एस. एन. वर्मा
सुरंग में आढ राज्यो के 41 श्रमिक सकुशल निकाल लिये गये। श्रमिको को बचाने के लिये 20 से अधिक एजेन्सियों 400 सौ घण्टे से लगी हुई थी। अन्त में जिन्दगी ने मौत पर जीत हासिल की 17 दिन के बेसब्री का अन्त हुआ। बचाव का समाचार आते ही पूरा देश खुशी से झूम उठा। भारत माता की जय के नारे तथा अतिशबाजी के बीच श्रमिको की खुशी का परिवार नही ही वहीं हाल विजय का दर्प लिये बचाव दल का था। केन्द्र और राज्य ने पूरी ताकत उन्हें बचाने के लिये झोक दी थी। प्रधानमंत्री पल पल श्रमिको का हाल ले रहे थे। मुख्यमंत्री धामी भी बराबर कार्य की प्रगति पर कड़ी नज़र रक्खे हुये बराबर श्रमिको का हाल लेते रहे। बचाव दल बीच में पड़ने वाली बाधाओं से निपटते रहे। बचाव दल ने श्रमिको को खाना व पानी पहुचाने का व्यवस्था तमाम बधाओं के बीच बना ली थी। टेलीफोन विभाग ने श्रमिको तक फोन की व्यवस्था करवाकर श्रमिको का हाल बचाव दल जानते रहे। श्रमिक फोन की मदद से अपने परिवार से भी बात कर लेते थे। श्रमिको का नैतिक साहस इन सबसे बना हुआ था। बचाव की खबर आते ही प्रधानमंत्री से लेकर अन्य मंत्री और नेता अपनी बधाइयां श्रमिको और बचाव दल को भेजते रहे। एनडीआरएफ को जवानो ने जो कुछ हुआ उसको सम्भव बनाया। 57 मीटर की निकास सुरंग का आखिरी स्टील पाइप मलवे को भेद कर श्रमिको तक पहुचा तो सभी खुशी से उछल पड़े।
सुरंग के बारे में ज्योलाजिकल सर्वे आफ इन्डिया और नेशनल इनस्टीटयूट आफ राक मेकलिक्स के पूर्व निर्देशन डा. पीसी नबानी का कहना है कि सुरंग के मामले में बहुत बड़ा भ्रम है कि इससे पहाड़ कमजोर हो जाते है भूकम्प आने पर सुरंग ढह जाते है। उनका कहना है कि पहाड़ के ऊपर चौडी सड़कों के मुकाबले सुरंग सबसे ज्यादा सुरक्षित विकल्प है। भूकम्प का सुरंग पर कोई असर नही पड़ता है। सुरंग एक बार बन जाती है तो 100 साल तक उस पर कोई असर होने की सम्भावना बहुत कम होती है। सुरंग में जहां कमजोर जगह होती है उस जगह पर वैज्ञानिक कनवर्जन होने देते है। कई बार सुरंग के अन्दर बड़ी मात्रा में भूस्खलन भी होता है तो कोई न कोई हादसा होता है। इससे सुरंगो के बारे में कोई नकारात्मक नजरिया नहीं बनाना चाहिये। नकारात्क नज़रिया की जगह सुरक्षा प्रोटोकाल को सख्ती के साथ लागू किये जाने की जरूरत है।
टनल के कुछ डायमीटर के ऊपर तीन गुना तक का हिस्सा ही संवदेनशील होता है मसलन अगर कोई सुरंग 10 मीटर व्यास कि है तो ऊपर 30 मीटर तक की पहाड़ी संरचना संवदेनशील होती है ज्योलाजिकल इन्जीनियर इस हिस्से को चिन्हित करते हुये जरूरत के लिहाज से समाधान या सुधार करते है। इसके बाद कोई खतरा नही रहता है। विशेषज्ञ हर हिस्से की जोनिंग करते हुये आगे बढ़ते हो जेनिक के अनुसार अलग अलग ट्रीटमेन्ट होता है। इसी प्रक्रिया के तहत पहाड़ो में बड़ी बड़ी सुरंगे बनती है और बनी भी है। ये सुरंग पूरी तरह सुरक्षित है। कोई हादसा तभी होता है जब इस प्रक्रिया को नज़रन्दाज कर सुरंगे बनाई जाती है। सुरंग में इसके अलावा भूस्खनल की कोई वजह नहीं बनती है। इसलिये इस तरह को भूल को भूगोल के ऊपर थोप कर बचा नहीं जा सकता।
विनाश और सृजन तो विकास का अपरिहार्य अंग है। अत तक का विकास इसी पैटर्न पर हुआ है। विकास के क्रम में जो मानवीय भूल या नजरन्दाजी उसे सुधारने की जरूरत है। विकास की योजनाये चलती रहेगी जगह जगह जरूरत अनुसार सुरंगे बनती रहेगी। जरूरत ऐसे संस्थान की है जो बिना भ्रष्टाचार में लिप्त हुये निर्माणाधीन परियोजनाओं का हर साल तकनीकी आडिट करें इससे हादसों को रोक पाने की क्षमता बढ़ेगी।
सिलकारा सुरंग 4.5 किलोमीटर लम्बी बनाने के लिये प्रस्तावित है। 12 नवम्बर की सुबह सुरंग में जमीन घंस गयी। 53 मीटर छह इन्च का सप्लाई पाइप बना जो श्रमिका की जीवन रेखा बनी वे इतने दिनों तक जिन्दा रहे। 49.2 मीटर पाइप डालने के बाद आगर मशीन खराब हो गई। फिर चूहो की तरह बिल बनाते हुये मैनुअल खोदाई करते हुये श्रमिको तक पहुंचा जा सका।
भारत में सुरंग हादसो की दर विदेशो से बहुत कम हैं। खासकर योरोपीय देशों से। सुरंग बनाने में कितना काम किस समय में पूरा किया जाना है पहले से तय होता है। खुदाई के छह माह के अन्दर फाइनल लाइनिंग जरूरी है। अनुभवी विशेषज्ञों की देखरेख में यह काम होना चाहिये। कई बार समय सीमा में काम पूरा होते न देख मूल कमानी जिसे यह काम मिला है सबलेटिंग कर दूसरे लोगो से काम पूरा करवाती है। ऐसे काम हादसे की वजह होते है कि क्योंकि काम की गुणवत्ता मानक अनुसार नही रहती है। हर कदम पर अनुभवी विशेषज्ञ होने चाहिये। इस हादसे से निश्चय ही सबक लेते हुये सारे मानको का पालन करते हुये काम कराया जायेगा। बाहर से विशेषज्ञ और मशीने बुलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी।
अवधनामा परिवार की ओर से श्रमिको को बधाई साथ बचाव दल को भी बधाई। बचाव दल ने श्रमिको के परिवार को जो सकुन पहुचाया है और देश को खुशी दी है देवह बेजोड़ है। शुभ कामनायें।