प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की प्रेरणा से कृषि सुधारों के जिस नए युग की शुरूआत देश में आजादी के 73 सालों के बाद हुई है, उसमें अनुबंध खेती (Contract Farming) का एक महत्वपूर्ण स्थान है। अनुबंध खेती आने वाले समय में निश्चित रूप से एक बड़ा गेम चेन्जर साबित होने वाली है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने की बात की थी। 2014 में सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही कृषि के क्षेत्र में मूलभूत सुधारों की कवायद शुरू हो गयी थी। सरकार का प्रयास था कि खेती को लाभ का धंधा बनाया जाय और वर्तमान परिप्रेक्ष्य में इसे तकनीकी के साथ जोड़ा जाय। अभी तक हरित क्रांति जैसे तमाम प्रयासों के बावजूद खेती कुल मिलाकर घाटे का ही सौदा बनी हुयी थी। छोटे और मझोले किसान खेती से पलायन कर रहे थे। वे साल के कई दिनों खेतिहर मजदूर अथवा कामगार मजदूर के रूप में अपनी रोजी कमाते थे। कम पूंजी के कारण उन्हें प्रायः कर्ज का शिकार बनना पड़ता था और नयी तकनीकी का इस्तेमाल कुल मिलाकर उनके लिए सपने की बात थी। खेती का इस्तेमाल अनाज के लिए ही हो पाता था। यह व्यवसाय नहीं बन सकी थी । जो किसान छोटे होते थे यानी जिनकी काश्त कम होती थी, वे साल भर की मेहनत के बावजूद साल भर का अनाज नहीं पाते थे। जिनकी काश्त कुछ बड़ी थी वे साल भर के खाने को तो पा जाते थे लेकिन बाकी बचे अनाज को मंडी में कम दाम पर बेंचना पड़ता था। अनाज भण्डारण उन किसानों के बूते के बाहर की चीज थी। ऐसे लघु और सीमांत किसानों का प्रतिशत बहुत ज्यादा था।
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की सोच हमेशा से आम आदमी पर केन्द्रित रही है। उन्होंने इन्हीं छोटे किसानों की समस्या को लेकर कृषि में सुधारों के नये युग की शुरूआत की। अनुबंध खेती इसी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। भारत में अनुबंध खेती किसी न किसी रूप में पहले भी रही है। हालांकि उसके लिए कोई मजबूत कानून नहीं था। अब वह आ गया है। लखनऊ के करीब में एक कस्बा है मलीहाबाद। मलीहाबाद आम की फसल के लिए मशहूर है। दशहरी आम के बाग किसान पेशेवर लोगों को अनुबंध पर दे देते हैं। बागों की नीलामी होती है। पेशेवर किसान नीलामी लेकर आम की खेती करते हैं। किसान की निश्चित आमदनी होती है और फलों का संरक्षण, उसमें दवा आदि का समय-समय पर छिड़काव और उसकी प्रोसेसिंग आदि सब ठेका लेने वाला करता है। यह ठेका या अनुबंध फसल भर का होता है। जमीन यानी बाग का मालिकाना हक किसान का ही रहता है। मलीहाबाद के आम किसान काफी संतुष्ट नजर आते हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश की बात करें तो वहां पर गन्ने की खेती भी अनुबंध खेती का एक अच्छा उदाहरण है। चीनी मिलें किसानों से अनुबंध करती हैं और समय पर उन्हें गन्ने का भुगतान कर देती हैं। बहुत से किसान जो स्वयं खेती करना चाहते हैं, वह स्वयं खेती करते हैं अथवा अपनी कुछ जमीन ही अनुबंध पर देते हैं और बाकी पर खुद खेती करते हैं।
नये कानून की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह छोटे और मझोले किसानों के ज्यादा हित में है। कम्पनी या पेशेवर किसानों की जमीन अनुबंध पर लेंगे। यह अनुबंध एक फसल से लेकर पांच वर्ष तक का हो सकता है लेकिन पांच वर्ष से ज्यादा का नहीं हो सकता। अनुबंध पर खेती देना किसान की इच्छा पर निर्भर करेगा, वह चाहे तो अपनी जमीन अनुबंध पर दे या न चाहे तो न दे। यदि वह चाहे तो अपनी जमीन का कुछ भाग ही अनुबंध पर दे और बाकी पर खुद खेती करे। जहां तक किसान के जमीन पर मालिकाना हक की बात है, वह हर हाल में उसी का रहेगा और बराबर रहेगा। अनुबंध खेती से सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि किसान को अपनी जमीन पर की गयी खेती का भरपूर फायदा होगा। कम्पनी का अनुबंधकर्ता उन्नतशील खेती के लिए किसान का सहयोग करेंगें। खेती को उद्योग का दर्जा मिलेगा। जोखिम किसान की नहीं अनुबंधकर्ता की होगी। किसान को मूल्य का आश्वासन रहेगा। अनुबंधकर्ता नयी तकनीकी का इस्तेमाल करेंगे तथा छोटी-छोटी काश्त को मिला कर बड़ी काश्त का रूप देंगे और उस पर आधुनिकतम तरीके से खेती में किसान की मदद करेंगे। जहां तक बड़े किसानों का सवाल है, उन्हें भी अनुबंध खेती का उतना ही फायदा होगा। वे भी अनुबंध पर जमीन दे सकेंगे। तकनीकी के प्रयोग से किसान साल में आसानी से तीन फसल ले सकेंगे। अभी कम किसान ही तीन फसल लेने में सफल होते हैं। कृषि सुधारों के क्रम में किसानों को पशुपालन, मछलीपालन, मुर्गीपालन या बागवानी में नयी रियायतें दी गयी हैं। इससे भी किसान स्वयं या अपने परिवारी जनों के साथ मिल कर काम करेंगे और अपनी आय में वृद्धि कर सकेंगे।
दसअसल कृषि आज भी भारत में आर्थिक विकास के मामले में काफी महत्वपूर्ण है। टिकाऊ, सतत और समावेशी विकास में खेती की अहम भूमिका रही है। कोविड-19 के कारण लॉक डाउन के बाद खेती ने एक बार फिर से अपने वर्चस्व को कायम किया है। विपरीत परिस्थितियों के बावजूद वर्ष 2019 में रिकार्ड 296.65 मिलियन टन काद्यान्न उत्पादन के लिए किसानों और राज्य सरकारों को बधाई दी है। दलहनी फसलों के 23.15 और तिलहनी फसलों के 33.42 मिलियन टन उत्पादन की संभावना है। कपास के उत्पादन में भी उल्लेखनीय वृद्धि होने की संभावना है। अनुमान है कि कपास का उत्पादन भी बढ़कर 354.91 लाख गांठ हो जायेगा जिससे भारत दुनियां में कपास उत्पादन में पहले स्थान पर आ जायेगा। उन्होंने कहा कि यह साल भारतीय कृषि के इतिहास में एक मील का पत्थर बना है। 11 सितम्बर, 2020 तक खरीफ की फसलों की बुआई 1113 लाख हेक्टेयर में हुई है, जो सामान्य बुआई क्षेत्र से 46 लाख हेक्टेयर ज्यादा है। इससे भारत की खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
किसानों में अनुबंध खेती को लेकर जो भ्रम फैलाया जा रहा है, वह ठीक नहीं है यह आने वाले समय में एक गेम चेंजर साबित होगा। एक बात और महत्वपूर्ण है। किसानों को इस तथ्य से अवगत होना चाहिये कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य को जारी रखेगी। यही नहीं, मोदी सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य में बराबर वृद्धि ही की है।
(लेखक भारतीय सूचना सेवा के अधिकारी हैं, लेख में व्यक्त विचार उनके अपने हैं)