सरपरस्त सज्जादानशीन फखरुद्दीन अशरफ ने मांगी देश की खुशहाली व तरक्की की दुआ

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सरपरस्त सज्जादानशीन फखरुद्दीन अशरफ ने मांगी देश की खुशहाली व तरक्की की दुआ

पूरी दुनिया में आपसी एकता की मिशाल है मखदूम अशरफ की दरगाह -सैय्यद फैजान अशरफ चाँद


अम्बेडकरनगर। विश्व प्रसिद्ध दरगाह किछौछा शरीफ में सूफी फ़क़ीर व संत हज़रत मखदूम अशरफ जहाँगीर सिमनांनी रह अलैह के 631 वें वार्षिक उर्स के चौथे व सबसे अहम दिन 28 मोहर्रम शाम को सरपरस्त सज्जादानशीन व आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष हाजी मौलाना सैय्यद शाह फखरुद्दीन अशरफ अशरफीउल जिलानी ने खिरकापोशी की रस्म अदा की ।इस मौके पर तोहफा व उपहार स्वरूप दिए गए मखदूम साहब के प्राचीन व सैकड़ो वर्ष पुराने खिरका मुबारक व छड़ी मुबारक सहित अन्य वस्तुओ को पहनकर आस्ताने पर आये हुए थे साथ ही उन्होंने रस्मे गागर भीं अदा किया और उन्होंने हिन्दुस्तान की खुशहाली तरक्की और देश को दहशतगर्दी से निजात पाने सहित विश्व शान्ति के लिए दुआए मांगी ।


विश्व प्रसिद्ध हज़रत मखदूम अशरफ के उर्स मुबारक के मौके पर 28 मोहर्रम को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के उपाध्यक्ष सरपरस्त सज्जादानशीन सैय्यद फखरुद्दीन अशरफ आस्ताने पर प्रातः10 बजे पहुचे और आयोजित महफिले शमा कव्वाली में शिरकत किया व दोपहर में दारुल उलूम मखदूम अशरफ ओरिएंटल कॉलेज के जलसा ए दस्तारबंदी में शामिल होकर डिग्री धारको के सिर पर पगड़िया बांध कर रस्म को अदा किया ।इसके बाद शाम करीब 5 बजे सज्जादानशीन हजरत सैय्यद फखरुद्दीन अशरफ़ अशरफीउल जिलानी खनका -ए-मुअल्ला लहदखाना से खिरका शरीफ पहनकर उलेमा मशायख खुद्दाम मुजवरीन अहले खानदान व फोकराओ के जत्थे के साथ निकलकर आस्ताने अलिया के लिए रवाना हुए और इस मौके पर देश विदेश से आये करीब 5लाख जायरीनों ने खिरका शरीफ की जियारत की और दुआ व मन्नत मांगी ।रात्रि 9 बजे से आयोजित कव्वाली में भी उन्होंने भाग लिया जिसे गुरूवार तड़के सम्पन्न होने के साथ चौथे दिन का उर्स खुशनुमा माहौल में ख़त्म हो गया और इस मौके पर पवित्र खिरका शरीफ की जियारत के लिए लाखो की संख्या में जायरीन पहुँचे थे । उर्स के मौके पर सैय्यद फैजान अशरफ चाँद ने बताया की हज़रत मखदूम अशरफ जहाँगीर सिमनानी की दरगाह पर हिंदुस्तान के कोने कोने से हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सहित सभी धर्म के लोग यहाँ आते है और अपनी जायज़ तमन्नाओ को मांगते है यह दरगाह आपसी एकता की मिशाल है साथ सबसे अहम बात यह है की इस दरगाह पर रूहानी इलाज के लिए पूरी दुनिया से लोग आते है और जो लोग जादू टोना भूत प्रेत की बीमारियो से पीड़ित रहते है वह यहाँ पर आकर ठीक होते है इसीलिए इस दरगाह आने का एक अलग ही महत्त्व है।इस मौके पर वली अशरफ मेराज अशरफ सै महफुजुर्रहमान खलीक अशरफ सै मसुदुरहमान सुफिये मिल्लत सैय्यद अतीक अशरफ अली अशरफ मौलाना सैय्यद आसिफ अशरफ सैय्यद कसीम अशरफ मजहरुद्दीन अशरफ आदि लोग मौजूद रहे ।

हजरत मखदूम अशरफ की याद ताज़ा हुई

28 मोहर्रम की शाम को अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त किछौछा दरगाह शरीफ में हज़रत मखदूम अशरफ जहागीर सिमनानी रह अलैह की याद उस समय ताज़ा हो गई जब सरपरस्त सज्जादानशीन /धर्म गुरु सैय्यद फखरुद्दीन अशरफ किछौछवी ने मखदूम अशरफ सिननानी का करीब एक हजार साल पुराना खिरका मुबारक पहनकर हाथ में छड़ी मुबारक ले कर आस्ताने पर खिरकापोशी की रस्म को अंजाम दिया यह मंजर इतना रूहानी था की हर किसी की आँखे नम थी और सभी की निगाहे खिरका मुबारक पर टिकी हुई थी और लबो पर दुआ और दरूद था । 
सालाना उर्स के मौके पर पूरी दुनिया से करीब 5 लाख लोग दरगाह किछौछा शरीफ में हजरत मखदूम अशरफ सिमनानी के उर्स में शामिल होने आये थे उर्स के मौके पर सज्जादानशीन फखरुद्दीन अशरफ ने पूरी दुनिया में अमन चैन के लिए खास दुआए भी मांगी ।सैय्यद फखरुद्दीन ने उस फ़क़ीरी कव्वाली को भी सुना जिसे 631 वर्ष पूर्व 28 मोहर्रम को सुनकर सूफी संत हज़रत मखदूम अशरफ ने इस दुनिया को अलविदा कहा था इस ऐतिहासिक पल के गवाह करीब 5 लाख अकीदत मंद  बने इस मौके पर जायरीनों में कोई ऐसा बचा न था जिन्होंने खिरका मुबारक के दर्शन के समय आँख से आंसू न बहाया हो खिरका पोशी की रस्म के दौरान हर तरफ से केवल एक ही सदा मखदूम का दामन नहीं छोड़ेंगे आ रही थी ।

लगभग एक हजार साल पुराना है खिरका मुबारक का इतिहास

हज़रत मखदूम अशरफ जहाँगीर सिमनानी के उर्स के मौके पर मखदूम साहब के जिस प्राचीन व ऐतिहासिक खिरका मुबारक झुब्बानुमा पोशाक को पहन कर सज्जादानशीन खिरकापोशी की रस्म अदा करते है वास्तव में उसका इतिहास करीब एक हज़ार साल पुराना है ।सूफी फ़क़ीर हज़रत मखदूम अशरफ को तोहफा व उपहार स्वरूप दिया गया यह खिरकाए मुबारक सूफी संत हज़रत निजामुद्दीन औलिया नई दिल्ली से होता हुआ हजरत ख़्वाजा अखी सेराजुल हकवद्दीन तक पहुँचा ।इस सूफी बुजुर्ग ने यह खिरका उस ज़माने के मशहूर संत अलाउल हक़ पंडवी पश्चिम बंगाल को सुपुर्द कर दिया और अंत में गुरु पंडवी ने उसे अपने शिष्य मखदूम अशरफ के हवाले कर दिया ।ऐतिहासिक तथ्य यह है की इस खिरके के सीने वाले हिस्से में इस्लाम धर्म के आखिरी पैग़म्बर की बेटी की चादर मुबारक का टुकड़ा लगा हुआ है ।यह खिरका मुबारक इतिहास के सुनहरे पन्नों में कई विशेषताओ व खूबियों से लबरेज है ।मान्यता यह है की इसे देखकर दुआ मांगने से बहुत सी परेशनिया स्वत खत्म हो जाती है यही वजह है की पूरे देश से लाखो की संख्या में जायरीन खिरका मुबारक के दीदार के लिए उमड़ पड़ते है ।

https://www.youtube.com/watch?v=Ai63RihKTIE&t=2s


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