बहुत से सदकर्मो के परिणाम स्वरुप मानव तन मिलता है इसे व्यर्थ ना करें : डा.राजेंद्र दास

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अवधनामा संवाददाता

निरंतर सत्संग से चिंतन उच्च हो जाता है,
एक सप्ताह से चल रही राम कथा का हुआ समापन
 
ललितपुर। तुवन मंदिर प्रांगण में साकेतवासी महामंडलेश्वर श्रीबालकृष्ण दासजी महाराज की पुण्य स्मृति में आयोजित महामहोत्सव के अंतर्गत अंतिम दिवस रामकथा में व्यासपीठ पर आसीन जगदगुरू द्वाराचार्य मलूक पीठाधीश्वर डा. राजेंद्र दास देवाचार्य महाराज ने कहा कि मानव देह बड़े भाग्य से मिलती है। देह माता-पिता की देन है। सत्संग से ही जीवात्मा का कल्याण संभव है। उन्होंने कहा कि यदि गुरू कृपा पाकर सत्संग न हुआ तो सब बेकार हो जाएगा। सत्संग के प्राप्त होने से विवेक जागृत होता है। निरंतर सत्संग आवश्यक है। निरंतर सत्संग से चिंतन उच्च होता जाता है। निरंतर प्रभु नाम जप ही विशुद्ध सत्संग है। यही विशुद्ध सत्संग मोह व भ्रम से दूर करता है। जीवन में साधन का रास्ता व स्थान का निर्णय स्वयं नहीं करना चाहिए। यथा संभव संत या सदगुरू से पूछकर उनकी आज्ञानुसार करना चाहिए। प्रभु राम जी ने परमविवेकी भारद्वाज मुनि से रास्ता एंव महर्षि वाल्मीकि जी से स्थान पूछकर ही चित्रकूट में निवास करने का निर्णय लिया। गुरू की आज्ञा का पालन कल्याण का मार्ग दिखाता है। संत, सदगुरू का आदेश जीवन की सार्थकता बना देंगे। स्थान पूछने पर महर्षि वाल्मीकि जी ने कहा कि प्रभु आप तो सर्वत्र हैं, आप कहां नहीं हैं, फिर भी आपके निवास का स्थान, उन भक्तों का ह्दय है, जो नित्य निरंतर कथा श्रवण करते हैं, उनके कान आपकी कथा के सदैव प्यासे रहते हैं, जो आपको निवेदित करके भोजन करते हैं।  जो आपको निवेदित कर वस्त्र पहनते हैं, जिनके चरण आपके तीर्थों का विचरण करते हैं, जो किसी से कुछ नहीं चाहते हैं, जो आपको सहज प्रेम करते हैं, जो तर्पण होम आदि विधियां श्रद्धापूर्वक करते हैं। जो निरंतर आपके मंत्र राज का जप करते हैं। जो सपरिवार आपका पूजन करते हैं और धन पर, स्त्री पर जिनकी दृष्टि नहीं जाती है, ऐसे भक्त जनों का ह्दय आपका निज भवन है। वाल्मीकि जी का यह कथन भक्ति योग है, जिसमें गुरू निष्ठा होगी, वहीं भावपूर्वक इन साधनों को कर सकेगा क्योंकि सदगुरू वहीं है जो साधक को ब्रह्म से जोड़ दें। संत, सदगुरू सामर्थवान वहीं हैं, वे साधक का हाथ पकड़कर भगवान की शरण में ले जाते हैं। आज्ञा पालन हीं सेवा है। स्वामी की प्रसन्नता दास का उद्देश्य होना चाहिए। इसी जीवन में मोक्ष प्राप्ति संभव है लेकिन उसके लिए सदगुरू प्रदत्त मार्ग पर गति करनी पड़ती है। भक्ति, भगवंत की ओर भाव से चलना होगा। शास्त्रानुसार, जीवन जीना होगा। महाराज जी ने कहा कि भगवान श्रीराम लखन व जानकी जी चित्रकूट में निवास करने लगे, निषाद राज मुह प्रभु से विदा लेकर श्रृंगवेरपुर लौटे। सुमंत जी जब अयोध्या पहुंचे, महाराज दशरथ ने जब सुमंत से राम जी के न आने का समाचार सुना दशरथ जी विकल हो गये। अधीर दशरथ जी महाराज को ज्ञान परायण मां कौशल्या ने बहुत समझाया पर राम बिरह में महाराज दशरथ ने देह त्याग कर दिया, ननिहाल से भरत एवं शत्रुधन जी पधारे, पिता का मरण और श्रीराम का वन गमन सुनकर भरज जी अति व्याकुल हो गये। पिता की अंतिम क्रिया सम्पन्न की, जब गुरू वशिष्ठ जी महाराज ने भरत से राज्स स्वीकार करने की बात कही तो भरत अधीर हो गये, सम्पूर्ण घटनाक्रम को उन्होंने अपने को दोष दिया और राम-जानकी के पद देेखे बिना मुझे चैन नहीं मिलेगा, सम्पूर्ण राम समाज को लेकर भरत जी प्रभु से मिलने चित्रकूट को प्रस्थान करते है। मार्ग की सम्पूर्ण कथा का वृतांत सुनाते हुए महाराजजी ने प्रेम मूर्ति भैया भरत के श्रेष्ठतम चरित्र श्रवण कराते हुए भगवान राम व भरत के मिलन का वर्णन सुनाया, भरत के मन की अभिलाषा जेहि विधि प्रभु प्रसन्न मन होई… की विवेचना करते हुए महाराज जी ने कहा कि प्रेम का चरम है प्रेमास्पद की प्रसन्नता, प्रिय व्यक्ति से प्रेम उसकी प्रसन्नता के लिए होना चाहिए अपने स्वार्थ के लिए नहीं, भरत जी प्रभु की खड़ाऊ लेकर अयोध्या के लिए प्रस्थान करते यही मानस के द्वितीय सोपान अयोध्याकाण्ड सम्पन्न होता है। महंत गंगादास महाराज ने कथा में पधारे संतों की अगवानी कर मंचासीन कराया। मंचासीन महंतों में जगदगुरू पीपा द्वाराचार्य बलराम दास जी महाराज वृंदावन, महंत रामबालकदास, महंत श्यामसुंदरदस, सच्चिदानंद दास, राघवेंद्र दास, शिवराम दास, अशोक नारायण दास, रामलखन दास आदि विराजमान रहे।
ईष्ट की प्रसन्नता ही भक्त के लिए सबसे बड़ा प्रसाद
प्रख्यात भागवत कथा प्रवक्ता राधाकृष्ण महाराज ने कहा कि ईष्ट की प्रसन्नता ही भक्त के लिए सबसे बड़ा प्रसाद है। वहीं सबसे बड़ी उपलब्धि है, जैसे सेवक हर प्रकार से स्वामी को प्रसन्न रखना चाहता है, उससे ही उसका सबकुछ जुड़ा हुआ है। सेवा करने के बाद किसी सम्मान की अपेक्षा रखना गलत है। ईश्वर की प्रसन्नता के लिए हम यत्नपूर्वक उपक्रम करना चाहिए।
कृपा से ही जीवन होता मंगल
कथा सत्र में श्री गौरीलाल कुंज वृंदावन आचार्य किशोर देव जू महाराज का पावन आशीर्वाद श्रद्धालुओं को प्राप्त हुआ। महाराज ने कहा कि श्रेष्ठ महापुरूष, गुरूजन, बुद्ध पुरूष की कृपा से ही जीवन में मंगल होता है। हमारी मति, हमारी गति तभी श्रेष्ठ होगी, जब वह युगल चरणाबिंदें में लग जाए, जिसकों कुछ नहीं चाहिए जो प्रिया-प्रियतम चरणों में सहज स्नेह रखता हो, उसी ह्दय में भगवान विराजते हैं। प्रभु का वहीं निज घर है। हरि भजन एवं साधु सेवा जीवन में उतारे तो जीवन में धन्यता है।
मनमोहक भजनों पर झूमे श्रद्धालु
रात्रिकालीन सत्र में वृंदावन से पधारे बाबा चित्र महाराज की भव्य भजन संध्या का आयोजन हुआ। श्रद्धालु मनमोहक भजनों पर झूमते नजर आए। बाबा ने श्यामा-श्याम के एक से बढ़कर एक भजन सुनाकर श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया। करूणामयी, कृपामयी मेरी दयामयी राधे जहां ले चलोगे, वहीं मैं चलूंगा, जहां नाथ रख दोगे, वहीं मैं रहूंगा। कह रहे भुजा उठा भगवन भक्त हैं हमारे प्राण, सांसों की माला में सिमरूं मैं पी का नाम, काली कमली वाला मेरा यार है। जब बाबा ने मेरी विनती यही है राधारानी, कृपा बरसाए रखना, महारानी कृपा बरसाए रखना, भजन गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
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