अवधनामा संवाददाता
जब जब चालाक मुनाफिक़ और जाहिल आवाम इकट्ठा होते हैं तब तब हुसैनियत का कत्ल होता है
बाराबंकी (Barabanki)। वो परवर दिगार कुल्ले ईमान का हक़ मारने वालों की इबादत कैसे क़ुबूल कर सकता है जो एक नजसुलऐन जानवर तक का हक़ मारने वालों की इबादत को क़ुबूल नहीं करता है । इन्सान की मर्ज़ी का नाम इबादत नहीं रिज़ाए इलाही का नाम इबादत है । वाकई दहशतगर्दी मिटाना चाहते हो हो तो पहले गुज़रे हुए दहशतगर्दों से इजहारे बरआत करो ।यज़ीदियत के हिमायती दहशत गर्दी नहीं मिटा सकते सिर्फ़ हुसैन वाले ही दहशत गर्दी मिटा सकते हैं । यह बात करबला सिविल लाइन में मज्लिसे तरहीम बराए ईसाले सवाब मरहूम सै0मो0 सादिक़ इब्ने सै0हुसैन को खिताब करते हुए मौलाना तस्दीक़ हुसैन ज़ैदपुरी ने कही।मौलाना ने ये भी कहा कि जब जब चालाक मुनाफिक़ और जाहिल आवाम इकट्ठा होते हैं तब तब हुसैनियत का कत्ल होता है । क्योकि दीन का दुशमन कभी हक़ पसन्द नहीं होता है जब भी उसे कोई हुसैन नज़र आता है उसे शहीद कर देता है ।आखिर में करबला वालों के मसायब पेश किए जिसे सुनकर सभी रोने लगे । मजलिस से पहले रिज़वान उर्फी लखनवी ने पढ़ा – तमाम ज़ुल्म शहे करबला से हार गये , फिर एक बार सनम मुर्तुज़ा से हार गये ।सिना की नोक पा उसका कलाम जारी है , गले को काटने वाले सदा से हार गये । अली सरकार जाफरी ने पढ़ा – अज़ादाराने सर वर पर इनायत फातिमा की है, कोई मुश्किल नहीं मुश्किल हिफाज़त फातिमा की है। इनायत लखनवी ने पढ़ा – तर्के वाजिब का गुनाह करने पर मगरूर है वो , इश्के हैदर में ये कहता है मगर चूर है वो। जिसपे तलवार चली आज भी बाक़ी है वही, काटने वाले को मालूम न था नूर है वो । मजलिस का आगाज़ तिलावते कलामे इलाही से मौलाना हिलाल अब्बास ने किया ।निज़ामत के फरायेज़ अजमल किन्तूरी ने अंजाम दिये । बानिये मजलिस ने सभी का शुक्रिया अदा किया ।
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