अवधनामा संवाददाता
पांच में से चार दवाएं है उपलब्ध, नियमित सेवन से टीबी से मिलेगी मुक्ति
जिले में इस समय इलाज पर है डीआर टीबी के 385 मरीज
गोरखपुर । ड्रग रेसिस्टेंट टीबी (डीआर टीबी) के इलाज में उपयोग होने वाली दवा साइक्लोसिरिन की सरकारी अस्पतालों में संकट के बीच स्वास्थ्य विभाग ने स्पष्ट किया है कि इससे टीबी उन्मूलन में बाधा नहीं आएगी । ऐसे टीबी मरीजों के सम्पूर्ण इलाज पर इसका प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि उनके इलाज के लिए चलने वाली पांच दवाओं में से चार दवाओं का सेवन अनिवार्य है । साइक्लोसिरिन को छोड़ कर बाकी दवाएं पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं । मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ आशुतोष कुमार दूबे ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा है कि टीबी मरीज उपलब्ध दवाओं का भी नियमित सेवन करें तो उन्हें इस बीमारी से मुक्ति अवश्य मिलेगी। जिले में इस समय डीआर टीबी के 385 मरीज इलाज करवा रहे हैं।
मुख्य चिकित्सा अधिकारी ने बताया कि बीच में दवा छोड़ देने, सही तरीके से दवा न चलने और टीबी की समय से पहचान कर इलाज न करवाने से यह डीआर टीबी का रूप ले लेती है जिसका इलाज थोड़ा जटिल है। इसके मरीजों को ठीक होने में 18 से 20 माह तक का समय लग सकता है । इन मरीजों का सम्पूर्ण इलाज सरकारी स्वास्थ्य तंत्र में उपलब्ध है । इन मरीजों को पांच प्रकार की दवाएं चलाई जाती हैं । मरीजों के दवाओं के प्रति रेसिस्टेंट के अनुसार इन पांच में से कम से कम चार दवाओं का सेवन अनिवार्य है । डीआर टीबी के सभी मरीजों को अगर साइक्लोसिरिन नहीं दी जा रही है, तब भी उनका सम्पूर्ण इलाज संभव है। चिकित्सकों के परामर्श के अनुसार जिनके लिए यह एकमात्र दवा अति अनिवार्य है, उन्हें प्रबंध कर इसे उपलब्ध भी कराया जा रहा है।
जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ गणेश यादव ने बताया कि टीबी मरीजों का सम्पूर्ण इलाज और दवाएं सरकारी अस्पतालों पर उपलब्ध हैं । दो सप्ताह से अधिक की खांसी, शाम को बुखार, बुखार के साथ पसीना, बलगम में खून आना, वजन घटना, भूख न लगना और सीने में दर्द जैसे लक्षण हों तो नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र या हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर पर पहुंच कर टीबी की जांच जरूर कराएं । टीबी मरीजों को इलाज और दवा के साथ साथ पांच सौ रुपये प्रति माह पोषण के लिए उनके खाते में भी दिये जाते हैं ।
डीआर टीबी मरीज का रखें खास ख्याल
उप जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ विराट स्वरूप श्रीवास्तव ने बताया कि डीआर टीबी के मरीज जब दवाओं का सेवन करते हैं तो मिचली आना, पेशाब के रंग में परिवर्तन और पेट दर्द जैसे कुछ प्रभाव भी नजर आते हैं जिनसे घबरा कर कई बार वह दवा बंद कर देते हैं। ऐसा किसी को नहीं करना है । मरीज के परिवार के लोग सुनिश्चित करें कि किसी भी दशा में दवा बंद न हो । अगर परेशानी ज्यादा हो तो चिकित्सक को दिखाना चाहिए और उनके परामर्श के अनुसार इलाज जारी रखना चाहिए।