राजधानी लखनऊ में लगे हिंसा के आरोपियों के पोस्टर का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है. इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को उत्तर प्रदेश सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है |
बुधवार को यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट के पोस्टर हटाने के फैसले के खिलाफ याचिका दाखिल की. इस याचिका को कोर्ट ने स्वीकार कर लिया है. अब गुरुवार को सुबह 10:30 बजे यूपी सरकार की इस याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा.
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सुप्रीम कोर्ट की अवकाश पीठ गुरुवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट के 6 मार्च के फैसले के खिलाफ उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा दायर विशेष अनुमति याचिका पर विचार करेगी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखनऊ में यूपी प्रशासन द्वारा शहर के चौराहों पर लगाए गए सीएए प्रदर्शनकारियों के नाम, पते और फोटो वाले बैनरों को हटाने का निर्देश दिया था। सीएए के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान प्रदर्शनकारियों पर हिंसा करने का आरोप लगाया गया। इसके बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए यूपी प्रशासन को उक्त बैनर हटाने के निर्देश दिए थे।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के इस फैसले को यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है, जिसकी सुनवाई जस्टिस यू यू ललित और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ गुरुवार को विचार करेगी।
उत्तर प्रदेश सरकार को झटका देते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सोमवार को लखनऊ में यूपी पुलिस द्वारा लगाए गए सभी पोस्टरों और बैनरों को हटाने का आदेश दिया था। इन बैनरों में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के विरोध प्रदर्शन ले दौरान हिंसा फैलाने के आरोपी व्यक्तियों के नाम और फोटो वाले बैनर लगाए थे। न्यायालय ने इन्हें हटाने का आदेश दिया।
न्यायालय ने जिला मजिस्ट्रेट और पुलिस आयुक्त को 16 मार्च तक उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने का भी निर्देश दिया था।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रविवार को एक विशेष बैठक में लखनऊ में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा के आरोपी व्यक्तियों की तस्वीर और विवरणों वाले बैनर लगाने के लिए राज्य सरकार के अधिकारियों की खिंचाई की ।
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दरअसल, नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के खिलाफ 19 दिसंबर 2020 को लखनऊ के कई इलाकों में हिंसा हुई थी. इस दौरान हुई तोड़फोड़ और आगजनी से काफी नुकसान हुआ था. जिसके बाद राज्य सरकार ने दंगाइयों ने नुकसान की भरपाई करने का आदेश दिया था. इसमें कथित रूप से शामिल रहे 57 लोगों के नाम उनके पते साथ पोस्टर में लिखवा कर शहर के सभी प्रमुख चौराहों पर लगाए गए थे. यह सभी आरोपी लखनऊ के हसनगंज, हजरतगंज, कैसरबाग और ठाकुरगंज थाना क्षेत्र के हैं. पहले ही प्रशासन ने 1.55 करोड़ रुपये की सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए इनको वसूली के नोटिस जारी किए थे.
राजधानी में करीब 100 जगहों पर लगे आरोपियों के होर्डिंग के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया था. कोर्ट ने लखनऊ के डीएम और कमिश्नर को तलब किया था. इस मामले में सुनवाई पूरी करते हुए सोमवार को इलाहबाद हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को लखनऊ हिंसा के 57 आरोपियों का पोस्टर हटाने का आदेश दिया था. साथ ही कोर्ट ने 16 मार्च तक रजिस्ट्रार जनरल को एक अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कहा था. मगर हाईकोर्ट के इस फैसले से राज्य सरकार नाखुश दिखी.
राज्य की बीजेपी सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले का अध्ययन किया और पीछे नहीं हटने का फैसला लिया. इसके बाद आज राज्य सरकार ने हाईकोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की याचिका को स्वीकार करते हुए सुनवाई की तारीख 12 मार्च निर्धारित की है. अब देखने वाली बात यह है कि देश के सर्वोच्च न्यायाृलय उस मुद्दे पर क्या फैसला सुनाती है.
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57 लोगों का लगाया गया पोस्टर
पिछले साल दिसंबर महीने में लखनऊ में सीएए विरोधी प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा में कथित रूप से शामिल रहे 57 लोगों के नाम और पते के साथ शहर के सभी प्रमुख चौराहों पर कुल 100 होर्डिग्स लगाए गए हैं. ये सभी लोग राज्य की राजधानी लखनऊ के हसनगंज, हजरतगंज, कैसरबाग और ठाकुरगंज थाना क्षेत्र के हैं. प्रशासन ने पहले ही 1.55 करोड़ रुपये की सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के लिए इन सभी लोगों को वसूली के लिए नोटिस जारी किया है.
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‘योगी सरकार में उपद्रवियों पर नरमी असंभव’
हाई कोर्ट के आदेश के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मीडिया सलाहकार मृत्युंजय कुमार का बयान भी दिनभर चर्चा में रहा. उन्होंने कहा था कि योगीराज में दंगाइयों से नरमी असंभव है. मृत्युंजय कुमार ने एक ट्वीट कर कहा, “दंगाइयों के पोस्टर हटाने के हाइकोर्ट के आदेश को सही परिप्रेक्ष्य में समझने की जरूरत है. सिर्फ उनके पोस्टर हटेंगे, उनके खिलाफ लगी धाराएं नहीं. दंगाइयों की पहचान उजागर करने की लड़ाई हम आगे तक लड़ेंगे. योगीराज में दंगाइयों से नरमी असंभव है.”