24 घंटे में ही मुसलमान होने लगा यह दहशतगर्द- वक़ार रिज़वी

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वक़ार रिज़वी………..
यह दहशतगर्द भी 24 घंटे के अन्दर ही मुसलमान होने लगा जैसे पहले भी कई बार दहशतगर्दी के इल्ज़ाम में पकड़े गये तमाम लोग सालों की जांच के बाद सिफऱ् मुसलमान ही निकले, दूसरी तरफ वर्ष 2007 में अजमेर दरगाह बम धमाके के मामले में जेल में बंद दक्षिणपंथी हिंदू संगठन के  सदस्य असीमानंद के तीन साथी दिनेश गुप्ता, भावेश पटेल और सुनील जोशी को अदालत ने दोषी करार दिया, जिनकी सज़ा का एलान 16 मार्च को होगा। ज्ञात रहे हिंदू संगठन के सदस्य असीमानंद जो हैदराबाद मक्का मस्जिद और समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट के भी आरोपी हैं, जिसमें लगभग 70 लोगों की मौत हो गयी थी। इसे संयोग के सिवा क्या कहा जा सकता है कि एकबार फिर मुस्लिम आतंकवाद प्रथम पृष्ठ पर रहा और अजमेर दरगाह बम धमाके, हैदराबाद मक्का मस्जिद और समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट के आरोपी हिंदू संगठन के सदस्य असीमानंद के तीन साथी दिनेश गुप्ता, भावेश पटेल और सुनील जोशी जिनको अदालत ने दोषी कऱार दिया, की खबर कहीं अन्दर के पृष्ठ पर एकबार फिर दब गयी।
यूपी पुलिस जिसे पहले दिन आईएस आतंकी बताती रही, चौबीस घंटे बाद ही उसे आईएस का आतंकी न होने की क्लीनचिट दे दी। सैफुल्लाह को आईएस का कट्टर आतंकी बताकर मार देने के बाद पुलिस ने दूसरे ही दिन दावा किया कि मारे गये इस दहशतगर्द सैफ के बारे में आईएस आतंकियों से संबंध होने के कोई सबूत नहीं मिले हैं। केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने यूपी पुलिस से नाराज़गी जताते हुये कहा कि क्यों नहीं पहले जांच की गयी? ऑपरेशन के दौरान बिना जांच के ही उसे क्यों आईएस का आतंकी बताया गया?  यानि यह दहशतगर्द भी पहले के कई दहशगर्दो की तरह 24 घंटे में ही पूरा न सही तो आधा मुसलमान तो हो ही गया? और दूसरी तरफ पुलिस के इतने लम्बे हाथ जिसने कुछ घंटों में ही देश को न सिर्फ एक बड़ी आतंकवादी घटना से बचा लिया बल्कि कई को गिरफ़्तार कर एक को मार भी गिराया। यही पुलिस जो हसनगंज थाने में आने वाले बाबूगंज एटीएम लूट कांड का छ: महीने से ज्य़ादा का समय बीत जाने के बाद अभी तक कोई ठोस सुराग न ढूंढ पायी और न कुछ बरामद कर सकी, जबकि इसमें तीन लोगों की जाने भी गयी थी, उसने यहां नक्शा, बारूद, पिस्टल और वह सबकुछ बरामद कर लिया जिसका अगर वह इस्तेमाल कर लेता तो न जाने कितने वहीं ढेर हो जाते। गायत्री प्रजापति अभी भी इस जाबांज़ पुलिस का इंतेज़ार कर रहा है ?
सलाम उसको जिसने उन तमाम कट्टरपंथियों को शर्मिन्दा कर दिया यह कहकर कि –
”जो देश का नहीं वह मेरा बेटा नहीं”
गैरतमंद कट्टरपंथियों के लिये यह किसी तमाचे से कम नहीं जो सभी मुसलमानों को दहशतगर्द कहने में ज़रा भी देर नहीं करते, वह ज़रा बाप बनकर सोंचें कि एक बाप जो अपने बेटे की हर बुराई को उसकी नासमझी समझकर नज़रअंदाज़ कर देता है, वैसे ही एक बाप ने अपने बेटे की लाश लेने को यह कह के लेने से इंकार कर दिया कि ”जो देश का नहीं वह मेरा बेटा नहीं” हालांकि पुलिस अपने बयान से 24 घंटे में ही पलट गयी? लेकिन उस शेरदिल मुसलमान बाप नें अपने धर्म इस्लाम के उसूलों का उदाहरण पेश करते हुये यह साबित किया कि इस्लाम में दहशतगर्दी की कोई जगह नहीं। सिर्फ पुलिस की बतायी कहानी को आधार मान कर अपने बेटे के मुकाबले अपने देश को तरजीह दी और बेटे के आखिऱी दीदार को भी तैयार न हुआ। हालांकि लाश लेना उनका अधिकार था, लेकिन एक सच्चे मुसलमान होने का तकाज़ा यही है कि पहले अपना घर, फिर पड़ोस, फिर शहर, फिर प्रदेश और फिर देश और देश के मुकाबले में कुछ नहीं, अपनी औलाद भी नहीं।
यह एकमात्र देश है जहां सभी धर्मों के लोग आपस में मिलजुल कर रहते हैं। अल्पसख्ंयकों को जितनी आज़ादी अपने भारत में प्राप्त है, वैसी आज़ादी किसी मुस्लिम देश में भी नहीं। जब-जब अल्पसंख्यकों पर आंच आयी है तो उनकी ढाल मुस्लिम नहीं बल्कि यहां के हिन्दू भाई ही बने हैं इसकी ताज़ा मिसाल दादरी में इखलाक की घटना है। इसके विरोध में देश में जिन लोगों ने अपने अवार्ड वापस कर अपना विरोध दर्ज कराया उसमें लगभग सभी हिन्दू थे। दूर क्यों जाते हैं, अपने शहर में ही प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा, प्रोफेसर रमेश दीक्षित, वंदना मिश्रा, प्रदीप कपूर, उत्कर्ष सिन्हा जैसे न जाने कितने हिन्दू है जो हर क्षण अल्पसंख्यकों के अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं। आज सुमंगल दीप त्रिवेदी जी ने फोन पर मुझे मुबारकबाद देकर मुझे याद दिलाया कि अभी दानिश और खालिद की घटना बहुत पुरानी नहीं हुई है लेकिन उस घटना को जैसे भुला दिया गया ऐसे ही इसे भी भुला दिया जायेगा। उनके इस फोन ने हम जैसे न जाने कितने अल्पसंख्यकों के विश्वास को और मज़बूत कर दिया कि इस देश में धर्मनिरपेक्षता इन जैसे ही तमाम लोगों से अभी भी बाकी हैं।
आतंकवाद को कट्टरपंथियों ने एक ऐसा नासूर बना दिया है जिसने हिन्दू और मुसलमान का रंग ले लिया, नहीं तो आंतकवाद न हिन्दू है और न मुसलमान और यही क्यों आतंकवाद का तो किसी भी धर्म से कोई लेना-देना नहीं जो किसी भी धर्म को मानता होगा वह आंतकवाद का घोर विरोधी होगा फिर वह चाहे पुलिस का आतंक हो या राजनैतिक आंतकवाद।
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