सीएसआईआर-आईआईटीआर, लखनऊ में तृतीय अंतरराष्ट्रीय टॉक्सीकोलॉजी कॉनक्लेव, आईटीसी-2017
लखनऊ स्थित सीएसआईआर-इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च के एसएच ज़ैदी ऑडिटोरियम में दो दिवसीय उद्योग-अकादिमिया बैठक का उद्घाटन किया गया। समारोह के मुख्य अतिथि डॉ॰ राकेश कुमार, सीएसआईआर-राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान, नागपुर ने उद्घाटन संबोधन दिया और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रिशन, हैदराबाद के पूर्व निदेशक डॉ॰ बी॰ ससीकरन ने "सुरक्षा पोषक तत्वों का मूल्यांकन " विषय पर व्याख्यान दिया। उन्होंने रोज़मर्रा के जीवन में सूक्ष्म और स्थूल पोषक तत्वों के पर्याप्त संतुलन पर बल दिया और विटामिन और अन्य पोषक तत्वों की अधिक मात्रा में खपत और मानव स्वास्थ्य पर इनके प्रभाव की चर्चा की। इस वैज्ञानिक कार्यक्रम के पहले दिन दो तकनीकी सत्र शामिल थे।
प्रत्येक सत्र के बाद विषय पर एक विशेषज्ञ पैनल चर्चा और एक वैज्ञानिक पोस्टर सत्र का आयोजन किया गया। पहला सत्र 'पर्यावरण निगरानी और जोखिम आकलन' विषय पर था जिसमें क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा 5 व्याख्यान के बाद पैनल चर्चा की गई। सीएसआईआर-आईआईटीआर, लखनऊ के वरिष्ठ प्रमुख वैज्ञानिक, डॉ एससी बरमन ने इनडोर और आउट-डोर वायु गुणवत्ता से संबंधित स्वास्थ्य मुद्दों पर प्रकाश डाला और सीएसआईआर- आईआईटीआर द्वारा प्रदूषक भार का आकलन करने के लिए किए गए प्रयासों का वर्णन किया। उन्होने इन प्रदूषकों के मानव स्वास्थ्य पर असर और इन मुद्दों को हल करने के लिए उपायों की भी चर्चा की। मुंबई के हिकाल लिमिटेड के डॉ॰ सतीश सोहनी ने बताया कि कैसे उनकी फर्म भूजल के स्तर को बढ़ाने के लिए काम कर रही है।
जीवन भर एक एकीकृत और समग्र जल समाधान प्रदान करने के लिए मुंबई में जल समाधान प्रबंधन की एक अभिन्न कंपनी, स्मार्ट वाटर, द्वारा अब तक किए गए प्रयासों के बारे में विस्तृत जानकारी दी। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के डॉ॰ दिनेश मोहन ने कृषि क्षेत्र में फसल बायोमास जलाने से पर्यावरण प्रदूषण के मुद्दे को हल करने के लिए किए गए अपने अनुसंधान कार्यों की चर्चा की। डॉ॰ दिनेश मोहन ने बताया कि उन्होंने संयंत्र के अपशिष्ट पदार्थों से कम लागत वाले जैव-कोयला को विकसित किया है, जिसमें उच्च कार्बनिक कार्बन सामग्री और अपघटन के प्रतिरोधी हैं। यह बायोचार न केवल फसल जलाने से उत्पन्न समस्याओं को हल करने के लिए बेहद उपयोगी होगा बल्कि इसे पर्यावरण की दृष्टि से पानी, मिट्टी और जलवायु परिवर्तन शमन के लिए स्थायी तकनीक के रूप में भी माना जाएगा। उन्होंने आगे कहा कि फसल के अवशेषों को विभिन्न थर्मल, जैव रासायनिक और यांत्रिक प्लेटफार्मों का उपयोग करके जैव ईंधन, गर्मी और बिजली में परिवर्तित किया जा सकता है।
आईआईटी, कानपुर के डॉ मुकेश शर्मा ने फिजिओलोजी आधारित फार्माकोकाइनेटिक मॉडल में अनिश्चितताओं के बारे में चर्चा की, जो मानव शरीर में लेड के अपटेक, एक्यूमुलेशन,आकलन, और उन्मूलन के बारे में बताती है। उन्होंने जीनोबायोटिक जोखिम के मानव स्वास्थ्य जोखिम का अनुमान लगाने के लिए इस मॉडल की प्रयोज्यता के बारे में बताया। डॉ॰ जॉन कॉलबोर्न, प्रोफेसर, पर्यावरण जीनोमिक्स विश्वविद्यालय, बर्मिंघम यूनिवर्सिटी, यूनाइटेड किंगडम, ने जीनोम पर्यावरण की जटिलता के कारण डेटा की व्याख्या से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की। उन्होंने जीनोम के तत्वों को मापने के महत्व को इंगित करने, जो प्राकृतिक चयन के लिए लक्षित हो सकते हैं, जिसके परिणामस्वरूप विषाक्त पर्यावरण परिस्थितियों के जोखिम में वृद्धि की जा सकती है, के संदर्भ में डेफ़निया और फंडुलस के मॉडल प्रजातियों के महत्व को बताया। चर्चा के निष्कर्ष और कार्यान्वयन के लिए अंतिम सिफारिशों को बनाने के लिए सत्र के मुख्य विषयों पर चर्चा करने के लिए विशेषज्ञों का एक पैनल भी था। द्वितीय सत्र इनोवेशन और ट्रांसलेशनल रिसर्च' पर था, जिसमें चार व्याख्यान प्रस्तुत किए गए। फाउंडेशन फॉर इनोवेशन एंड टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के डॉ अनिल वाली ने भारत में अनुसंधान, इनोवेशन और स्टार्ट-अप को सिंक्रनाइज़ करने के लिए अकादमिक और उद्योग के बीच अंतराल को पाटने पर बल दिया। जैडस वेलनेस लिमिटेड, अहमदाबाद के डॉ॰ आर गोविंदराजन ने अपना व्याख्यान वैश्विक पुनरुद्धार संयंत्र आधारित पारंपरिक दवाओं पर दिया। उन्होंने हर्बल दवाओं के गुणवत्ता नियंत्रण पर शोध मापदंडों में किए गए विकास के बारे में बताया। उन्होंने विकसित हर्बल दवाओं के लिए उत्पन्न आंकड़ों के वैज्ञानिक सत्यापन की आवश्यकता पर भी जोर दिया। राष्ट्रीय अनुसंधान विकास सहयोग के डॉ एच॰ पुरुषोत्तम ने भारतीय परिदृश्य में सफल प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के लिए महत्वपूर्ण कारकों की पहचान पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होने उद्योगों को विकास संस्थानों तथा सार्वजनिक वित्त पोषित अनुसंधान केन्द्रों से सफल प्रौद्योगिकी हस्तांतरण को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण कारकों की पहचान की। पांड्रम टेक्नोलॉजीज बंगलुरु के डॉ॰ अरुण चंद्रू ने नई दवाइयाँ और टीके बनाने में पारंपरिक 2 डी सेल कल्चर, जन्तु मॉडल और मानव ट्रायल के बीच की खाई को पाटने के लिए बायोइंजिनीयर्ड 3डी फंक्शनल मानव टिश्यू और ओर्गेनोयड्स की भूमिका पर चर्चा की। सत्र के अंत में सत्र के मुख्य विषयों पर चर्चा करने के लिए और अंतिम सिफारिशों को को बनाने के लिए विशेषज्ञों का एक पैनल बैठा।
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