अवधनामा जिला संवाददाता हिफजुर्रहमान
मोहब्बत भाईचारा अमन का पैगाम किस को दें। महशर आफरीदी
मौदहा-हमीरपुर :सर ज़मीनें मौदहा अपनी तरह तरह की खुसूसयात व सिफात की बिना पर न सिर्फ मुल्क में बल्कि बैरूनें मुल्क में भी नुमायां हैसियत रखती है। यहां यू तो बड़े बड़े नामवर अफराद पैदा हुए लेकिन जिसने मौदहा को गैरमामूली शोहरत व एहमियत दिलाई,जिस नें मौदहा की अज़मत व शोहरत को सुरय्या से भी ऊपर पहुंचा, इस ज़मीन को हमेशा के लिए मोहतरम व मुकरम्म बनाया, वह ज़ात जिसने मौदहा में जन्म नही लिया था जो सैकड़ों मील दूर से यहां आए थे जो यहां के रहन, सहन, ज़बान, लिबास, तहज़ीब व रस्म-व-रिवाज से बिल्कुल नावाकिफ थे यहां के ज़र्रे ज़र्रे के लिए अजनबी थे मगर उस अजनबी के मुबारक क़दमों से मौदहा की ज़मीन को वह बरकत हासिल हुई कि सरज़मीनें मौदहा अजनबियों के लिए काबिले रश्क होगयी। उस फक़ीर के क़दमों से लग कर मौदहा को वह अज़मत व रिफत हासिल हुई के लोग इस बन्जर जमीन को क़दर की निगाह से देखने लगे।मौदहा आज जो कुछ भी है वह सब उसी अजनबी इन्सान की देन है जिसको आज दुनिया हज़रत मौलाना मोहम्मद सय्यद सलीम जाफरी रह० के नाम से जानती है।उसी अजीम हस्ती के नाम पर साल मे एक बार एक मुशायरा करा के रस्म अदाएगी कर दी जाती है। इस साल भी रहमानिया इंटर कॉलेज के मैदान में एक कुलहिन्द मुशायरा हुआ जिस मे मुल्कभर से मशहूर शायर व शायरात नें शिरकत की। मुशायरे की सदारत मौलाना खांन नें व निजात नदीम फर्रुख ने अनजान दिये। महमानों की शक्ल में तुफैल अहमद, जुगनू, शहजाद प्रधान मांचा के अलावा और भी लोगों ने शिरकत की। मुशायरे में शिरकत करने वाले मेहमान शायरों में जनाब माजिद देवबंदी, महशर आफरीदी महाराष्ट्र, अबरार काशिफ अमरावती, खुर्शीद हैदर मुजफ्फरनगर, जहाज देवबंदी हाशिम फिरोजाबादी, निकहत अमरोही, रूखसार बलरामपुरी के साथ मेजबान शायर मसीह निजामी नें भी अपना कलाम पेश किया। मुशायरे मे सब से ज्यादा हाशिम फिरोजाबाद की तालीम पर नज्म और अबरार काशिफ की नज्म को पसन्द किया गया। एक समय ऐसा लग रहा था कि मुशायर नाकाम होजाएगा लेकिन खुर्शीद हैदर नें अपने कलाम से मुशायरा में नई जान फूंक दी बहुत ही आसान अल्फाज़ मे की गयी शायरी को लोगो नें बहुत ही पसन्द किया। महशर आफरीदी के इस शेर पर खूब दाद मिली।
यह अमृत पी गये असलाफ खाली जाम किस को दें।
कोई भी शेर दरबारी नही है। खुर्शीद हैदर।
हाशिम फिरोजाबादी की नज्म नें मुशायरा लूट लिया।
इल्म हासिल करो इल्म हासिल करो।
यह रसूले खुदा का फरमान भी है।
इल्म से ही मुकम्मल हर इन्सान है।
इल्म ही अस्ल मे अपनी पहचान है। हाशिम।
अबरा काशिफ की दुनियां भर मे मशहूर नज्म सुनाने की फरमाईश स्टेज मे बैठै शायरों नें खुद उन्होनें अपनी खूबरत नज्म जिस वक्त पढी पूरी महफिल झूम उठी।।
मुशाहरा गाह पूरी तरह से भरा था मुशायरे की शुरुआत नाते नबी से डा0 माजिद देवबन्द नें की