आदिल तन्हा (अवधनामा संवाददाता)
तीन दशक से बिना फुलप्रूफ प्लानिंग के चल रहा अभियान ढेर
बाराबंकी। (Barabanki) नगरपालिका परिषद क्षेत्र में अतिक्रमण करने के लिये न तो डरने की जरूरत है और न ही किसी कार्रवाई से भय खाने की। जहां चाहें अवैध कब्जा ॽ यह हम नहीं कहते बल्कि शहर की बदरंग तस्वीर कह रही है और वो भी दशकों से। अतिक्रमण एक ऐसा नासूर बन गया है जिसका इलाज नगर पालिका करने से रही। वजह चाहे मिलीभगत हो या कुछ और। जिला प्रशासन इस बीमारी से निपटने आगे आया तो हर अभियान हंसी का पात्र बन गया। चाहे गली हो पार्क हो या सड़क हर जगह अतिक्रमण ही नजर आता है। वैसे भी जो संस्था अपनी ही संपत्तियों को बचा न सके। जिसके कर्मचारी गुपचुप संपत्तियों को निजी बिल्डरों के हवाले कर मालामाल हो गये हों उनसे कोई आखिर क्यों डरे। फिर अतिक्रमण से बचाने कौन आगे आयेगा जब इसका विरोध करने वाले व्यापारी ही इस काम में सबसे आगे निकल जायें।
आइये आपको कथित सिंगापुरी बाराबंकी शहर की तस्वीर दिखाते हैं। यह तस्वीर ऐसी जो बदरंग है। इसकी वजह है शहर के चहुंओर विकास के लिए जिम्मेदार नगरपालिका परिषद का उदासीन उपेक्षा पूर्ण एवं लापरवाही भरा रवैया। इस शहर की मुख्य पहचान है चहुंओर फैला हुआ अतिक्रमण। जिससे निजात दिलाते नगरपालिका परिषद को तीन दशक बीत चुके हैं और अफसोस है कि अब तक कामयाबी नहीं मिल सकी। शहर अतिक्रमण मुक्त नहीं हो सका इसके एक दो नहीं बल्कि तमाम कारण हैं। सबसे बड़ी बात कि शहरवासी खासकर अतिक्रमणकारी भी खुद जानते हैं कि अभियान नोटिस और मामूली तोड फोड़ के अलावा कुछ नहीं होगा और अभियान थमते ही सब कुछ पहले जैसा हो जायेगा। शायद यकीन न हो पर तीन दशक में इक्का-दुक्का अभियान को छोड़ कर बाकी सभी का परिणाम पूरा शहर जानता है। वहीं जिला प्रशासन के सहयोग से चलने वाले अभियान थमते ही हंसी का पात्र बन गये।
यह कहना सही नहीं है कि अतिक्रमण के लिए सिर्फ परिषद ही दोषी है बल्कि आमजन में छिपे वह गैरजिम्मेदार शहरी भी कम गलत नहीं जो इस अव्यवस्था में शामिल हैं और कथित तौर पर विरोध करने की आड में खुद इसे हवा देते नजर आये हैं। वहीं किसी भी अभियान में निशाने पर आये अतिक्रमणकारियों की गलती छिपाने के लिए हर स्तर पर उतरने वाले व्यापारी नेता भी शहर को सुंदर बनाने से मुंह फेरते रहे। नगरपालिका जिला प्रशासन व अतिक्रमणकारियों के बीच लुका छिपी का यह खेल इतना लंबा और कथित तौर पर सुनियोजित रहा कि आखिर में अव्यवस्था फैलाने वाले ही विजेता नजर आ रहे हैं।
उदाहरण के तौर पर सट्टीबाजार से नागेश्वरनाथ मंदिर जाने वाले मार्ग पर शनिदेव मंदिर व मस्जिद के सामने एक व्यापारी नेता का बना हुआ कार्यालय इसका ताजा नमूना है। जनाब ने इस सार्वजनिक मार्ग को ऐसा घेर रखा है जैसे यह इनकी निजी संपत्ति हो। जिस तरह पूरे मार्ग पर टीनशेड बिछाया गया है उससे इस रास्ते पर कब्जे की नीयत का साफ पता चल रहा। इस कार्यालय के बगल में ही बनते भवन का सांचा भी रास्ते पर रखा गया है जिससे किसी वाहन का निकलना आसान नहीं है और वैसे भी इस रास्ते को निजी संपत्ति समझ लोग इधर से निकलने का साहस नहीं करते। जबकि यह सार्वजनिक मार्ग दशकों से है। इसी तरह सट्टीबाजार से घंटाघर धनोखर नाका सतरिख निब्लेट छाया चौराहा से हर रास्ते पर अवैध कब्जों की भरमार है। अभियान के दौरान जो सड़क साफ सुथरी नजर आती है वही गली सड़क चौराहे पार्क अभियान के रुकते ही फिर पहले की तरह हो जाते हैं। इस अवैध कब्जे के खेल में मिलीभगत से इंकार नहीं किया जा सकता। अतिक्रमण मुक्त शहर की फुलप्रूफ प्लानिंग का अभाव ही नगरपालिका परिषद की नीयत में खोट साबित करता है। जबकि इस समस्या से स्वयं जिले के प्रशासनिक अधिकारी परिषद के अध्यक्ष पुलिस तक आये दिन दो चार होते हैं। शहर सिंगापुर तो नहीं बन सका पर अतिक्रमण जैसी बीमारी का मरीज जरूर बन गया।
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