एस.एन.वर्मा
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महाराष्ट्र में शिन्दे सरकार ने मजबूरी के साथ अपनी सरकार बनाई है। शिन्दे और फडवीस ने गठबन्धन कौशल का प्रदर्शन कर आपसी सहयोग और समझदारी का तालमेल बनाकर शिवसेना, एनसीपी, कांग्रेस की हर चाल को नाकाम कर दिया। दोनो पक्ष में सबसे मजे हुये असरदार होशियार और प्रभावदार नेता शरद पवार की प्रतिभा काम नही आ सकी। शिन्दे सरकार के लिये सरकार को लेकर जो कुछ उसके स्थयीत्व की चुनौतियां रह गई है उम्मीद यही है कि उससे पार पा जायेगे। नये विधानसभा में नावेकर विधानसभा अध्यक्ष को मान्यता देने वाले निर्णय के खिलाफ शिवसेना खेमे की याचिका को लेकर सुप्रीमकोर्ट सुनवाई के लिये राजी हो गया है। इससे निष्कर्ष निकलता है कि शिवसेना पर किसका वर्चास्व बनता है इसकी लड़ाई लम्बी खिंचेगी। दरसल दसवी अनुसूची में शामिल दल विरोधी कानून के परिप्रेक्ष में कोर्ट क्या निर्णय सुनाता है, क्या शिवसेना के खेमे को असली शिवसेना मानता है। पर दिक्कत यह है कि किसी राजनैतिक दल को मान्यता देने का अधिकार चुनाव आयोग को है। अगर कोई शिवसेना खेमे को असली शिवसेना बताया है तो निश्चित रूप से यह लड़ाई चुनाव आयोग तक जायेगी।
उद्धव के साथ इस समय विधानसभा में मात्र 15 विधायक है। संसद में स्थिति बेहतर है। इस समय शिवसेना के 16 सांसद है जो अभी उनके साथ है। राज्यसभा में पार्टी के तीन सदस्य है। राजनीति में रहने वाले परिवार ने सदस्य प्रायः अलग अलग पार्टियंो में रहते है। इसका निहितार्थ सभी समझते है। आजकल पार्टी के आदर्श की प्रतिबद्धता और सिद्धान्त की प्रतिबद्धता बहुत क्षीण हो गयी है। आप देख ही रहे है चुनाव आते ही विधायक और संासद के प्रत्याशी पानी की बत्तख की तरह इधर से उधर तैरते रहते है। यशवन्त सिंह कभी भाजपा के मजबूत प्रबुद्ध और प्रभावशाली नेता और मंत्री रहे है आज भाजपा छोड़ विपक्ष के उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति का चुनाव लड़ रहे है। पुत्र भाजपा सरकार में मंत्री है। शिन्दे इस समय ठाकरे के विशुद्ध विरोधी है पर उनका पुत्र शुरू से ही पिता के साथ है।
शिन्दे फडनडीस सरकार को जनता का समर्थन पाने के लिये विकास के एजेन्डा को प्रभावीशाली ढंग से आगे बढ़ाना होगा। इनके प्रशासन में आने के बाद जमीन पर विकास की धारा स्पष्ट दिखनी चाहिये। हिन्दुत्व का एजेन्डा अपनी जगह है। हालात से अनुमान लगता है दिन ब दिन उद्धव और उनकी पार्टी कमज़ोर होती जायेगी। पर अपनी मजबूती कायम रखने के लिये शिन्दे सरकार को जनउपयोगी कार्य से जनता को सन्तुष्ट करना होगा। क्योेंकि सरकार तो जोड़तोड़ से बन गई पर चुनाव की सफलता ही सरकार को स्थायीत्व देगी।
महाराष्ट्र में कई चुनाव होने है। पहले तो नवम्बर में बीएमसी का चुनाव होना है जिस पर 1997 से शिवसेना का वर्चस्व रहा है। इसके बाद ठाणे और डिम्बीविली कल्याण समिति सहित अन्य निकाये के चुनाव भी होने है। इन पर शिन्दे की वर्चस्व है। इन चुनावों में दोनो पक्षों को अपनी काबलियत का सबूत देना पड़ेगा। एक तरह से इनकी अग्रिपरिक्षा होगी इसमें मिली सफलता असफलता दोनो के भविष्य को निश्चित करेगी। सबसे महत्वपूर्ण भाजपा के लिये 2024 का आम चुनाव होगा। क्योकि महाराष्ट्र में यूपी के बाद सबसे ज्यादा संासद की संख्या यही है।
सवाल उठता है क्या ठाकरे अपना प्रभुत्व वापस पा सकेगे। इस बात पर निर्भर करेगा कि उनके साथ कितने लोग आते है। जिस तरह उनके खेमे के लोग टूट कर एक्का दुक्का आ रहे है वह उनके लिये चिन्ता का विषय होगा और इसी पर शिन्दे की मजबूती और सरकारे के पकड़ का फैसला होगा। संगठन के निचलेस्तर तक जिसकी पकड़ पहुचेगी वही मजबूत होकर उभरेगा। इस लड़ाई को लम्बा खिचने की सम्भावना से इनकार नही किया जा सकता। फिलहाल शिन्दे सरकार को पिछले सरकार की तुलना से स्पष्ट सकारात्मक फर्क दिखाना होगा। सुशासन, आर्थिक विकास, जनकल्याण वे मुद्दे होगे जिनसे लोग शिन्दे सरकार को तौलेगे। इसलिये ये शिन्दे सरकार की प्राथमिकता होगी।