सय्यद काज़िम रज़ा शकील
सामने आएगी भाजपा सरकार के सबका साथ-सबका विकास नारे की हकीकत
यूपी के अजादार शिया मंत्री व विप सदस्य से होगी शाही जरीह जुलूस की मांग
सय्यद काज़िम रज़ा शकील
लखनऊ।
उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने विधानसभा चुनावों में भले ही किसी मुस्लिम को प्रत्याशी न बनाया हो, लेकिन सरकार के गठन के साथ ही मुस्लिम चेहरे के रूप में पूर्व क्रिकेटर मोहसिन रजा को शामिल कर सबका साथ-सबका विकास के वादे को मूर्त रूप दिया। बिना किसी सदन का सदस्य बने मोहसिन रजा का छह महीने तक मंत्री पद बरकरार रखने के बाद पार्टी नेतृत्व ने उन्हें विधान परिषद भेज उनके इस्तीफे को लेकर चल रही अटकलों पर भी विराम लगाया। यही नहीं समाजवादी पार्टी छोड़ कर भगवा दल का झंडा उठाने वाले बुक्कल नवाब को भी भाजपा ने भी विधान परिषद भेज मुसलमानों के शिया वर्ग को नजदीक आने का न्यौता दिया। पूर्ववर्ती सरकारों में शिया समुदाय को किसी तरह का कोई प्रतिनिधित्व न मिलने और शिया समुदाय की समस्याओं पर गंभीरता से विचार न होने से शिया समुदाय की अधिकांश सरकारों के प्रति नाराजगी जगजाहिर है, ऐसे में भाजपा सरकार में एक शिया मंत्री और एक शिया विधान परिषद सदस्य होने के बाद शियों की सरकार से उम्मीद बढ़ गयी है। यह उम्मीद राजधानी लखनऊ में शियों की अजादारी को लेकर भी बढ़ गयी है, जिसमें अजादारी से संबंधित शियों के मातमी जुलूस और दस मोहर्रम को हुसैनाबाद ट्रस्ट की शाही जरीह का जुलूस शामिल है।
भाजपा में मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व कर रहे दोनों नेता सीधे तौर पर अजादारी से जुड़े हैं। हिन्दुस्तान में अजादारी को बढ़ावा देने के लिए जितना योगदान नवाबीने अवध का है, उतना किसी का नहीं। बुक्कल नवाब भी उसी वंश से ताल्लुक रखते हैं और अंजुमन हाए मातमी ने इस सिलसिले को बढ़ाने का काम किया। प्रदेश में मंत्री मोहसिन रजा की अजादारी के प्रति अकीदत किसी से छिपी नहीं है। मोहसिन जितने मंझे हुए क्रिकेट के खिलाड़ी रहे हैं उतना अच्छे ही वे साहबे बयाज (नौहा पढऩे वाला) भी हैं। ऐसे में दोनों नेताओं के सामने शिया समुदाय की पुरानी मांग 10 मोहर्रम को ऐतिहासिक शाही जरीह का जुलूस निकलवाने और उसे रौजए काजमैन में दफ्न कराने की मांग तेज हो सकती है। शाही जरीह के जुलूस को लेकर पिछले एक दशक के समय में कई बार राज्यपाल से लेकर मुख्यमंत्रियों तक को ज्ञापन सौंप कर मांग की जा चुकी है।
अब इन दोनों नेताओं से शियों में उम्मीद जगी कि जऱीह का जुलूस यह दोनों नेता निकलवा सकते हैं। क्योंकि बुक्कल नवाब ने समाजवादी पार्टी पर शियों के ऊपर लाठी चार्ज समेत कई आरोप लगा कर पार्टी छोड़ी थी इस लिए इनसे क़ौम के हक़ में उम्मीद ज़्यादा की जा रही है। सोशल मीडिया में इस बात को लेकर चर्चा भी है कि रमज़ान के बाद इन लोगों से मिलकर शाही जऱी के जुलूस की मांग को पूरा करने की मांग की जाएगी। इमाम रज़ा कमेटी के अध्यक्ष फ़ैयाज़ हैदर कहते हैं कि यह जुलूस हुसैनाबाद ट्रस्ट की तरफ से निकाला जाता है। ऐसे में जुलूस निकलवाना शासन-प्रशासन की जि़म्मेदारी है। अब तो जुलूस को क़ायम करने वाले नवाब के वंशज और अंजुमन के साहब बयाज़ दोनों ही सत्ता में हैं इन लोगों से जल्द ही एक प्रतिनिधि मंडल मिलेगा और जुलूस की मांग रखेगा। ऐसे में उम्मीद की जारही है की इस साल मुहर्रम की 10 तारिख को जुलूस अपने पुरानी परम्परा के अनुसार निकलेगा।
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