आध्यात्मिक गुरुओं से वोकल फॉर लोकल को समर्थन कर आत्मनिर्भर भारत अभियान को प्रोत्साहित करने का अनुरोध किया
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने आज वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिए जैनाचार्य श्री विजय वल्लभ सुरिश्वर जी महाराज की 151वीं जयंती के उपलक्ष्य में शांति की प्रतिमा का अनावरण किया।जैनाचार्य के सम्मान में बनाई गई इस प्रतिमा को शांति की प्रतिमा का नाम दिया गया है। अष्टधातु से निर्मित 151 इंच ऊंची यह प्रतिमा आठ धातुओं से निर्मित है जिसमें तांबा मुख्य धातु है। यह प्रतिमा राजस्थान के पाली में जेतपुरा में विजय वल्लभ साधना केन्द्र में स्थापित की गई है।
प्रधानमंत्री ने जैनाचार्य के अलावा समारोह में उपस्थित सभी धर्मगुरुओं के प्रति सम्मान प्रदर्शित किया। उन्होंने इस अवसर पर सरदार पटेल और जैनाचार्य विजय वल्लभ सुरिश्वर जी महाराज का जिक्र करते हुए कहा कि वह सरदार पटेल को विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा स्टैच्यू ऑफ यूनिटी समर्पित करने के बाद अब जैनाचार्य के नाम पर शांति की प्रतिमा का अनावरण करने का अवसर पाकर खुद को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।
वोकल फॉर लोकल पर जोर देते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि जिस तरह से स्वाधीनता आंदोलन के दौरान हुआ था उसी तरह से इस समय भी सभी आध्यात्मिक गुरुओं को आत्मनिर्भर भारत के लाभों का प्रचार करना चाहिए।उन्होंने कहा कि दीपावली के अवसर पर जिस तरह से देश ने स्वेदशी वस्तुओं के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया वह काफी उत्साहजनक अनुभव है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत ने दुनिया को हमेशा से शांति, अहिंसा और भाईचारे का मार्ग दिखाया है। आज पूरा विश्व फिर से ऐसे पथ प्रदर्शन के लिए भारत की ओर देख रहा है। अगर हम इतिहास को देखें तो पाएंगे कि जब कभी आवश्यकता हुई समाज को रास्ता दिखाने के लिए किसी न किसी संत का प्रार्दुभाव हुआ। आचार्य विजय वल्लभ इन्हीं महापुरुषों में से एक थे।जैनाचार्य की ओर से स्थापित शिक्षण संस्थाओं का जिक्र करते हुए श्री मोदी ने शिक्षा के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने के उनके प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा कि जैनाचार्य ने पंजाब, गुजरात, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में भारतीय मूल्यों के साथ इन संस्थाओं की स्थापना की। उन्होंने कहा कि इन संस्थाओं ने देश को एक से एक शिक्षाविद्, न्यायविद्, डॉक्टर और इंजीनियर दिए हैं जिन्होंने राष्ट्र के प्रति अपनी बड़ी सेवाएं दी हैं।
प्रधानमंत्री ने कहा कि इन संस्थाओं ने महिलाओं की शिक्षा के क्षेत्र में भी बड़ा योगदान किया है। इन संस्थाओं ने कठिन घड़ी में भी महिलाओं की शिक्षा की अलख को जगाए रखा। उन्होंने कहा कि जैनाचार्य ने बालिकाओं के लिए भी कई शिक्षा संस्थान खोले और महिलाओं को मुख्य धारा से जोड़ने का प्रयास किया। उन्होंने कहा कि आचार्य विजय वल्लभ जी के ह्दय में सभी जीवों के लिए दया, सहिष्णुता और प्रेम की भावना थी। उनके आर्शीवाद से ही आज देश भर में पक्षियों के अस्पताल और गौशालाएं चल रही हैं। ये सामान्य संस्थाएं नहीं हैं। ये संस्थाएं भारतीय मूल्यों और भावनाओं का सही प्रतिनिधित्व करती हैं। .