स्टार प्रचारक समझे

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एसएनवर्मा

भाजपा और कांर्ग्रेस दोनो को अपने स्टार प्रचार को निर्देश देना चाहिये कि साम्प्रदायिक भाषणों द्वारा संविधान की पवित्रता और गरिमा को चोट न पहुंचाये। अब एक चरण का चुनाव और है। संविधान को ठेस पहुचाने वालो भाषणों में सम्प्रदायिकता और संविधान को ठेस पहुंचाने वाले भाषणों का भरमार हो रहा है। इसकी शिकायत पीएम और राहुल गांधी के खिलाफ थी पर चुनाव आयोग अब जागा है, इन दो व्यक्तियों को नजरन्दाज करते हुये हिदायत दोनो के पार्टी अध्यक्षों के भेजा है। साम्प्रदायिक भाषणों और संविधान की गरिमा के ठेस पहुंचाने वाले बयान पर रोक लगाई जाय।
इस तरह की शिकायत चुनाव आयोग को एक महीने पहले मिली थी। जब चुनाव के कई चरण बाकी थे। चुनाव आयोग ने भाजपा और कांग्रेस अध्यक्षों को नोटिस दे कर चेताया था कि अपने अपने स्टार प्रचार को भाषण के दौरान सावधानी बरतने को कहें। एक प्रश्न उठता है जब शिकायत व्यक्तिगत रूप से नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी के खिलाफ था तो नोटिस इन दोनों के पास जानी चाहिये थी पर नोटिस दोनो पार्टियों के अध्यक्षों को भेज कर आयोग ने क्या अपनी कमजोरी जाहिर की है। कमजोरी हो सकती है पर पक्षपात नही कहा जा सकता क्योकि दोनो अध्यक्षों को समान नोटिस भेजा है।
ध्यान देने की बात यह है कि दोनो अध्यक्षों ने समान व्योहार करते हुये स्टार प्रचारको को निर्देश देने के बजाय उन्हें पहल ही तरह प्रचार में लगे रहने दिया है। अध्यक्ष के नाते पार्टी के सदस्यों पर उनका ही नियन्त्रण रहता है। दशा दिशा अध्यक्ष और वर्किग कमेटी ही तय करती है। गति पार्टी के सदस्य और प्रचारक देते है। दोनो अध्यक्ष स्टार प्रचार का बचाव कर रहे है। यह देश के हित में नहीं है न संविधान के में हित में। प्रधानमंत्री और अध्यक्ष पर सही दिशा निर्देश देने भार रहता है। उन्हीं के निर्देशनुसार पार्टी की रण शैली रूप अख्तियार करती है और बढ़ती है। चुनाव आयोग को प्रचारको से सीधे सवाल करना चाहिये न कि पार्टी अध्यक्षों से जैसा की चुनाव आयोग अब तक करता आया है।
तीखे साम्प्रदायिक मुद्दे और संविधान संशोधन इस चुनाव में छाये हुये है। संविधान में संशोधन हो सकता है पर बुनियादी ढांचे पर कोई आंच नहीं आनी चाहिये। सर्वाेच्च न्यायालय यह कई बार स्पष्ट कर चुका है। आयोग के हिदायतों का गम्भीरता से पालन नहीं हो पाता है। इसकी काट में आयोग का कार्ड असरदार नियामक लाना चाहिये।

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