राष्ट्रीय स्मारकों के वर्जित क्षेत्र में अर्से से चल रहा बौद्ध बिहारों में निर्माण कार्य

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अवधनामा संवाददाता

पर्यटन स्थली कुशीनगर में राष्ट्रीय स्मारक संरक्षण अधिनियम का मामला
बौद्ध संस्थानों की मनमानी पर अंकुश लगाने में नाकाम पुरातत्व विभाग, प्रशासन भी मौन
कुशीनगर। भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्मारकों के लिए बनाये गए संरक्षण नियम-कानून कुशीनगर में देखता रह जा रहा है, और स्मारकों के प्रतिबंधित क्षेत्र में विभिन्न देशों के बौद्ध बिहार प्रमुखों ने स्थानीय प्रशासन व रसूखदार लोगों के सांठगांठ से पक्का निर्माण करा लिया गया। इतना ही नही आगे भी निर्माण कार्य कराए जा रहे है। वही पुरातत्व विभाग इन पर न तो कार्यवाई की हिम्मत नहीं जुटा पाता और ना ही अबतक निर्माण को हटाने की कोई कार्यवाई ही हुई। हाँ शिकायत पर दोहरी कार्यवाई का खेल खेलते हुए नोटिस पकड़ाकर कोरमपूर्ती जरूर कर लेता है।
अंतराष्ट्रीय फलक पर कुशीनगर बौद्ध तीर्थ और पर्यटकीय पॉइन्ट होने के नाते विश्व में अहम स्थान रखता है। इस नगरी में स्थित तथागत बुद्ध की महापरिनिर्वाण मुख्यमंदिर, माथाकुंवर मंदिर व रामाभार स्तूप को संरक्षित इमारत भारत सरकार ने घोषित कर रखा है। इन स्मारकों के संरक्षण हेतु राष्ट्रीय स्मारक संरक्षण अधिनियम के तहत सुरक्षा प्रदान किया गया है। जिसके तहत इन स्मारकों के मुख्य जगहों पर प्रतिबंधित क्षेत्र का बोर्ड भी लगाया गया है।  जिसमे साफ शब्दों में वर्णित है कि संरक्षित स्मारक से 300 मीटर की दुरी तक कोई भी निर्माण, खनन विल्कुल वर्जित है। यह नियम स्मारक की त्रिज्या में लागू है। विशेष दशा में 200 मीटर के बाद के क्षेत्र में अनुमति से कार्य कराया जा सकता है लेकिन 100 मीटर में कदापि नहीं। मुख्य महापरिनिर्वाण मंदिर के सटे तिब्बत मंदिर, वर्मी उर्फ़ म्यांमार बुद्ध बिहार और चाइना मन्दिर में संरक्षण एरिया के जद में धड़ल्ले से गेस्ट हाउस, मंदिर आदि निर्माण कार्य हुए और भीतर ही भीतर जारी है। इसी प्रकार मथकुंवर मंदिर और रामाभार स्तूप के करीब बौद्ध बिहारों और असरदार लोगों के निर्माण होते आ रहे हैं। जबकि दूसरी ओर उन गरीब लोगों जिनकी जीविका का साधन यहाँ की उनकी पुस्तैनी जमीनें हैं उनके खनन या मरम्मत तक के कार्य में पुरातत्व संरक्षण विभाग नोटिस के माध्यम से चेतावनी देता है। इसी प्रकार प्रशासनिक पहल से भी तमाम निर्माण कार्य हो चुके हैं। पूछने पर पुरातत्व विभाग कार्यवाई की बात तो करता है लेकिन निर्माणकर्ता बौद्ध संस्थानों व अन्य संस्थानों के रुतबे में कोई कमी नहीं आती है और अधिकारियों की मिलीभगत से इनका कारवां आगे बढता ही जा रहा है। जबकि नियामानुसार कानून सब पर लागु होना चाहिए। क्षेत्र के बुद्धजीवी लोगो का कहना है कि प्रशासन आम लोगों को राहत नहीं देता है जबकि मजबूत लोग साठ गाँठ करके अपनी मर्जी की कर लेते हैं। अगर इन बिहारों को छूट मिलती है तब स्थानीय लोगों को भी मिलनी चाहिए।
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