जाट-मुस्लिम नहीं… वक्फ कानून के बाद जयन्त चौधरी ने बदली रणनीति, नए समीकरण पर दांव लगाने की तैयारी

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पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अब जाट-मुस्लिम गठजोड़ को आधार बनाकर चल रहे रालोद मुखिया जयन्त चौधरी की नजर जाट-दलित समीकरण सजाने पर दिख रही है। देश की राजनीति को सबसे अधिक उत्तर प्रदेश प्रभावित करता है और वक्फ कानून पर राजनीतिक खींचतान बढ़ने के बाद सपा और उसकी सहयोगी कांग्रेस के साथ ही बसपा भी कानून का विरोध कर मुस्लिम मतों को अपनी ओर खींचने के लिए प्रयास में है।

भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने संदेश दिया कि वक्फ संशोधन कानून गरीब और पिछड़े मुस्लिमों के हित में है तो सकारात्मक सोच दिखाते हुए उसके सहयोगी दलों ने भी खुलकर समर्थन कर दिया। मगर, अल्पसंख्यक वोट को लेकर सतर्क भी हो गए हैं।

उत्तर प्रदेश के ताजा घटनाक्रम संकेत दे रहे हैं कि राष्ट्रीय लोकदल, अपना दल (सोनेलाल) और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) जैसे ‘सेक्युलर दल’ शायद बदलते समीकरणों की आहट से सतर्क हैं और नए समीकरण मजबूत करने के प्रयास में जुट गए हैं।

वक्फ संशोधन कानून का विरोध पर मुस्लमानों को लुभा रहा विपक्ष

खास तौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अब तक जाट-मुस्लिम गठजोड़ को आधार बनाकर चल रहे रालोद मुखिया जयन्त चौधरी की नजर जाट-दलित समीकरण सजाने पर दिख रही है।

देश की राजनीति को सबसे अधिक उत्तर प्रदेश प्रभावित करता है और वक्फ संशोधन कानून पर राजनीतिक खींचतान बढ़ने के बाद सपा और उसकी सहयोगी कांग्रेस के साथ ही बसपा भी कानून का विरोध कर मुस्लिम मतों को अपनी ओर खींचने के लिए प्रयास में है।

भाजपा को कैसे मिल सकता है ‘बोनस वोट’?

भाजपा ने अपनी विचारधारा के अनुरूप कदम उठाया है, इसलिए उसे कोई जोखिम दिखाई नहीं पड़ता। हां, गरीब और पिछड़े मुसलमान यदि वक्फ संशोधन कानून के लाभ समझ गए तो वह भाजपा के लिए ‘बोनस वोट’ होगा।

मगर, यूपी में भाजपा के सहयोगी दल कुछ सतर्क होते दिख रहे हैं। जैसे यूपी सरकार के प्रमुख सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल दल का मूल आधार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में है। यहां के राजनीतिक समीकरणों को जाट, मुस्लिम और दलित खास तौर पर प्रभावित करते हैं।

जयन्त चौधरी ने बदली पार्टी की रणनीति

जयन्त पहले जाट-मुस्लिम गठजोड़ के भरोसे राजनीति कर रहे थे। पार्टी नेता अब भी दावा करते हैं कि आम मुस्लिम नए कानून के समर्थन में है और रालोद से जुड़ा हुआ है, लेकिन राजनीतिक जानकार मानते हैं कि पार्टी कोई रिस्क नहीं लेना चाहती है और इसीलिए जाट-दलित गठजोड़ की कवाद तेज हो गई है।

इसीलिए आंबेडकर जयन्ती पर सदस्यता अभियान की शुरुआत की है। इसी तरह केंद्र और राज्य सरकार में भाजपा के सहयोगी और ओबीसी केंद्रित राजनीति करने वाले अपना दल ने भी वक्फ संशोधन कानून का समर्थन करने के बाद आंबेडकर जयन्ती से ही अपना सदस्यता अभियान शुरू किया है। पार्टी के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष व प्रदेश सरकार में मंत्री आशीष पटेल ने बकायदा संदेश दिया कि वंचित वर्गों को अपने साथ जोड़ें।

ऐसा ही बदला रुख सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी का दिख रहा है, जिसे पूर्वांचल में मुस्लिम मत मिलते रहे हैं। मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी उन्हीं की पार्टी से विधायक हैं। जिस तरह से मऊ में सालार मसूद गाजी की याद में लगने वाले मेले को रोकने के सरकार के निर्णय का सुभासपा ने समर्थन किया, उससे उसकी आगामी रणनीति के संकेत भी भांपे जा सकते हैं।

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