्रसाद वर्मा अपने सखा मुलायम सिंह से बेहद नाराज हो गए, पार्टी छोड़ नया दल बनाया, उनके खिलाफ बयानबाजी से लेकर काफी कुछ। यह सब एकतरफा ही रहा, सवाल उठने पर नेता मुलायम बस यही कहते कि वर्मा जी घर के सदस्य हैं एक दिन वापस आ जाएंगे मगर मजाल है कि विशुद्ध राजनीतिज्ञ और कुशल खिलाड़ी मुलायम सिंह ने बाबू बेनी प्रसाद के बारे में एक शब्द कहीं कहा हो। बल्कि बेनी बाबू की वापसी के बाद उनका रवैया अंदाज पहले जैसा ही रहा। ऐसे थे जमीनी नेता मुलायम सिंह उन्हें भला कौन विस्मृत कर सकेगा। बाराबंकी जिले से उनके लगाव के अनगिनत किस्से हैं एक हो जिक्र किया जाए। उनकी मृत्यु असमय एक रिक्तिता छोड़ गई, जिसकी भरपाई असम्भव ही नही सम्भव भी नही है।
1992 में जब समाजवादी पार्टी की नींव रखी गई, उस समय मुलायम सिंह के बेहद करीबियों में बेनी प्रसाद वर्मा भी थे, पार्टी को आगे बढ़ाने पालने पोसने से लेकर संघर्ष की सिंचाई तक बेनी बाबू बराबर साथ रहे, साथ रहने का सिला भी उन्हें बराबर मिलता रहा। जब सपा की सरकार बनी, बेनी बाबू खास मंत्री बने। एक सरकार में उनकी मर्जी पर पुत्र राकेश वर्मा को कारागार मंत्री बनाया गया। केंद्र में सरकार बनी तो बेनी बाबू को संचार मंत्रालय जैसा अहम विभाग दिया गया। बहरहाल सपा में एक कथन बहुत मशहूर हुआ कि मुलायम सिंह से कोई काम करवाने के लिए बेनी बाबु सा दूसरा कोई नही, पर वक़्त ने करवट ली और अमर सिंह से लेकर आज़म खान का दबदबा पार्टी में काफी हद तक बढ़ गया, इन दोनों की सुनवाई होने लगी। इस बीच बेनी बाबू ने खुद को अकेला महसूस किया और उनका यह एहसास उनकी खुद्दारी की वजह से और बढ़ गया। बस क्या था एक दिन उन्होंने विस्फोट कर दिया, नाराज होकर वह पार्टी से किनारे हो गए। मान मनुहार का कोई असर नही हुआ और नाराजगी कायम रही इसी क्रम में बेनी बाबू ने एक नई पार्टी के गठन का एलान करने के साथ ही करके दिखा भी दिया। हालांकि समय रहते यह स्पष्ट हो गया कि इस दल का गठन मुलायम सिंह की खिलाफत बल्कि विरोध अभियान के लिए हुए था और वैसा ही हुआ। बेनी बाबू नेता मुलायम सिंह के खिलाफ मुखर होते गए। कुछ भी बाकी नही बचा, बयान से लेकर अख़बरबाजी तक, बस चिन्दी पर चिन्दी उधड़ती गई। इसके बावजूद मुलायम सिंह ने सखा धर्म का पालन करते हुए मौन साधे रखा, बहुत कुरेदने पर बस इतना ही कहा कि वर्मा जी घर के सदस्य हैं, वह नाराज हैं पर मान जाएंगे। जल्दी वह वापस आएंगे। खैर लंबे अभियान और समय बाद बेनी बाबू ने खुद एहसास किया कि वह कितनी दूर जा चुके हैं फिर क्या था दूरी घटने के उपाय होने लगे। राजनीतिक कद काठी से लेकर शारीरिक अस्वस्थता का शिकार हुए बेनी बाबू ने आखिर वापसी कर ही ली। लगा ही नही कि वह कहीं गये थे। उनकी जुबान, रुतबे और हुक्म को पूरी तरजीह दी गई। यही मुलायम सिंह की मंशा भी थी। बेनी बाबू में जब दुनिया छोड़ी, तब मुलायम सिंह स्वयं अस्वस्थ चल रहे थे, फिर भी शोक संवेदना में उनका मित्रभाव स्पष्ट झलका। आज वह स्वयं अलविदा कह गए, जाने कितनों को रोता बिलखता छोड़ गए। समाजवादी बगीचे का माली जुदा हो गया। कैसे होगी इस कमी की भरपाई, शायद कभी नही। उनके जैसे नेता युगों में एक बार जन्म लेते हैं। अलविदा खांटी नेता मुलायम सिंह।
Also read