अवधनामा संवाददाता
मौलवी अहमदुल्लाह शाह हिंदुु-मुस्लिम एकता के चिराग थे
अयोध्या (Ayodhya)। जनपद के सोहावल के धन्नीपुर में इंडो इस्लामिक कल्चरल फाउंडेेशन की ओर से प्रस्तावित पांच एकड़ भूमि पर बनने वाली परियोजना को प्रथम स्वंतत्रता संग्राम सेनानी मौलवी अहमदुल्लाह शाह के नाम पर करने का निर्णय लिया गया है। इसी के साथ ट्रस्ट ने पूर्व में मस्जिद का नाम धन्नीपुर मस्जिद रखे जाने के निर्णय को भी बदल दिया है। अब यह मस्जिद स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मौलवी अहमदुल्लाह शाह के नाम से जानी जाएगी। इसकी पुष्टि ट्रस्ट के सचिव अतहर हुसैन व ट्रस्टी कैप्टन अफजाल अहमद ने की है।सुन्नी वक्फ बोर्ड को पांच एकड़ भूमि दिए जाने के निर्देश दिए गए थे। जिसके क्रम में शासन ने सोहावल के धन्नीपुर में पांच एकड़ भूमि दी है। बोर्ड ने मस्जिद के निर्माण के लिए इंडो इस्लामिक कल्चलर फाउंडेशन के नाम एक ट्रस्ट का गठन किया है। इसमें ट्रस्ट ने मस्जिद का नक्शा तैयार कर मंजूरी के लिए अयोध्या विकास प्राधिकरण में जमा किया है। पांच एकड़ भूमि में मस्जिद के साथ 300 बेड का अस्पताल, अनुसंधान केंद्र व कम्यूनिटी किचन बनाया जाना है।
ट्रस्ट ने सिर्फ अनुसंधान केंद्र का नाम मौलवी अहमदुल्लाह शाह के नाम पर रखने का एलान किया था। साथ ही मस्जिद का नाम धन्नीपुर गांव के नाम पर होने का प्रस्ताव था, लेकिन ट्रस्ट ने बैठक कर मौलवी अहमदुल्लाह शाह के 164 वें शहादत दिवस पर समस्त परियोजना को प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी मौलवी अहमदुल्लाह शाह के नाम करने का निर्णय लिया है। साथ ही प्रस्तावित मस्जिद भी मौलवी अहमदुल्लाह शाह के नाम पर ही होगी।ट्रस्ट के सचिव अतहर हुसैन ने बताया है कि मौलवी अहमदुल्लाह शाह के शहादत दिवस पर पूरा प्रोजेक्ट व मस्जिद मौलवी अहमदुल्ला शाह के नाम पर करने का निर्णय लिया है। उन्होंने बताया है कि मौलवी अहमदुल्लाह शाह हिंदुु-मुस्लिम एकता के चिराग थे, लेकिन अभी तक इतिहास में उन्हें वो स्थान नहीं मिल सका जोमिलना चाहिए था। ब्रिटिश साम्राज्य ने उनकी कब्रगाह न बन सके इस डर से सिर व धड़ को दो अलग-अलग जगहों पर दफनाया था।
ट्रस्टी कैप्टन अफजाल अहमद ने बताया है कि प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में फैजाबाद की चौक में स्थित सराय मस्जिद मौलवी अहमदुल्लाह शाह का हेडक्वाटर था। यह शहर की अकेली इमारत है जो मौलवी अहमदुल्लाह शाह से जुड़ी हुई है। ब्रिटिश अफसर उनसे कांपते थे व उनकी बहादुरी के चर्चे करते थे। उनकी तमाम कुर्बानियों को देखते हुए पूरे प्रोजेक्ट का नाम मौलवी अहमदुल्लाह शाह के नाम पर करने का निर्णय लिया गया है।
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