ललित गर्ग
कहते हैं जान है तो जहान है, लेकिन दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण के कारण जान और जहान दोनों ही खतरे में हैं। दिल्ली की हवा में घुलते प्रदूषण का ‘जहर’ लगातार खतरनाक स्थिति में बना होना चिन्ता का बड़ा कारण हैं। प्रदूषण की अनेक बंदिशों एवं हिदायतों के बावजूद प्रदूषण नियंत्रण की बात खोखली साबित हुई। यह कैसी शासन-व्यवस्था है? यह कैसा अदालतों की अवमानना का मामला है? यह सभ्यता की निचली सीढ़ी है, जहां तनाव-ठहराव की स्थितियों के बीच हर व्यक्ति, शासन-प्रशासन प्रदूषण नियंत्रण के अपने दायित्वों से दूर होता जा रहा है। यह कैसा समाज है जहां व्यक्ति के लिए पर्यावरण, अपना स्वास्थ्य या दूसरों की सुविधा-असुविधा का कोई अर्थ नहीं है। जीवन-शैली ऐसी बन गयी है कि आदमी जीने के लिये सब कुछ करने लगा पर खुद जीने का अर्थ ही भूल गया, यही कारण है दिल्ली की जिन्दगी विषमताओं और विसंगतियों से घिरी होकर कहीं से रोशनी की उम्मीद दिखाई नहीं देती। क्यों आदमी मृत्यु से नहीं डर रहा है? क्यों भयभीत नहीं है? दिल्ली की जनता दुख, दर्द और संवेदनहीनता के जटिल दौर से रूबरू है, प्रदूषण जैसी समस्याएं नये-नये मुखौटे ओढ़कर डराती है, भयभीत करती है।
मालूम हो कि स्विस एयर क्वालिटी टेक्नोलॉजी कंपनी के मुताबिक भारत के तीन बड़े शहर, दिल्ली, कोलकाता और मुंबई, दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में शामिल हैं। जो कि एक चिंताजनक बात है। दिल्ली में प्रदूषण जीवन का अभिन्न हिस्सा बन गयी है। हर कुछ समय बाद अलग-अलग वजहों से हवा की गुणवत्ता का स्तर ‘बेहद खराब’ की श्रेणी में दर्ज किया जाता है और सरकार की ओर से इस स्थिति में सुधार के लिए कई तरह के उपाय करने की घोषणा की जाती है। हो सकता है कि ऐसा होता भी हो, लेकिन सच यह है कि फिर कुछ समय बाद प्रदूषण का स्तर गहराने के साथ यह सवाल खड़ा होता है कि आखिर इसकी असली जड़ क्या है और क्या सरकार की कोशिशें सही दिशा में हो पा रही है। इस विकट समस्या से मुक्ति के लिये ठोस कदम उठाने हांेगेे। दिल्ली के सामाजिक संरचना में बहुत कुछ बदला है, मूल्य, विचार, जीवन-शैली, वास्तुशिल्प, पर्यावरण सब में परिवर्तन है। आदमी ने जमीं को इतनी ऊंची दीवारों से घेर कर तंगदील बना दिया कि धूप और प्रकाश तो क्या, जीवन-हवा को भी भीतर आने के लिये रास्ते ढूंढ़ने पड़ते हैं। सुविधावाद हावी है तो कृत्रिम साधन नियति बन गये हैं। चारों तरफ भय एवं डर का माहौल है। यह भय केवल प्रदूषण से ही नहीं, भ्रष्टाचारियों से, अपराध को मंडित करने वालों से, सत्ता का दुरुपयोग करने वालों से एवं अपने दायित्व एवं जिम्मेदारी से मुंह फैरने वाले अधिकारियों से भी है। हमें यह स्वीकार करना होगा कि हम अब भी ऐसे मुकाम पर हैं, जहां सड़क पर बाएं चलने या सार्वजनिक जगहों पर न थूकने जैसे कर्तव्यों की याद दिलाने के लिए भी पुलिस की जरूरत पड़ती है। जो पुलिस अपने चरित्र पर अनेक दाग ओढ़े हंै, भला कैसे अपने दायित्वों का ईमानदारी एवं जिम्मेदारी से निर्वाह करेंगी?
इनदिनों दिल्ली में तेज हवा की वजह से पारा में तेज गिरावट तो आई और उससे ठंड की तस्वीर और बिगड़ी, मगर उससे हवा के साफ होने की भी गुंजाइश बनी थी। अब एक बार फिर दिल्ली में कोहरे या धुंध की हालत बनने के साथ वायुमंडल के घनीभूत होने की हालात पैदा हो गई है और इसमें प्रदूषण की मात्रा बढ़ गई है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत वायु गुणवत्ता और मौसम पर नजर रखने वाली संस्था ‘सफर’ ने जो ताजा आकलन जारी किया है, उसके मुताबिक दिल्ली में एक बार फिर प्रदूषण की स्थिति गंभीर होने वाली है। दरअसल, वायु की गुणवत्ता की कसौटी पर दिल्ली पहले भी अक्सर ही चिंताजनक हालत में रही है। ऐसे बहुत कम मौके आए, जब इसमें राहत महसूस की गई। पिछले साल पूर्णबंदी लागू होने के बाद जब वाहनों और औद्योगिक इकाइयों का संचालन नाममात्र का रह गया था, तब न सिर्फ वायु, बल्कि यमुना में भी प्रदूषण की समस्या में काफी सुधार देखा गया था। लेकिन उसके बाद पूर्णबंदी में क्रमशः ढिलाई के साथ-साथ जब आम जनजीवन सामान्य होने लगा है, तब धुएं और धूल के हवा में घुलने के साथ ही प्रदूषण ने फिर से अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया है।
‘सफर’ के ताजा आकलन के मुताबिक दिल्ली में वायु गुणवत्ता का स्तर चार सौ इकतीस अंकों तक पहुंच गया। गौरतलब है कि वायु गुणवत्ता का यह स्तर ‘गंभीर श्रेणी’ में माना जाता है और यह आम लोगों में सांस से संबंधित कई तरह की दिक्कतों के लिहाज से जोखिम की स्थिति है। ज्यादा चिंताजनक यह है कि इसमें अगले कुछ दिनों तक और गिरावट आने की आशंका जताई गई है। ‘सफर’ के अनुसार वायु गुणवत्ता का स्तर चार सौ उनसठ अंक तक पहुंच सकता है। सारे कानून-कायदों, अदालती या सरकारी आदेशों और पुलिस की कवायद के बावजूद प्रदूषण दिल्ली में कम होने की बजाय बढ़ता जा रहा। वैसे भी, भारत दुनिया के चुनिंदा देशों में है, जहां शायद सबसे अधिक कानून होंगे, लेकिन हम कितना कानून-पालन करने वाले समाज हैं, यह किसी से छिपा नहीं है।
यों इस मौसम में दिन की शुरूआत यानी सुबह के समय कोहरे या धुंध की चादर का घना होना कोई हैरानी की बात नहीं है। यह कड़ाके की ठंड के दिनों की एक खासियत भी है और विवशता भी। लेकिन मुश्किल यह है कि वायुमंडल के घनीभूत होने की वजह से जमीन से उठने वाली धूल और वाहनों से निकलने वाले धुएं के छंटने की गुंजाइश नहीं बन पाती है। नतीजन, वायु में सूक्ष्म जहरीले तत्व घुलने लगते हैं और प्रदूषण के गहराने की दृष्टि से इसे खतरनाक माना जाता है। हमारा राष्ट्र एवं राजधानी नैतिक, आर्थिक, राजनैतिक और सामाजिक एवं व्यक्तिगत सभी क्षेत्रों में मनोबल के दिवालिएपन के कगार पर खड़ी है। और हमारा नेतृत्व गौरवशाली परम्परा, विकास और हर प्रदूषण खतरों से मुकाबला करने के लिए तैयार है, का नारा देकर अपनी नेकनीयत का बखान करते रहते हैं। पर उनकी नेकनीयती की वास्तविकता किसी से भी छिपी नहीं है, देश की राजधानी और उसके आसपास जिस तरह प्रदूषण नियंत्रण की छीछालेदर होती रहती है, उससे यह सहज ही जाहिर हो गया है। बात सरकार की अक्षमता की नहीं है। उन कारणों की शिनाख्त करने की है, जिनके चलते एक आम नागरिक पर्यावरण या उसके अपने स्वास्थ्य जैसे मुद्दों पर मंडरा रहे खतरों के बावजूद लगातार उदासीन एवं लापरवाह क्यों होता जा रहा है।
दिल्ली में प्रदूषण को कम करने के मसले पर केंद्र और राज्य सरकारें लगातार बैठकें करती रही हैं, लेकिन प्रदूषण के स्तर में कोई खास कमी नहीं आई है। इस मुद्दे पर राजनीति भी खूब देखने को मिली। इस बीच लांसेट प्लैनेटरी हेल्थ पत्रिका की एक रिपोर्ट सामने आई है, जिसके मुताबिक वायु प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर दिल्ली पर ही पड़ा है। इसके बाद नंबर आता है हरियाणा का। प्रदूषण के चलते साल 2019 में दिल्ली में प्रति व्यक्ति आय में करीब 4,578 रुपये की गिरावट दर्ज की गई। वहीं, हरियाणा को प्रति व्यक्ति आय के रूप में करीब 3,973 रुपये का नुकसान हुआ। ऐसे में प्रदूषण की रोकथाम के लिए कड़े कदम उठाए जाने कि जरूरत बताई गई, जिसके बाद आज सीपीसीबी ने दिल्ली-एनसीआर में हॉट मिक्स प्लांट और स्टोन क्रशर पर 2 जनवरी 2021 तक के लिए बैन लगा दिया है। हालांकि, इससे कितना प्रदूषण कम होगा, ये आने वाला वक्त ही बताएगा।
फिलहाल दिल्ली में वायु प्रदूषण की स्थिति गंभीर होने की वजह साफ दिख रही है। विडंबना यह है कि जब भी प्रदूषण की समस्या खतरनाक हालत में पहुंचती है, तब सरकारें कुछ प्रतीकात्मक उपाय करके सब कुछ ठीक हो गया मान लेती है, लेकिन इस जटिल एवं जानलेवा समस्या का कोई ठोस उपाय सामने नहीं आता। मसलन, कुछ समय पहले दिल्ली में सरकार की ओर से प्रदूषण की समस्या पर काबू करने के मकसद से चैराहों पर लगी लालबत्ती पर वाहनों को बंद करने का अभियान चलाया गया था। सवाल है कि ऐसे प्रतीकात्मक उपायों से प्रदूषण की समस्या का कोई दीर्घकालिक और ठोस हल निकाला जा सकेगा।