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विकास से पहले।
भारत एक विकासशील देश है,और निरंतर विकसित देश बनने की ओर तेजी से अग्रसर है। यह बात एक भारतीय होने के नाते गौरवांवित महसूश करवाती है। दिन पर दिन तकनीक के क्षेत्र में लगातार होती प्रगति, बढ़ता हुआ इंफ्रास्ट्रक्चर चमचमाती हुई सड़कों पे सरपट दौड़ती गाड़ियां, रोज व्यस्त होते एयरपोर्ट्स विकास की कहानी कहते हैं। मेट्रो ट्रेन में सफर करता हर देशवासी अब बुलेट ट्रेन के सपने सँजोए हुए है। और विकास की परिभाषा मेरे शब्दों में कहे तो बहुत सरल है ,” कल से बेहतर आज। “
कल से बेहतर आज यह वाक्य अपने आप मे बहुत कुछ कहता है। मुद्दे कई हैं पर आज प्रमुखतः मैं दो मुद्दों पर बात करूंगा जिस पर हम शायद तथाकथित विकास नही कर रहे हैं या कहें तो विकसित की जगह अविकसित हो रहे हैं।
1. किसानों ( अन्नदाताओं) की स्थिति
2. महिलाओं ( आधी आबादी) की सुरक्षा व उनके प्रति सामाजिक दृष्टिकोण।
इन दोनों मुद्दों पर अब आप वो शब्द विकास और उसका वो अर्थ कल से बेहतर आज प्रयोग कर के देखिए तो आप स्वयं ही समझ जाएंगे कि ये यहां पर चरितार्थ नही है। न तो किसान आज कल से बेहतर सिथिति में है और न ही इस देश की महिलाएँ। और दोनों ही देश के वो अभिन्न अंग हैं जिनके बिना देश का क्या जीवन का भी अस्तित्व संभव नही है।
अब तक कि तमाम सरकारों ने दोनों वर्गों के लिए अनगिनत पैसा बहाया अनगिनत योजनाए लागू की पर यथार्थ स्तिथि किसी परिचय की मोहताज नही है। न तो देश के किसानों का कुछ भला हुआ है और न ही देश की महिलाओं की सुरक्षा में कोई इजाफा हुआ है। उलट इसके दोनों ही दिन प्रति दिन अपने निचले स्तर पर पहुचते जा रहे हैं।
तो क्या फायदा ऐसे विकसित देश का जहां का अन्नदाता भूखा रहता हो, जहां किसान हेय दृष्टि से देखा जाता हो। जहां उसके आत्महत्या करने से किसी को फर्क है ना पड़ता हो। और पड़ता भी है तो अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए।
और क्या फायदा ऐसे विकसित देह का जहां की आधी आबादी सुरक्षित ही न हो। जिसे बाकी की आधी आबादी से अपने अस्तित्व की जंग लड़नी पड़ती हो, जहां उसे हर वक्त एक अनहोनी का डर हो।
किसान और महिला दोनों के बिना देश की क्या जीवन की भी कल्पना नही की जा सकती । पर अफसोस कि दोनों को आज के इस विकास के युग मे अनदेखा कर दिया गया है। समय है की अब इनके लिये कुछ किया जाए, कागजों में योजनाए बना कर नही बल्कि ज़मीनी हकीकत को स्वीकारते हुए और देश के बाकी सभी कार्यों से पहले इनके लिए सोचा जाए। हर तरह के विकास से पहले।
लेखक
किसलय मिश्र
समाज सेवक
7275199197