ज़िक्रे कर्बला हक़ और बातिल में फर्क़ बताती है चेहरों से नक़ाब उठाती है
हमारा दीन दीने इलाही है जो गदीर में मुकम्मल हुआ जिसमें क़यामत तक तब्दीली मुमकिन नहीं
जो जान की क़ुर्बानी देना तो पसंद करे लेकिन दीने मोहम्मद में तब्दीली नहीं उसे हुसैन कहते हैं
बाराबंकी। (Barabanki) दीने इस्लाम का सबसे बड़ा पैगाम जिहालत को दूर करना है ।ज़िक्रे कर्बला हक़ और बातिल में फर्क़ बताती है चेहरों से नक़ाब उठाती है । हमारा दीन दीने इलाही है जो गदीर में मुकम्मल हुआ जिसमें क़यामत तक तब्दीली मुमकिन नहीं ।यह बात मरहूम अली शब्बर के अज़ाखाने में मरहूम कल्बे आबिद के चालीसवें की मजलिस को खिताब करते हुए मौलाना हसनैन बाक़री साहब ने कही उन्होंने यह भी कहा कि जिसमें दूसरों की फ़िक्र न हो सिर्फ़ अपनी फ़िक्र हो उसे सियासत नहीं मक्कारी कहते हैं । जो जान की क़ुर्बानी देना तो पसंद करे लेकिन दीने मोहम्मद में तब्दीली नहीं उसे हुसैन कहते हैं ।दीन किसी के बाप की जागीर नहीं, पैगम्बर की उठाई ज़हमतों का नाम इस्लाम है। दीन को जज़्बात से नहीं ,अक़्ल व इल्म के पैमाने में अमल को देख परख कर माने । आखिर में कर्बला वालों के मसायब पेश किये जिसे सुनकर सभी रो पड़े ।मजलिस से पहले डा 0 रज़ा मौरान्वी ने अपना बेहतरीन कलाम पेश करते हुये पढ़ा-किसी को जब हवाए ज़ुल्म से टकराना पड़ता है, उसे अब्बास के परचम के नीचे आना पड़ता है ।शबे आशूर शायद इस लिये हुर रात भर जागे , कि उलझे रेशमों को देर तक सुलझाना पड़ता है।इसके अलावा कशिश सन्डीलवी, बाकर नक़वी , कुमैल किन्तूरी , मुजफ्फर इमाम ने भी नज़रानये अक़ीदत पेश किया ।नौहा खानी व सीनाज़नी के बाद फातिहा का भी एहतेमाम हुआ । बानिये मजलिस ने सभी का शुक्रिया अदा किया ।
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